मुद्दा : खतरनाक है पलायन

Last Updated 29 Oct 2021 12:27:25 AM IST

सैकड़ों साल से प्रसिद्ध है कि जिसको कहीं सहारा नहीं मिलता, उसे माता मुंबादेवी की नगरी मुंबई में ममत्व के साथ सहारा मिलता है।


मुद्दा : खतरनाक है पलायन

बगैर किसी भेदभाव के लोग इस लघु भारत में आते रहे हैं, और अपनी प्रतिभा व श्रम के अनुरूप आर्थिक-सामाजिक-राजनीतिक लक्ष्य हासिल करते रहे हैं। अफसोस है कि इस लघु भारत पर अब नारियल की जगह नागफनी प्रवृत्ति के लोग प्रभावी होने लगे हैं। इनके अत्याचार की मार सहन नहीं कर पा रहे लोग मुंबई के मालवणी जैसे इलाकों से पलायन कर रहे हैं। स्थानीय-बाहरी के विवाद के कारण नहीं, बल्कि मुस्लिम आबादी में रहने वाले मुस्लिम गुगरे के कारण।  

मतदाता सूची की छानबीन करने पर पता चला है कि अकेले मालवणी से करीब 15 हजार हिंदुओं ने पलायन किया है जबकि इसके विपरीत मालवणी में उसी कालखंड में करीब 12 हजार मुस्लिमों ने स्थायी तौर पर पनाह ली। मुंबई के कई अन्य इलाकों से भी पलायन और प्रताड़ना की खबरें मिल रही हैं। उधर, एक और खतरनाक जानकारी है कि मुंबई और आसपास के इलाकों में स्वदेशी मुसलमानों के साथ ही बांग्लादेशी और म्यांमार से आने वाले रोहिंग्या मुसलमानों को भी फर्जी दस्तावेज के जरिए बाशिंदा बनाया जा रहा है। भारत के विभिन्न इलाकों में स्वदेशी जनों का पलायन कराने और विदेशी मूल के मुसलमानों का कैंप लगाना देश की अस्मिता और हिंदू धर्म के लिए शुभ लक्षण नहीं हैं।

प्रतीत हो रहा है कि ये हालात बनाने के लिए कांग्रेस और उसके समविचारी राजनीतिक दलों के साथ विदेशों से अनुदान पाने वाले अनेक एनजीओ भी माध्यम हो सकते हैं। कालांतर में कांग्रेस को कमजोर होते देख विदेशी ताकतों का पर्दे के पीछे हिंदू विरोधी अभियान चलने लगा। नतीजतन, कानून-व्यवस्था कायम रखने में प्रशासन का दम फूलने  लगा है। उल्लेखनीय है कि अंग्रेजों की गुलामी से छुटकारा मिलते समय मुस्लिम संतुष्टिकरण को काफी ध्यान से देखा गया। धर्म के आधार पर कई फैसले हुए। देश टुकड़ों में विभाजित किया गया। देश का पश्चिमी और पूर्वी टुकड़ा पाकिस्तान कहलाया। यह बात अलग है कि पूर्वी पाकिस्तान धर्म, भाषा और धन के मुद्दे पर बागी हो गया। नतीजे में बांग्लादेश का उदय हुआ।

पाकिस्तान बने दोनों टुकड़ों में रह गए अल्पसंख्यक हिंदुओं की दुर्दशा और प्रताड़ना पर कोई आंसू बहाने वाला नहीं है। देश विभाजन के बाद भारत की कांग्रेसी सरकारों ने कश्मीरी पंडितों की सुरक्षा पर कम ध्यान दिया और कश्मीरी मुसलमानों की सुरक्षा, अर्थव्यवस्था और विकास पर ज्यादा। फिर कश्मीर को आतंकवादियों से नहीं बचाया जा सका। कांग्रेसी सरकारों ने मुसलमानों को खुश करने के लिए अल्पसंख्यक कानून और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड गठित किया। इसके मुकाबले समान नागरिक कानून नहीं बनाया जा सका। घटनाक्रम पर नजर डालें तो साफ है कि विदेशी आकाओं के साथ संपर्क में रहने वाले मुस्लिम नेता तेजी से बेखौफ होकर भारत को कई टुकड़ों में बांटने की जुगत में हैं। इन्हें कांग्रेसी और वाम दलों के नेताओं का खुला समर्थन स्पष्ट दिखाई दे रहा है।

