टीएमसी : नई जमीन तलाशने की कवायद

Last Updated 15 Dec 2021 12:25:23 AM IST

पश्चिम बंगाल में लगातार तीसरी दफा सत्ता हासिल करने के साथ-साथ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को करारी शिकस्त देने के बाद से तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) प्रमुख एवं बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के हौसले बुलंद हैं।


टीएमसी : नई जमीन तलाशने की कवायद

भाजपामुक्त भारत के नारे के साथ बंगाल के बाहर निकली ममता अब ऐसा कुछ कह और कर रही हैं, जिससे लगता है कि ममता केवल भाजपा नहीं, कांग्रेसमुक्त भारत चाहती हैं।  
वैसे तो 19 दिसम्बर को कोलकाता नगर निगम और अगले साल अप्रैल तक सूबे की एक सौ से ज्यादा शेष नगर पालिकाओं के चुनाव प्रस्तावित हैं, लेकिन इन चुनावों से इतर ममता की निगाहें इन दिनों दिल्ली (केंद्र) की उस सत्ता पर है, जिसके लिए 2024 को चुनाव होंगे।

ममता न केवल आगामी लोक सभा चुनाव में भाजपा को हराने का दावा कर रही हैं, बल्कि इस दावे को अमलीजामा पहनाने के लिए अन्य राज्यों का दौरा कर तृणमूल कांग्रेस के विस्तार के साथ-साथ प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से मूल यानी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को आड़े हाथों लेने में भी लगी हैं। इसी साल दो मई के आए बंगाल विधानसभा चुनाव के नतीजे के बाद से अब तक ममता उत्तर प्रदेश, गोवा, दिल्ली, असम और मुंबई (हाल में) समेत कई राज्यों का दौरा और वहां के क्षेत्रीय दलों के प्रमुखों से मुलाकात कर यह मंशा जाहिर कर चुकी हैं कि अगर अगले आम चुनाव में भाजपा को सत्ता से बाहर करना व कांग्रेस को और नीचे गिराना है, तो उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर तृणमूल कांग्रेसी की मजबूती के लिए काम करना होगा।

ममता की इस बात का कई क्षेत्रीय दल खुले तौर पर समर्थन कर रहे हैं, तो कुछ दल मौन स्वीकृति की भूमिका में नजर आ रहे हैं। ममता ने अब तक जिस-जिस राज्य का दौरा किया है, वहां से कुछ न कुछ ‘खेला’ करके ही लौटी हैं, लेकिन मुंबई दौरे के दौरान ममता ने क्या खोया या क्या पाया, इसका सही आकलन करना फिलहाल जल्दबाजी  होगी। अपने सांसद भतीजे अभिषेक बनर्जी के साथ मायानगरी पहुंचीं ममता इस वजह से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से नहीं मिल सकीं कि उद्धव अस्वस्थ थे, हालांकि भुआ-भतीजे ने उद्धव के पुत्र आदित्य ठाकरे से अवश्य मुलाकात की और साथ में सिद्धि विनायक के दशर्न भी किए। इसके अगले दिन ममता अभिषेक के साथ राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के मुखिया शरद पवार से मिलने पहुंचीं, लेकिन इन दोनों मुलाकातों से ममता के हाथ क्या लगा? इसका उत्तर फिलहाल भविष्य के गर्भ में छिपा है।

फिलहाल, मोटे तौर पर इतना ही कहा जा सकता है कि गोवा और दिल्ली दौरे के दौरान ममता ने भाजपा और कांग्रेस को जिस तरह करारा झटका दिया था। मायानगरी में ममता वैसा कुछ ‘खेला’ नहीं कर पाई। मालूम हो कि अग्नि कन्या के नाम से मशहूर ममता बनर्जी तृणमूल का राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार करने में लगी हैं, जिसके मद्देनजर वो लगातार अलग-अलग राज्यों का दौरा कर रही हैं।  

बताते चलें कि विभिन्न मांगों को लेकर पिछले दिनों ममता बनर्जी ने दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की थी। ममता की ठाकरे और पवार के संग मुलाकात ऐसे वक्त में हुई, जब तृणमूल और कांग्रेस का झगड़ा जगजाहिर हो चुका है। ऐसे में ममता ने यूपीए के अस्तित्व और राहुल गांधी का नाम लिए बगैर विदेश यात्रा का जिक्र कर कांग्रेसी खेमे में खलबली मचा दी। मायानगरी में ममता ठाकरे और पवार को करीब ला पाई हों या नहीं, लेकिन कांग्रेस को अपने से और अधिक दूर अवश्य कर दिया है।

मालूम हो कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी व शिवसेना महा विकास अघाड़ी (एसवीए) गठबंधन में कांग्रेस की सहयोगी हैं यानी ममता ने एमवीए के तीन साथियों में से दो से मुलाकात की और एक से नहीं। इससे पहले जब ममता दिल्ली दौरे पर गई थीं तो उनकी मौजूदगी में कांग्रेस के कीर्ति आजाद से लेकर कई दिगग्ज नेता तृणमूल में शामिल हुए थे और वहां भी ममता ने सोनिया गांधी से दूरी बनाकर रखी थी। ममता का मायानगरी दौरा इसलिए भी महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है कि तृणमूल 2024 के आम चुनावों से पहले भाजपा के खिलाफ विपक्षी दलों को एकजुट करने के प्रयासों के तहत खुद का दायरा राष्ट्रीय करना चाहती है, और कांग्रेस को दरकिनार कर तृणमूल कांग्रेस विपक्षी दलों के खेमे का नेतृत्व करना चाहती है। यही वजह है कि तृणमूल कांग्रेस बंगाल से बाहर निकल कर अब अन्य राज्यों में भी अपनी स्थिति मजबूत करने में जुट गई है।

शंकर जालान


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