विश्व : अधिनायकवाद, पूंजीवाद की पीड़ा
नये वर्ष में जो कुछ भी हुआ वह बड़ा प्रश्न खड़ा करता हुआ दिखाई देता है। कजाकिस्तान मध्य एशिया का सबसे बड़ा देश है।
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क्षेत्रफल की दृष्टि से दुनिया 9वां सबसे बड़ा देश। इसकी भू-राजनीतिक स्थिति इसको और अहम बनाती है। इसके उत्तर में रूस है, जिसके साथ इसकी करीब 7,600 किमी. लंबी सीमा है, पूर्व में चीन की सीमा मिलती है।
जब 1990 तक मध्य एशिया रूस के अंतर्गत था, तब सैनिक दृष्टि से कजाकिस्तान रूस के लिए सबसे अहम प्रदेश था। आणविक परीक्षण स्थल से लेकर स्पेस शटल का केंद्र भी यहीं से होता था। आज भी कई मसलों पर रूस कजाकिस्तान पर निर्भर है। इसकी 19 मिलियन की आबादी में करीब 4 मिलियन रुसियन मूल के लोग रहते हैं। सत्ता के गलियारों में उनकी पकड़ है। दूसरी महत्त्वपूर्ण भूमिका सुरक्षा परिषद की है, जिसे सीएसटो कहा जाता है, जिसके अंतर्गत रूस के साथ 5 और देश शामिल हैं, लेकिन हुकूम रूस का चलता है।
इस बार भी अल्माटी में उपद्रव जोर पकड़ने लगा और सेना नाकाम दिखने लगी तो रूस ने पीसकीपिंग फोर्स भेज दी। बलपूर्वक लोगों पर गोलियां दागी गई, सैकड़ों हताहत हुए, हजारों जख्मी, लाखों जेल में ठूंस दिए गए। दस दिनों के प्रयास के बाद स्थिति काबू जरूर हुई लेकिन लोगों का क्रोध अभी धधक रहा है। जानना जरूरी है कि उपद्रव का मुख्य कारण क्या था? किस्से अनेक हैं, कहानियां भी कई सिद्धांतों की विवेचना करती है। कहानी नये वर्ष के आगमन से शुरू होती है। एलपीजी यातायात का मुख्य ईधन हुआ करता है, जिसका बहुत बड़ा स्रोत कजाकिस्तान के पश्चिमी शहर में है, जहां विद्रोह की चिंगारी फूटी। हुआ यह कि सरकार ने एलपीजी से सब्सिडी खत्म कर दी। निजी कंपनियों के हाथों में ईधन की बागडोर सौंप दी, रातोरात ईधन की कीमत दुगुनी हो गई। यह थ्यरी अत्यंत ही सरल और एक छोटा सा हिस्सा है विद्रोह के कारण का।
कारण और बहुतेरे हैं। सबसे बड़ा कारण अधिनायकवादी राजनीतिक व्यवस्था है, जो 1991 से निरंतर अभी तक चलती आ रही है। सत्ता के केंद्र में कजाकिस्तान के प्रथम राष्ट्रपति नजरबायेव की भूमिका है। 1991 से 2019 वह सत्ता की बागडोर सीधे अपने हाथों में लिए हुए थे। उनके कार्यकाल में करीब दर्जनों बार राजनीतिक विद्रोह की तेज लपट उठी थी, लेकिन उसे रूस की मदद से हर बार दबा दिया गया। 2019 में नजरबायेव ने सत्ता का हस्तांतरण किया। टोकायेव को राष्ट्रपति बनाया गया। लेकिन नजरबायेव खुद राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के निदेशक के रूप में परदे के पीछे से सत्ता के अहम अंग बने हुए थे। जनता के विरोध का सबसे अहम कारण था नजरवायेव को सत्ता से दूर करना।
दूसरा कारण था गरीबी और बेरोजगारी। तकरीबन 20-25 प्रतिशत यूथ बेरोजगार है। भौगोलिक बंदरबांट की जिरह में बाहरी शक्तियों का हस्तक्षेप भी कजाकिस्तान में बहुत अर्से से चला आ रहा है। 1991 के बाद से ही अमेरिका की निगाह कजाकिस्तान पर थी। 1993 में न्यूक्लियर डील पर अमेरिका ने कजाकिस्तान से साथ आगे बढ़ाया जो 2000 के बाद भी चलता रहा। वहां की अर्थव्यवस्था में अमेरिकी लागत भी बढ़ती गई। 2000 के बाद चीन की शिरकत बढ़ी। चीन के ओबीआर प्रोजेक्ट का अहम केंद्र कजाकिस्तान बना। भूमि अधिग्रहण शुरू किया गया। सबसे मजबूत बाहरी शक्ति के रूप में रूस मध्य एशिया के बीचोंबीच है। सुरक्षा ढांचा रूस द्वारा निर्धारित किया जाता है। इस बार भी वैसा ही हुआ। कजाकिस्तान के लोगों के बीच संशय है कि क्या रूस कजाकिस्तान के उत्तरी हिस्से को अपने क्षेत्र में मिलाने की व्यूह रचना तो नहीं बना रहा है। इस डर का बुनियादी कारण भी है। 2019 में रूस की संसद ने यह चेतवानी दी भी थी।
प्रश्न भारत का भी है। मध्य एशिया के देशों के साथ भारत की सांस्कृतिक संबंध रूस के अधिपत्य के पहले से बना हुआ है। पाकिस्तान की वजह से मध्य एशिया पूरी तरह से भारत से दूर खिसक गया है। ऐसे हालात में हमारी लकीर दो रेखा पर निर्भर है, रूस का साथ या अमेरिका के संग। दोनों की प्राथमिकताएं भारत से अलग हैं। इसलिए जरूरत अपना वजूद को बढ़ाने की है। इस बाबत प्रयास किए भी जा रहे हैं। बहरहाल, असंतोष की चिंगारी बनी हुई है, और मौका मिलते ही फिर से जंगल की आग बनकर फैल सकती है।
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