सरोकार : 'अनर्गल टिप्पणी' माफी है नाकाफी

Last Updated 16 Jan 2022 12:11:53 AM IST

एक बार फिर कुत्सित पुरुष मानसिकता संकीर्ण और सतही सोच के साथ स्त्रियों पर हमलावर है।


सरोकार : 'अनर्गल टिप्पणी' माफी है नाकाफी

महिलाओं को निशाना बना उनके विरु द्ध अभद्र और असहनीय टिप्पणियों और उन्हें कमतर साबित करने के कुप्रयोजन ने एक बार फिर इस जमात की पोल खोल कर रख दी है। छीछालेदार होने के बाद माफीनामे और कबूलनामे की फौरी औपचारिकता के बाद क्या ऐसी घटनाओं को ठंडे बस्ते में बंद कर दिया जाना चाहिए? शायद नहीं क्योंकि अब ऐसी करतूतों के लिए माफी मांगकर पतली गली से निकल लेना काफी नहीं है। अब तो ऐसे अपराध के लिए सजा की होनी चाहिए।
प्रसिद्ध शायर नज्मी ने कहा है कि ‘अपनी खिड़कियों के कांच ना बदलो/अभी लोगों ने अपने हाथ से पत्थर नहीं फेंके हैं/डर पत्थर से नहीं डर उस हाथ से है, जिसने पत्थर पकड़ रखा है/बंदूक अगर महावीर या गांधी के हाथ में है तो डर नहीं/वही बंदूक अगर हिटलर के हाथ में है तो डर है/हर झूठ में एक सच्चाई का दर्शन होता है कि पत्थर भी उन पेड़ों की तरफ फेंके जाते हैं जो फलदार होते हैं।’
 हाल की घटना इसकी पुष्टि करती है, जिसमें बॉलीवुड अभिनेता सिद्धार्थ ने ट्विटर पर शटलर साइना नेहवाल के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। उनकी इस अभद्र टिप्पणी से समूची कौम का अपमान हुआ है। महिलाओं की इज्जत तार-तार हुई है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सेक्सियस्ट जैसी अश्लील टिप्पणी की आड़ में कुंठित और सड़ी-गली मानसिकता के जरिए महिलाओं की गरिमा को क्षीण करने की कोशिश की जाती रही है।  
आजादी के इतने सालों बाद भी स्त्रियों की समानता, समावेशीकरण और समग्रता की बात बेमानी लगती है। पलित कुंठाएं किस कदर पुरुष मानसिकता पर आज भी हावी हैं। मौजूदा घटना इसका बेहतर उदाहरण है, लेकिन क्या इसका औचित्य है कि ऐसे कुकृत्यों के बाद केवल माफीनामे से काम चला लिया जाए? क्या इस बात की दरकार नहीं कि ऐसे लोगों को बिना वक्त गंवाए सलाखों के पीछे पहुंचाया जाए। बार-बार अस्मिता पर प्रहार और पल भर में माफी का प्रपंच। अब यह कतई स्वीकार्य नहीं। महिलाओं की गरिमा को क्षीण करने वाले ऐसे आतताइयों को दंड मिलना ही चाहिए। उनकी भोथरी सोच को बार-बार प्रश्रय क्यों मिले? इस तरह के आक्षेप महिलाएं सदियों से झलेती रही हैं। निराशा, अवसाद, कुंठा और आधी आबादी के साथ कदम ताल न कर पाने की अवगुंठा इस खास वर्ग की मानसिकता में स्पष्ट दिखती है।

प्रश्न यह भी है आज देश की तमाम महिला नेत्रियां जिन्होंने बखूबी देश और राज्य की बागडोर संभाल रखी है; क्या उन्हें इस दिशा में गंभीरता से सोचने की जरूरत नहीं। 33 प्रतिशत के आरक्षण की बात तो देर-सबेर तो होती रहेगी, हो सके तो इस बार सत्र की शुरु आत से पूर्व ही सर्वदलीय बैठक बुला कर ऐसे अतिवादियों के खिलाफ कोई सख्त बिल लाने पर चर्चा हो। सख्त आईटी एक्ट के अनुपालन के जरिए इन पर लगाम लगाई जाए। यह सकारात्मक है कि हो हल्ले और राष्ट्रीय महिला आयोग के नोटिस भेजने के बाद संबंधित अभिनेता द्वारा माफी मांग ली गई है, लेकिन माफीनामे से ऐसे बयानवीरों को माफ नहीं किया जा सकता। ऐसे लोग फिर इसी माफीनामे की आड़ में अपने कुत्सित और कुंठित हथियार चलाते रहेंगे। बेहतर हो कि ऐसे अपराधियों के साथ सख्ती से निपटा जाए। और इन पर कानूनी शिंकजा कसा जाए।



Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment