मुद्दा : भारत के लिए अहम जापान से मैत्री

Last Updated 17 Jan 2022 12:44:41 AM IST

भारत-जापान संबंधों के लिए मौजूदा साल 2022 मील का पत्थर है। दोनों देशों के बीच 1950 में सकारात्मक राजनयिक संबंधों का श्रीगणोश हुआ था। दोनों देशों को भगवान बुद्ध के अलावा शांति, अहिंसा तथा भाईचारा के संदेश करीब लाते थे।


मुद्दा : भारत के लिए अहम जापान से मैत्री

 बौद्ध धर्म के अलावा जापान में गुरु देव रविन्द्रनाथ टेगौर का भी बहुत सम्मान है। टोक्यो यूनिर्वसटिी में हिंदी का अध्यापन 1908 से ही चालू हो गया था। भारत से बाहर सबसे पहले हिंदी की टोक्यो यूनिर्वसटिी में ही पढ़ाई चालू हुई थी। स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान जापान की शाही सेना ने सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज की सहायता की थी। तो इस तरह भारत और जापान को कई बिंदु करीब लाते हैं।
दरअसल, जापान उन देशों में नहीं है, जो किसी से व्यापारिक संबंध बनाते हुए अन्य देश का शोषण करने के संबंध में सोचता हो। उसने भारत की विगत सत्तर सालों के दौरान विभिन्न परियोजनाओं में खुले हाथ मदद की है। जापान की मदद से ही भारत में बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट आ रहा है। जापान दूसरे देशों को जिस दर पर ऋण देता है, उससे काफी कम दर पर भारत को मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन परियोजना के लिए जरूरी राशि मुहैया करा रहा है। ऋण वापसी की मियाद भी 25 वर्षो की जगह 50 वर्ष रखी गई है। आर्थिक दिक्कत से जूझ रहे दिल्ली मेट्रो रेल निगम के चौथे फेज के निर्माण में तेजी लाने के लिए जापानी कंपनी जापान इंटरनेशनल कॉ-ऑपरेशन एजेंसी ने मदद का हाथ बढ़ाया है। कोरोना वायरस संक्रमण के चलते 22 मार्च, 2020 से अचानक बंद हुई दिल्ली मेट्रो 7 सितम्बर से फिर शुरू हुई लेकिन इस बीच उसे 1500 करोड़ रुपये के आसपास का घाटा हो गया। ऐसे में नये प्रोजेक्ट के लिए आर्थिक दिक्कत आ रही थी।

भारत में जापान की दर्जनों कंपनियों ने अरबों रुपये का निवेश किया हुआ पर उन पर कोई आरोप नहीं लगा सकता कि उनकी मंशा में कोई खोट है। दिल्ली, मुंबई, गुरु ग्राम, नोएडा वगैरह में हजारों जापानी नागरिक भारत के विकास में योगदान दे रहे हैं। होंडा सिएल कार, होंडा मोटरसाइकिल, मारुति, फुजी फोटो फिल्मस, डेंसो सेल्स लिमि., डाइकिन श्रीराम एयरकंडिशनिंग, डेंसो इंडिया लिमि. समेत लगभग दो दर्जन जापानी कंपनियों के भारत के विभिन्न भागों में स्थित दफ्तरों और फैक्ट्रियों में जापानी काम करते हैं। ये भारतभूमि को गौतम बुद्ध की भूमि होने के कारण पूजनीय मानते हैं। इन जापानियों में भी भारतीय संस्कार ही हैं। ये आदतन मितव्ययी होते हैं। संयुक्त परिवार की संस्था को भी महत्त्व देते हैं। कुछ जापानी एक-दूसरे के करीब रहते हैं, तब ये कार पूल करके ही दफ्तर जाना पसंद करते हैं। तो कह सकते हैं कि आम तौर पर दोनों देशों की नैतिकताएं मिलती-जुलती हैं। निश्चित रूप से जापान भारत को विशेष मित्र का दर्जा देता है। इस संबंध को मजबूती देने में भगवान गौतम बुद्ध का आशीर्वाद भी है। इसीलिए जापान भारत से अपने को भावनात्मक स्तर पर करीब पाता है। जापान से भारत में हर साल हजारों की संख्या में बुद्ध धर्म को मानने वाले तीर्थयात्री आते हैं। सामान्यत: बोधगया-राजगृह-सारनाथ-वाराणसी जाते हैं। सारनाथ में गौतम बुद्ध ने बुद्धत्व प्राप्त करने के बाद अपना पहला उपदेश दिया था। बौद्ध अनुयायियों का गौतम बुद्ध की जन्मस्थली भारत को लेकर आकषर्ण स्वाभाविक है। बोधगया-राजगीर-नालंदा सर्किट देश के खासमखास पर्यटन स्थलों में माना जाता है। राजधानी के इंद्रप्रस्थ पार्क में स्थित विश्व शांति स्तूप की व्यवस्था करती हैं कात्सू सान। मूलत: जापानी हैं। 1956 में भारत आ गई थीं, भारत और बुद्ध धर्म को करीब से जानने के इरादे से। भारत आने के बाद यहां पर उनका मन इस तरह से लगा कि फिर उन्होंने यहां पर बसने का निर्णय ले लिया। भारत को संसार का आध्यात्मिक विश्व गुरु  मानती हैं। धारा प्रवाह हिंदी बोलती हैं। उन्होंने हिंदी प्रसिद्ध साहित्यकार काका साहेब कालेकर जी से सीखी थी। वो राजधानी में सरकार की तरफ से होने वाली सर्वधर्म प्रार्थना सभाओं का गुजरे दशकों से स्थायी अंग हैं। आगामी 30 जनवरी को गांधी के बलिदान दिवस पर राजघाट में होने वाली प्रार्थना सभा में भी भाग लेंगी। कहती हैं कि भारत-जापान मैत्री अटूट है, क्योंकि इसका आधार भगवान बुद्ध हैं, जो भारत से हैं।
भारत-जापानी संबंधों पर बात करते हुए चीनी दृष्टिकोण को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। जापान के उपप्रधानमंत्री के तौर पर तारो असो 2006 में भारत के दौरे पर आए थे। उस वक्त उन्होंने कहा था, ‘अतीत के 1500 सालों से भी ज्यादा वक्त से इतिहास का ऐसा कोई वाकया नहीं है जब चीन के साथ हमारा संबंध ठीकठाक रहा हो।  इस बीच, भारत और चीन के संबंध भी कतई मैत्रीपूर्ण नहीं माने जा सकते।’ चीन ने भारत की हजारों एकड़ जमीन पर कब्जा जमाया हुआ है। वो भारत के शत्रु पाकिस्तान का मित्र भी हैं, तो भारत-जापान की चीन को लेकर स्थिति भी लगभग एक है। इसलिए दोनों देशों को चीन का भी हर स्तर पर मुकाबला भी करना होगा।

डॉ. आर.के. सिन्हा


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment