आस्था : श्री काशी विश्वनाथो विजयतेतराम!

Last Updated 14 Dec 2021 12:23:03 AM IST

अद्भुत। वाकई अद्भुत था अनेक योगायोग से परिपूर्ण सोमवार का वह दिन, जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने श्री काशी विश्वनाथ कॉरीडोर का लोकार्पण किया।


श्री काशी विश्वनाथ कॉरीडोर का लोकार्पण

उसे देश के लोगों को समर्पित किया। इस अवसर पर न सिर्फ  काशी, बल्कि देश-विदेश का हिंदू जनमानस झूम रहा था। गर्वित था। खुशी के अश्रु बहा रहा था।
दरअसल, वह क्षण ही ऐसा था। क्योंकि उस समय काशी में इतिहास गढ़ा जा रहा था। या यूं कहिए इतिहास सुधारा जा रहा था। औरंगजेब एवं शाहजहां जैसे जिन मुगल बादशाहों ने काशी विश्वनाथ मंदिर सहित हमारे अनेक धार्मिंक आस्था केंद्रों को ध्वस्त किया, आज तक हम उन्हें धिक्कारने के बजाय सम्मान ही देते आए हैं। देश की राजधानी दिल्ली में शाहजहां रोड एवं औरंगजेब रोड से गुजरते हुए हमारे चुने हुए राजनीतिक आकाओं को आज तक एक बार भी यह अहसास नहीं हुआ कि इन नामों ने भारत की आस्था-अस्मिता को धूल-धूसरित करने में कोई कसर नहीं रखी थी। उलटे कुछ मतिभ्रमित इतिहासकारों ने इन मुगल बादशाहों को इतिहास का हीरो सिद्ध करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। शाहजहां के बनवाए एक मकबरे को दुनिया का सातवां आश्चर्य बताकर गर्व करने वाले लोगों की आज भी कोई कमी नहीं है भारत में।
यह मानसिकता दिल्ली के सियासतदानों तक ही सीमित नहीं रही। इसकी बानगी काशी में भी कुछ वर्ष पहले उस समय दिखाई दी थी, जब काशी विश्वनाथ कॉरीडोर के निर्माण की शुरु आत होने जा रही थी। उस समय प्रस्तावित कॉरीडोर के मार्ग में आने जा रही 300 से ज्यादा इमारतों को अधिग्रहीत करने और हटाने का काम शुरू हुआ तो यह कहकर इस कार्य का विरोध किया गया कि मोदी-योगी तो काशी के मंदिरों को ही तोड़े डाल रहे हैं, लेकिन इस विरोध का सामना करते हुए जब वे इमारतें हटीं तो ऐसे-ऐसे अद्भुत मंदिर सामने आए, जिन्हें वर्षो से किसी ने देखा ही नहीं था। पुरातत्त्व एवं वास्तु की अनमोल धरोहर ये मंदिर भी आज गंगा मैया से बाबा विश्वनाथ के मंदिर की ओर जाते हुए भक्तों एवं पर्यटकों के आकषर्ण का केंद्र बनेंगे। लोग इन्हें देख सकेंगे। इनकी भी पूजा अर्चना कर सकेंगे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का कोई भी काम निर्थक नहीं होता है।

काशी विश्वनाथ कॉरीडोर के लोकार्पण समारोह में सभी भाजपाशासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों सहित देश भर से अनेक धर्माचार्यों का उपस्थित रहना भी निर्थक नहीं था। प्रधानमंत्री के साथ नौकाविहार करते हुए, काशी के घाटों का सौंदर्य निहारते हुए, इन मुख्यमंत्रियों के ध्यान में अपने राज्यों के भी तीर्थस्थल एवं घाट जरूर आए होंगे, और उन्हें लेकर उनके मन में कुछ परिकल्पनाएं भी उभरी होंगी कि कैसे किसी तीर्थ क्षेत्र का विकास किया जा सकता है। निश्चित रूप से ये सारे मुख्यमंत्री अपने-अपने राज्यों में इन परिकल्पनाओं को साकार करने का प्रयास भी करेंगे। बात चाहे उत्तर प्रदेश में काशी-अयोध्या के पुनरोद्धार की हो, या उत्तराखंड में बाबा केदारनाथ धाम के पुनरोद्धार की, ये उपलब्धियां हर हिंदू का सीना गर्व से फुला देती हैं, माथा ऊंचा कर देती हैं।
इसमें कोई शक नहीं कि जब भी किसी आक्रांता ने हमारी धार्मिंक आस्थाओं पर हमला किया होगा, तो यही सोचकर किया होगा कि इसी बहाने वह विशाल हिंदू समाज को भयाक्रांत कर सके, उस पर अपना वर्चस्व सिद्ध कर सके। खुद को इतना ताकतवर दिखा सके कि कोई उसके सामने अपनी जायज मांगें भी लेकर न जा सके। उत्तर में बाबर, शाहजहां एवं औरंगजेब तो दक्षिण में टीपू सुल्तान जैसे बादशाह इसी मंशा के साथ हिंदुओं की धार्मिंक आस्थाओं पर लगातार सदियों तक चोट करते रहे, लेकिन हम हाथ-पर-हाथ धरे बैठे रहे, कुछ न कर सके। क्योंकि हम असंगठित थे। कभी रानी भवानी, अहिल्याबाई होल्कर या महाराजा रणजीत सिंह ने काशी विश्वनाथ मंदिर या ध्वस्त किए गए किसी अन्य धार्मिंक केंद्र के पुनरोद्धार का बीड़ा उठाया तो वह उनके स्तुत्य व्यक्तिगत साहस का परिणाम था। भारत के स्वतंत्र होने एवं एक आधिकारिक गणतंत्र के रूप में सामने आने के बाद पहले प्रभासतीर्थ में सोमनाथ का उद्धार, फिर अयोध्या में श्रीराम जन्मस्थान विवाद का निपटारा एवं भव्य मंदिर निर्माण की शुरुआत, और अब काशी विश्वनाथ कॉरीडोर का लोकार्पण वास्तव में हमारे संगठित गणतंत्र की बड़ी उपलब्धियां हैं।
आधुनिक भारत में महात्मा गांधी से लेकर सरदार पटेल, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी जैसे अनेक महापुरु षों के मन में भारत की ध्वस्त की गई आस्थाओं को पुनरु ज्जीवन देने का भाव रहा है। उनके विभिन्न बयानों में यह देखा भी जा सकता है, लेकिन तब के भारत का राजनीतिक नेतृत्व न जाने किस संकोच में इन महापुरुषों की भावनाओं को मूर्तरूप देने या उनका सम्मान करने का साहस नहीं जुटा पाता था। आजादी के वर्षो बाद तक हिंदू समाज भी अपने ऐसे ही शासकों की ओर मूकदर्शक बना ताकता रहा, लेकिन उसे सेक्युलरिज्म के ढोंग के सिवा कुछ प्राप्त नहीं हुआ।
1985 के बाद विश्व हिंदू परिषद एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा शुरू किए गए श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन से हिंदू समाज के संगठन की शुरुआत हुई। इसी आंदोलन की उपज प्रधानमंत्री मोदी आज काशी विश्वनाथ मंदिर सहित देश के अनेक धार्मिंक केंद्रों के उद्धारक बनकर सामने आए हैं। 2014 में जब उन्होंने काशी जाकर कहा था कि ‘उन्हें मां गंगा ने बुलाया है’, तो बहुत से लोगों ने उनके इस वाक्य का मजाक उड़ाया था।
आज काशी का निखरता वैभव देख ऐसे लोगों की जुबान भी बंद हो गई होगी। यह काम आसान नहीं था, लेकिन काशी के राजा विश्वनाथ जी का जिस पर वरदहस्त हो, वह क्या नहीं कर सकता। वही वरदहस्त आज प्रधानमंत्री मोदी पर साक्षात नजर आ रहा है। मां गंगा एवं विेर काशी विश्वनाथ के आशीर्वाद से ही नरेन्द्र मोदी इस लक्ष्य को पूरा कर सके हैं। काशी के नये रूप, नई सज्जा को देखकर आज संपूर्ण विश्व का हिंदू समाज विजयी महसूस कर रहा है, लेकिन वास्तविक विजय तो यह काशी विश्वनाथ की है। इसलिए गर्व से कहिए श्री काशी विश्वनाथो विजयतेतराम!

आचार्य पवन त्रिपाठी


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