मीडिया : ऑनलाइन ‘गेमिंग’ के खतरे
एक सीरियल ऐक्ट्रेस को पुकारा जा रहा है कि सेट तैयार है और उसे शॉट के लिए तुरंत आना चाहिए, लेकिन वो अपने स्मार्टफोन में लगी रहती है।
![]() मीडिया : ऑनलाइन ‘गेमिंग’ के खतरे |
जब बार-बार उससे कहा जाता है कि उसे शॉट देने के लिए अभी जाना चाहिए तो वह कहती है ‘जरा रुको खेलने दो बड़ा मजा आ रहा है..’ यह इस तरह के गेम्स का विज्ञापन है जो कहता है कि इनको डाउनलोड करो और जी चाहो जितना खेलो और जीतो! इसी तरह कुछ दिनों पहले आते एक विज्ञापन में बड़ा क्रिकेटर कुछ महिलाओं के साथ गेम खेलता हुआ अक्सर हार जाता था और एक महिला जीत की खुशी मनाती थी। हारा हुआ खिलाड़ी खिसियाता सा नजर आता था!
कुछ पहले ही एक खबर आई थी, जिसके अनुसार दो लड़के अपने-अपने स्मार्टफोनों पर खेलते हुए पीछे आती मालगाड़ी से कटकर मर गए! वे रेल टेक पर खेलते जा रहे थे और खेल की जीत-हार में इतने खोए थे कि उनको मालूम ही नहीं हुआ कि पीछे गाडी आरही है! खेल खेलते हुए मरने की बात तब सापफ हुई जब पुलिस को उनमें से एक लड़के का स्मार्टफोन पटरी से कुछ दूर पड़ा मिला जो चालू हालत में था, जिसमें वे ‘पब जी’ खेल खेल रहे थे, जिसके स्कोरिंग के आंकड़े आ रहे थे! ये खबर आई गई हो गई! लेकिन हमारे करोड़ों युवा ऐसे खेलों को अब भी खेलते हैं और अब ये खेल एक ‘बड़ी समस्या’ बन चले हैं शायद इसीलिए संसद में उप राष्ट्रपति वैंकैया नायडू को कहना पड़ा कि इन खेलों और उन पर पड़ रहे मानसिक तथा शारीरिक प्रभावों की चिंता की जानी चाहिए और बच्चों पर इनका कुप्रभाव न पड़े, ऐसे उपाय किए जाने चाहिए और समय रहते इनको रेगूलेट किया जाना चाहिए!
एक आकलन के अनुसार में भारत में सबसे अधिक खेले जाने वाले ‘ऑनलाइन गेमों’ में कुछ ऐसे नामों वाले हैं जैसे कि ‘क्लैश ऑफ क्लान्स’,‘क्लैश रोयेल’, ‘कॉल ऑफ ड्यूटी’, ‘फ्री फायर’, ‘केंडीक्रश एंड सोडासेज’, ‘सब वे सर्फर’ ‘पब जी’ आदि! इन ‘ऑनलाइन गेमों’ को गूगल ‘प्ले स्टोर’ से डाउनलोड करना होता है और खेल शुरू होते ही जीत-हार की स्कोरिंग शुरू हो जाती है! हर खेल के कई स्तर होते हैं। हर स्तर कठिन होता जाता है, और दांव बढ़ते जाते हैं और पैसे की हार-जीत होती है! कंप्यूटराइज्ड खेल शुरू में आसानी से जिताकर और जीतने का लालच देते हैं! खिलाड़ी जीतते कम और हारते अधिक हैं! हर खेल खिलाड़ी की क्रमश: ‘ईगो को चुनौती’ देता चलता है और जीतने की उम्मीद में ‘गेमर’ घंटों लगा रहता है! इस समूची प्रक्रिया खेल उनकी ‘लत’ बन जाता है, जिसे खेले बिना वह रह नहीं सकता। ‘गेमर’ चाहता है हर दम खेले, खेलता रहे और हर बार जीते ज्यादा से ज्यादा पैसे बनाए और जैसे कि जुए की लत होती है आदमी जितना हारता जाता है उतना ही अधिक खेलने को उद्यत होता जाता है! इससे युवा नई-नई मानसिक व्याधियों के शिकार हो रहे हैं! घरों में, स्कूल-कॉलेजों में ऐसे ‘गेमर’ लोगों की नजर से बचाकर खेलते हैं!
कुछ खेल उनको टीम बनाकर खेलने का प्रेरित करते हैं! शिक्षा मंत्रालय ने इस सब को देखते हुए स्कूलों के अघ्यापकों को चेताया है कि वे पढ़ने वाले बच्चों पर नजर रखें कि कहीं क्लास में वे पढ़ने की जगह गेम तो नहीं खेल रहे, कहीं वे छिपकर तो नहीं खेल रहे! माता पिताओं से भी चाहा जा रहा है कि वे अगर अपने बच्चे के व्यवहार में कुछ विचित्र व्यवहार देखें तो नोटिस में लाएं। अगर कोई चुपके-चुपके खेलता है, माता-पिता या किसी बड़े के सामने पड़ने पर अचानक अतिरिक्त सजग हो उठता है, ऐसे बच्चों के बदलते व्यवहार पर ध्यान दिया जाना चाहिए और उनको हतोत्साहित करने की कोशिश करनी चाहिए!
इनमें से अधिकांश खेल हिंसा का अभ्यास कराते हैं : आप कितने कम समय में कितने अधिक दुश्मन मार सकते हैं? जितना मार सकते हैं उतने ही जीत सकते हैं! इस प्रसंग में हमें ‘जैकी चान’ की एक फिल्म ‘न्यू पुलिस स्टोरी’ याद आ रही है, जिसमें हांगकांग में खाते-पीते घरों के कुछ बच्चे ऐसे ही खेल खेलते रहते हैं और खेलते-खेलते वे मनुष्यों को टारगेट करने लगते हैं और अंत में पुलिस वालों को मारते रहते हैं और अंत में मारे जाते हैं। ‘ऑनलाइन गेमिंग’ जुआ रूपी नशा है, जिसके अधिकांश खेल हिंसा का दांव लगाना सिखाते हैं। जब तक आप ऑनलाइन खेलते हैं तब तक सब मासूम लगता है, लेकिन जब कभी उसे जीवन में उतार लेते हैं तो अपनी से ही नहीं दूसरों की जिंदगी से खेलने लगते हैं। इसलिए ‘गेमिंग’ को ‘रेगूलेट’ करना जरूरी है!
| Tweet![]() |