शिक्षा : दिल्ली विवि, क्रांतिकारी ड्राफ्ट तैयार

Last Updated 30 Jan 2022 01:54:49 AM IST

दिल्ली विश्वविद्यालय कई कारणों से विवाद का केंद्र बना रहता है, लेकिन इस बार सकारात्मक पहल को लेकर विवाद शुरू हुआ है।


शिक्षा : दिल्ली विवि, क्रांतिकारी ड्राफ्ट तैयार

विश्वविद्यालय के नये कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने एक क्रांतिकारी परिवर्तन का ढांचा तैयार किया है, जिससे न केवल वर्षो से चले आ रहे विवाद का अंत होगा बल्कि, नई शिक्षा नीति को लागू करने में दिल्ली विश्वविद्यालय अगुवाई भी करेगा और उच्च शिक्षा की शक्ल में बुनियादी परिवर्तन भी देखने को मिलेगा। डीयू ने शुक्रवार को नई शिक्षा नीति के तहत तैयार स्नातक पाठ्यक्रमों का मसौदा जारी कर लिया। इसे लागू करने से पहले डीयू सभी पक्षों का सुझाव जानना चाहती है। छात्रों, शिक्षाविद्, पूर्व छात्रों, प्लेसमेंट करने वालों (रिक्रूटर),  अभिभावकों आदि से 30 जनवरी रात 11 बजकर 59 मिनट तक सुझाव मांगे गए हैं।
मसौदे की प्रस्तावना में कुलपति प्रो. योगेश कुमार सिंह ने लिखा है कि ऐसे विश्वविद्यालय, जहां छह लाख से अधिक छात्रों को 500 से अधिक पाठ्यक्रम पढ़ाए जाते हों, यह मसौदा तैयार करना बड़ा काम है। इस प्रारूप की कई विशेषताएं हैं जिनकी चर्चा जरूरी है। दिल्ली विश्वविद्यालय में 6 लाख से ज्यादा बच्चे पढ़ते हैं, 50 से ज्यादा महाविद्यालय हैं। पिछले वर्ष नामांकन की दौड़ इतनी तीखी थी कि सात कॉलेजों में 100 अंकों पर नामांकन कई विषयों में हुए। यह विषय राष्ट्रीय विवाद का मुद्दा भी बन गया क्योंकि स्नातक स्तर की शिक्षा में दिल्ली विश्वविद्यालय को सबसे उत्तम माना जाता है। हर प्रदेश से बच्चे आते हैं, और उनकी कोशिश होती है कि सबसे अच्छे महाविद्यालय में उनका नामांकन हो जाए।

विवाद का कारण यह भी था कि पिछले साल एक राज्य से 100 प्रतिशत अंक पाने वाले छात्रों की तादाद ज्यादा थी और उस आधार पर उनका नामांकन भी हुआ। इसके विरोध में कई दिनों तक धरना-प्रदर्शन भी हुए। यह सब कुछ नये कुलपति के सामने हो रहा था। इसलिए उनके सामने चुनौती पहाड़ की तरह दिखाई देने लगी, लेकिन कुलपति ने दशरथ मांझी की तरह एक नये ड्राफ्ट को तैयार कर पहाड़ काटने जैसा दुरूह काम किया और लोकतांत्रिक तरीके से उसे आम समुदाय के बीच में रख दिया जिस पर यथोचित चर्चा के उपरांत उसे लागू किया जा सके।  पहला क्रांतिकारी परिवर्तन नामांकन से जुड़ा हुआ है। कुलपति के अनुसार स्कूल बोर्ड अलग-अलग राज्यों के अपने-अपने  ढंग से काम करते हैं। कोई अंक के मामले में सख्त है तो कोई नरम। ऐसी स्थिति में 100 प्रतिशत की ऊंचाई को छूना संभव भी नहीं है। इसलिए नामांकन में सभी राज्यों की हिस्सेदारी में ईमानदारी नहीं रह सकती। लिहाजा जरूरी है कि नामांकन प्रवेश परीक्षा द्वारा किया जाए।  इस बात की सराहना सभी कर रहे हैं क्योंकि उन बच्चों को सबसे ज्यादा सुकून है, जो 100 प्रतिशत के अंक से डरे हुए थे।
दूसरा महत्त्वपूर्ण परिवर्तन विषयों को लेकर है। कई बार कैम्पस के प्रांगण में यह कहते हुए सुने जाते हैं कि विज्ञान की पढ़ाई ज्ञान की है और समाज विज्ञान टाइमपास के लिए। इस सोच के साथ कैम्पस में मतभेद की लकीर खिंच जाती है और वही लकीर समाज में भी दिखाई देती है जो एक स्वस्थ समाज के लिए घातक है। नई शिक्षा नीति में इस घुटन से मुक्ति दे दी है। अब छात्र मनपसंद विषय का चुनाव अपनी अभिरुचि के साथ करने में सक्षम होंगे, उन पर किसी तरह का दबाव नहीं होगा। इसके साथ एक जातिमूलक भेदभाव की श्रृंखला दिल्ली विश्वविद्यालय में देखी जाती है। यह भेदभाव छात्र में हीन भावना को जन्म देता है।
मसलन, मैं स्टीफेंस कॉलेज का छात्र हूं, टीशर्ट पर अंकित है। मैं हिंदू कॉलेज का, दूसरा साउथ कैम्पस के किसी कॉलेज का छात्र है, वह किसी तरह अपनी पहचान को छुपाता रहता है। इस ड्राफ्ट ने इस भेदभाव को भी खत्म कर दिया है। नई व्यवस्था के अंतर्गत अपने तीन विषयों के चयन के लिए छात्र अलग-अलग महाविद्यालय को चुन सकता है। मसलन, हिस्ट्री हिंदू से तो राजनीति विज्ञान रामजस कॉलेज से इस ड्राफ्ट की अन्य विशेषता है कि नई शिक्षा नीति के तहत तय की गई बहुमुखी आगमन और निर्गम रास्ते खुले हुए हैं। इसलिए यह प्रारूप एक क्रांतिकारी परिवर्तन है, जो भारतीय शिक्षा व्यवस्था की शक्ल बदल सकता है।

प्रो. सतीश कुमार


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