बतंगड़ बेतुक : हमारा क्या, मरेंगे मर जाएंगे

Last Updated 16 Jan 2022 12:14:55 AM IST

झल्लन बिना मास्क के धड़धड़ाता हुआ चला आया और सोशल नियरिंग से बेखौफ हमारे निकट सरक आया।


बतंगड़ बेतुक : हमारा क्या, मरेंगे मर जाएंगे

हमने कोशिश की कि थोड़ा फासला बनाएं, सोशल डिस्टेंसिंग अपनाएंगे और झल्लन से थोड़ी दूर खिसक जायें। पर झल्लन ने जैसे हमारा इरादा भांप लिया और हमारा हाथ कसकर थाम लिया। बोला, ‘काहे ददाजू, कोरोना से डर रहे हो, काहे अपने ऊपर जुलुम कर रहे हो?’
उधर कोरोना की तीसरी लहर हरहरा रही थी, हमें ही नहीं हर किसी को डरा रही थी और इधर झल्लन कोरोना के अनुरूप सावधानी बरते बिना लापरवाही दिखा रहा था, हमें भी कोरोना अनुरूप व्यवहार के लिए उकसा रहा था। हमने कहा, ‘झल्लन, देश कोरोना की डरावनी तीसरी लहर की चपेट में आ गया है  और इधर तेरे ऊपर बेहूदगी का बादल छा गया है। भूल गया कि दूसरी लहर ने कैसा कहर ढाया था और पूरे देश में कैसा कोहराम मचाया था।’ झल्लन बोला, ‘देखिए ददाजू, जब दूसरी लहर हमें कुछ समझा-सिखा नहीं पायी, हमारी बहादुरी का कुछ नहीं बिगाड़ पायी तो तीसरी लहर हमारा क्या उखाड़ पाएगी, कुछ दिन तमाशा करेगी फिर ये भी उतर जाएगी।’
हमने कहा, ‘झल्लन, हम तुझसे ऐसी मूर्खतापूर्ण बात की उम्मीद नहीं करते थे, हम तो तुझे समझदार समझते थे।’ झल्लन बोला, ‘ददाजू, हम पर उंगली मत उठाइए, हमारी पक्की समझदारी को नासमझी मत बताइए। हम न तो कर्ता हैं न धर्ता हैं, हम तो अपने नेता और अपनी जनता का अनुकरण कर रहे हैं, सो हम तो सिर्फ अनुकर्ता हैं।’ हमने कहा, ‘कैसी बात करता है झल्लन, प्रधानमंत्री-मुख्यमंत्री सब बार-बार टीवी पर आ रहे हैं और कोरोना अनुरूप व्यवहार कैसे करना है, यह बार-बार बता रहे हैं और तू कहता है कि जैसे नेता चला रहे हैं तू वैसे चल रहा है, तेरा ये कुतर्क हमें बहुत खल रहा है।’ झल्लन बोला, ‘टीवी पर नेतानि की बात जैसे कुत्तन की लात, जो बोलते हैं वो करते नहीं और जो करते हैं वो बोलते नहीं। हर नेता एक तरफ कोरोना पर उपदेशभरी जुबान चला रहा है और दूसरी तरफ रैलियों में बिना मुछीका वाली अनियंत्रित भीड़ जुटा रहा है। न नेता को भीड़ जुटाने में डर लगता है और न भीड़ को जुटने में डर लगता है। जब ये लोग कोरोना से भय नहीं खायें तो हम काहे डर दिखाएं।’

हमने कहा, ‘अगर ये लोग मूर्खता करें और विनाशकारी लापरवाही दिखाएं तो इसका मतलब यह तो नहीं होता कि हम भी लापरवाही पर उतर आयें, जाहिल भीड़ का हिस्सा बन जायें, कोरोना के प्रसार में सहायक बन जायें और सबकी जान पर खतरा ले आयें।’ झल्लन बोला, ‘देखिए ददाजू, आप खूब सतर्कता बरतें और खूब कोरोना अनुरूप चाल-चलन दिखाएं लेकिन यह असंभव है कि आप इससे बच पायें। अगर आप भीड़ में नहीं जाएंगे तो भीड़ आप तक आ जाएगी, आप लाख बचें आपको कोरोना दे जाएगी। जो भीड़ सभा-रैलियों, धर्म-कर्म, हाट-बाजारों में जुटकर वापस घर जाएगी तो जाहिर है कि तीसरी लहर को भी घर ले जाएगी। ऐसे में नियम पालकों की जमात चाहे जितनी सावधानी बरत ले भीड़ की छूत से नहीं बच पाएगी।’ हमने कहा, ‘इसका मतलब यह नहीं झल्लन कि भीड़ जो कर रही है वह हम भी करें और बैठे-बिठाए मुसीबत को आमंत्रित करें।’
झल्लन बोला, ‘ददाजू, आपका नजरिया सही नहीं है, इसे आपको बदलना पड़ेगा। सच तो यह है कि जो हमारा लोकतांत्रिक नेता करवाएगा और जो हमारी लोकतांत्रिक भीड़ करेगी हमें भी वही करना पड़ेगा।’ हमने कहा, ‘अगर नेता गलत करवा रहा है, भीड़ गलत कर रही है तो तू भी यही करेगा। अपने देश-समाज के स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं धरेगा?’ झल्लन बोला, ‘ददाजू, देश अपना काम कर रहा है, कोरोना आएगा-जाएगा पर देश का कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा।’
हमने कहा, ‘दूसरी लहर ने देश की अर्थव्यवस्था चौपट कर दी, करोड़ों लोगों को बेघर-बार कर दिया, लोगों को तंगहाली से लाचार कर दिया और तू कहता है कि कोरोना कुछ नहीं कर पाएगा, हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा?’
झल्लन बोला, ‘ददाजू, आप हमेशा नेगेटिव सोचते हो, कभी-कभी पॉजिटिव भी हो जाया करो और सिक्के के दूसरे पहलू को भी ध्यान में ले आया करो। अरे जिनकी किस्मत में मरना-बेरोजगार होना लिखा था सो हो गये, पर यह भी तो सोचिए कि कितने बारोजगार हुए और कितनों के गोदाम माल से भर गये। दवा कंपनियों से पूछिए, अस्पतालों से पूछिए, डॉक्टरों से पूछिए, जमाखोरों से पूछिए, इन सबको बचाने वाले अधिकारियों से पूछिए, अधिकारियों के संरक्षक नेताओं से पूछिए कि कैसे वे लाखों से करोड़ों में खेलने लगे और जो करोड़ों में खेल रहे थे वे अरबों में खेलने लगे। मानते हैं कि आपकी नजर में कोरोना बदहाली लाया पर हमारी नजर में जमकर खुशहाली भी लाया।’ हमने कहा, ‘तेरे लिए तो सिर्फ बरबादी लाएगा, कोरोना से डरना सीख ले नहीं तो तुझे कोई नहीं बचा पाएगा।’
झल्लन बोला, ‘देखो ददाजू, न हम कोरोना से खौफ खाएंगे, न भीड़ से घबराएंगे, सो न हम मास्क लगाएंगे न सोशल डिस्टेंसिंग बनाएंगे। नियम-कानून मानने वाले हम जैसों का क्या रहना क्या न मानना, रहेंगे तो रह जाएंगे नहीं तो लंबे सफर पर निकल जाएंगे।

विभांशु दिव्याल


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