शराबबंदी : कारगर नहीं और न ही व्यावहारिक
बिहार में जहरीली शराब, बिहार में जहरीली शराब से हुई मौत, कारगर नहीं और न ही व्यावहारिक, बिहार में शराबबंदी, शराबबंदी
![]() शराबबंदी : कारगर नहीं और न ही व्यावहारिक |
बीते बारह दिनों में बिहार में जहरीली शराब से हुई मौतों का आंकड़ा लगातार बढ़ता ही जा रहा है। आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक अभी तक 42 लोग जहरीली शराब पीने से राज्य के सिवान, गोपालगंज, बेतिया, मुजफ्फरपुर, भागलपुर आदि जिलों में मौत के मुंह में जा चुके हैं जबकि दूसरे जिलों से मरने वालों की सूचना लगातार आ रही हैं। बहुतेरों की आंख की रोशनी चली गई है। अपुष्ट जानकारी के मुताबिक राज्य में जहरीली शराब पीने से तकरीबन कई सौ लोगों की मौत हो चुकी है।
यह सब तब हो रहा है जबराज्य में नशाबंदी लागू है। सवाल है कि इसके बावजूद शराब की आपूर्ति कहां से हो रही है। शराब की आपूर्ति में नेता, प्रशासन, पुलिस और ग्राम पंचायत स्तर तथा वहां के चौकीदार तक की मिलीभगत बताई जाती है। विडंबना है कि राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का इन मौतों पर कहना है कि लोगों की गलत चीज पीने से मौतें हुई हैं। उनके बयान पर टिप्पणी करते हुए राजद के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी कहते हैं कि राज्य के लोग गलत चीज न पिएं, यह राज्य के मुखिया की जिम्मेवारी है कि राज्य के लोगों को पीने के लिए अच्छी चीज मुहैया कराएं और जब राज्य में पूर्ण शराबबंदी है, उस हालत में शराब कहां से आती है।
यह साबित करता है कि राज्य में शराबबंदी नाम की है। पुलिस, प्रशासन और अधिकारियों-कर्मचारियों पर सरकार का कोई अंकुश नहीं है। राज्य के काबीना मंत्री अशोक चौधरी का कथन भी समस्या से पल्ला झाड़ने जैसा है। उनका कहना कि अभी स्पष्ट नहीं है कि मौतें किस वजह से हुई हैं। कारणों का पता लगाया जाना बाकी है जबकि आबकारी मंत्री सुनील कुमार का कहना है कि यह जांच का विषय है। जांच टीम गठित की जा रही है। थाना प्रभारी को निलंबित कर दिया गया है। वह इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई पर मौन साधे हैं।
राज्य में शराब की आपूर्ति हरियाणा से सबसे अधिक होती बताई जाती है। पश्चिमी बिहार के छपरा, सिवान, गोपालगंज, चंपारण, मुजफ्फरपुर, सासाराम आदि जिलों में अधिकतर 75 फीसदी हरियाणा और 25 फीसदी उत्तर प्रदेश से शराब की आपूर्ति होती है। उत्तरी बिहार में उत्तर प्रदेश और नेपाल से तथा पूर्वी बिहार में पश्चिम बंगाल और ओडिशा से आपूर्ति होती है। इन राज्यों से सड़क और नदियों के रास्ते आपूर्ति की जाती है। इसकी जानकारी नेता, पुलिस और प्रशासन को है। फिर भी इसकी रोकथाम की कोई व्यवस्था नहीं है।
सबसे बड़ी बात तो राज्यों की सीमाओं पर चौकसी की है। भ्रष्ट मशीनरी के रहते इस पर अंकुश की बात बेमानी है। जहां तक शराब जहरीली होने का सवाल है, तो भट्टी में कच्ची शराब बनाने वाले इसमें नशे के लिए जानवरों को लगाने वाले इंजेक्शन और कुत्ते मारने वाले पाउडर और इंजेक्शनों तक का इस्तेमाल करते हैं। यह जानते-समझते भी सरकार का मौन क्या दर्शाता है। यह भी है कि शराब पीने वालों को नशा चाहिए, वह भी सस्ता, इस चाहत की खातिर वे ऐसी शराब लेकर पीते हैं। और उसे पीकर मौत को दावत देते हैं।
सुशासन, बेरोजगारी के खात्मे और भ्रष्टाचार पर अंकुश के दावे कुछ भी किए जाएं, असलियत में इन दावों में कोई सत्यता नहीं है। समाजविज्ञानी एवं शिक्षाविद डॉ. जगदीश चौधरी के मुताबिक, पश्चिमी बिहार का आलम तो यह है कि यहां के जिलों में एक भी उद्योग नहीं है। नतीजतन, नौजवानों ने इसे अपना व्यवसाय बना लिया है। बीते सालों में भले महिलाओं की स्थिति में सुधार हुआ है। घरेलू ¨हसा में कमी आई है। पारिवारिक समरसता में भी सुधार हुआ है और अपराधों में भी कमी दिखाई दे रही है। लेकिन नशाबंदी के साथ नशा मुक्ति केंद्र खोलने का सवाल अनसुलझा ही रहा। किसी क्षेत्र या राज्य विशेष में नशाबंदी कानून लागू करने से कुछ नहीं होने वाला। यह व्यावहारिक नहीं है। इसे पूरे देश में कानूनन लागू करना होगा। और जागरूकता अभियान चलाना होगा।
आजादी के बाद राज्यों में नशाबंदी लागू करने का इतिहास काफी पुराना है और वहां नशाबंदी के बावजूद शराब की आपूर्ति और पीने वालों पर अंकुश की बात सपना ही रही है। तमिलनाडु, गुजरात आदि प्रमाण हैं कि नशाबंदी मात्र दिखावा और नारा बनकर रह गई है। शराबबंदी वाले राज्यों में नेता तक शराब पीते पाए गए हैं, जनता शराब पीकर मरती रही है। फिर चाहे वो जहरीली हो या सस्ती और कच्ची। नेतृत्व में दृढ़ इच्छाशक्ति की कमी, भ्रष्ट मशीनरी और जागरूकता के अभाव के बीच नशाबंदी कारगर हो पाएगी, इसमें संदेह है।
| Tweet![]() |