गंगा-जमुनी तहजीब का हवाला देकर दोस्ताना व्यवहार किया जाता है। फिर मौका पाते ही या यूं कहें कि किसी भी इलाके में बहुसंख्यक होते ही समुदाय विशेष का तेवर और व्यवहार बदल जाता है। बहुसंख्यक होते ही गैर-मुसलमानों के प्रति इनका व्यवहार विषैला हो जाता है। फिर दौर चलता है गैर-मुसलमानों को विभिन्न तरीकों से परेशान-प्रताड़ित करने का। इस कार्य में उनके हमजात उनका पूरा साथ देते हैं। मजबूरन गैर-मुसलमानों विशेषत: हिंदुओं को पलायन करना पड़ता है। आज भी मुंबई के माहिम, नागपाड़ा और पठानवाड़ी और ठाणो के मुंब्रा जैसे इलाकों में वर्ग विशेष के अधिकतर लोग कभी मास्क पहने नहीं दिखेंगे। न ही सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते दिखेंगे। सरकारी सूचना और आदेश को जूते की नोंक पर रखते हैं, मौलाना के फतवे को हुक्म मानते हैं।

जानकार बताते हैं कि कोरोना काल में अधिकतर मुस्लिम इलाकों में स्वास्थ्यकर्मिंयों को सबसे ज्यादा हुज्जत का सामना करना पड़ा। आज भी कई ऐसे मुसलमान मिल जाएंगे जो साफ तौर पर कहते हैं कि हम कोरोनारोधी वैक्सीन नहीं लगवाएंगे। हमारी रक्षा अल्लाह करेगा। यह विश्वास ठीक है। लेकिन उन्हें भी समझना होगा कि अल्लाह इंसानों तक पहुंचने के लिए इंसानों को ही जरिया बनाता है। इस बार जरिया स्वस्थ्यकर्मी बने हैं, लेकिन स्वास्थ्यकर्मी बताते हैं कि जहां बच्चों को पोलियो ड्रॉप पिलाने के लिए मशक्कत करनी पड़ जाए, उन मुस्लिम बहुल इलाकों में वैक्सीन लगाना कठिन कार्य है। हर मुस्लिम इलाके का कॉमन अंदाज होता है। वे वैसा ही व्यवहार करेंगे जैसा उनके मुल्ला-मौलाना ताकीद देंगे। ब्रेनवॉश के कई तरीके हैं। वरना सोचिए कि आजाद मैदान में दंगे भड़काने, पुलिसकर्मिंयों के वाहन जलाने, पुलिसकर्मिंयों का अपमान करने, मीडिया की गाड़ियों का नुकसान करने; यहां तक कि अमर जवान स्मृति स्तंभ पर लात मारने की ताकत इन्हें कहां से मिलती है? इनके दिमाग में खुराफाती खुराक कौन डाल रहा है? इसका शोध आवश्यक है। यह हिंदुओं के लिए खतरे की घंटी है।

बहरहाल, मालवणी से पलायन की घटना मन विचलित करने वाली है। धर्मनिरपेक्ष राज में धर्मसापेक्ष पलायन की बाबत विचार विनिमय जहां आवश्यक है, वहां बातचीत करने में कोई हर्ज नहीं है। मन विचलित तब होता है, जब स्पष्ट जानकारी होने के बावजूद प्रशासनिक स्तर पर मौन साधना चल रही होती है। तब सर्व धर्म समभाव वाली बयानबाजी बेमानी साबित होती है। इस संबंध में महाराष्ट्र विधानसभा सभा में भाजपा विधायक मंगल प्रभात लोढ़ा ने विस्तार से प्रकाश डाला है। तथापि सरकार और प्रशासन की स्पष्ट नीति-नियम और निर्णय जाहिर नहीं हुआ है। दूसरी ओर समुदाय विशेष के लोग समय-समय पर अपने उग्र आचरण सड़कों पर प्रदर्शित करते रहे हैं। भारत-पाकिस्तान के बीच खेले गए मैच में भारत की पराजय पर भारत में आतिशबाजी करना और पाकिस्तान जिंदाबाद का नारा लगाना बेशर्म आचरण और देशद्रोह ही कहा जाएगा।

आचार्य पवन त्रिपाठी


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