टीकाकरण : प्रधानमंत्री की दूरदर्शी सोच
एक अरब लोगों का टीकाकरण करके भारत ने जो इतिहास रचा है, उसके पीछे प्रधानमंत्री नरेन्द्र नरेंद्र मोदी की दूरदर्शी सोच का नतीजा है।
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आज हम विश्व पटल पर न केवल नम्बर एक की भूमिका में हैं, बल्कि दुनिया के दूसरे देशों के लिए मिसाल भी बन गए हैं।
मुझे याद है जब प्रधानमंत्री ने टीकाकरण की बात कही थी तब विपक्ष के नेता चुटकी लेते हुए कह रहे थे कि यह संभव नहीं है। देश में सभी लोगों का टीकाकरण होने में साढ़े सात साल लग जाएंगे। लेकिन प्रधानमंत्री लगातार इस मिशन में लगे रहे कि जल्द से जल्द लोगों का टीकाकरण हो।
21 अक्टूबर को जब सौ करोड़ लोगों का टीकाकरण हुआ तो भारत में टीकाकरण का 279वां दिन था यानी नौ महीने में भारत ने यह उपलब्धि हासिल कर ली। सौ करोड़ सिर्फ एक आंकड़ा नहीं, बल्कि सौ करोड़ से अधिक लोगों का आत्मविश्वास है।
अभियान की शुरु आत से ही हमारे डॉक्टर, नर्सेज ने देश के दूरदराज इलाकों में जाकर लोगों का टीकाकरण किया। हमने कई दृश्य ऐसे भी देखे जहां कई बार मुश्किलों का सामना भी करना पड़ा।
पूर्वोत्तर भारत के दुर्गम इलाकों में ड्रोन से टीका की आपूर्ति की गई वहीं गांवों और पहाड़ी क्षेत्रों में पर्याप्त टीकाकरण केंद्र स्थापित किए गए ताकि वैक्सीन के लिए लंबी दूरी न तय करनी पड़े।
वहीं नक्सलवाद और उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में अर्धसैनिक बलों की मदद से टीकाकरण अभियान चलाया गया। छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में लोगों के अंदर जो झिझक थी, उसे तोड़ने के लिए जागरूकता अभियान चलाया गया ताकि वैक्सीन को लेकर किसी प्रकार की भ्रांति न रहे।
आज जम्मू और कश्मीर, लद्दाख, उत्तराखंड, सिक्किम, हिमाचल प्रदेश, दादरा और नगर हवेली और दमन एवं दीव, गोवा और लक्षद्वीप ने पहले डोज में 100 प्रतिशत का लक्ष्य भी हासिल कर लिया है। वहीं चार राज्यों में 90 फीसदी लोगों को पहला डोज लग गया है।
आज देश में प्रति दिन के हिसाब से 30.07 लाख लोगों का टीकाकरण किया जा रहा है जबकि दक्षिण अमेरिका में 20.23 लाख, उत्तरी अमेरिका में 18.49 लाख, अफ्रीका में 12.68 लाख और यूरोपीय संघ में 6.71 लाख प्रति दिन औसतन टीकाकरण हो रहा है। इस उपलब्धि की बाकी देशों से तुलना करें तो भारत में अमेरिका की आबादी से 3 गुना, ब्राजील से 5 गुना, जर्मनी से 10 गुना, फ्रांस से 15 गुना, कनाडा से 25 गुना और यूएई से 100 गुना ज्यादा वैक्सीनेशन हुआ है।
कोविड-19 की आपदा से भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया प्रभावित हुई। इस भयावह आपदा से निपटने के लिए वैक्सीन बनाने में सालों साल लग जाते लेकिन देश के वैज्ञानिकों के अथक प्रयास और प्रधानमंत्री की सक्रियता के चलते यह संभव हो पाया कि सीरम इंस्टीटयूट और भारत बायोटेक ने दो वैक्सीन तैयार कर लीं। अब सवाल यह था कि टीकाकरण की शुरु आत कैसे की जाए। इसके लिए भी प्रधानमंत्री ने कमान संभाली और पहले फ्रंटलाइन वर्कर यानी डॉक्टरों का टीकाकरण किया गया।
उसके बाद दूसरा और तीसरा ग्रुप बनाया गया जिसमें आपातकालीन सेवाओं से जुड़े लोगों को शामिल किया। उसके बाद उम्र की सीमा तय की गई। सबके लिए एक प्लान तैयार करके इस अभियान को शुरू किया गया। आज देश ने जो उपलब्धि हासिल की है, वह पूरी तरह से दूरदर्शी सोच का नतीजा है क्योंकि विपक्ष तो टीकाकरण पर ही सवाल उठा रहा था।
सबसे रोचक बात तो यह है कि कई विपक्षी नेताओं ने इसे भाजपा का टीकाकरण तक कह डाला। लेकिन देश की जनता किसी बहकावे में नहीं आई और इस अभियान में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। वैक्सीन की उपलब्धता को लेकर भी सवाल खड़े किए गए। लेकिन जब केंद्र सरकार ने पूरी तरह से नियंत्रण अपने हाथ में लिया और मुफ्त टीकाकरण की बात कही तब विपक्षियों के भी हौंसले पस्त हो गए।
आज यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि राष्ट्रव्यापी स्तर पर हुए टीकाकरण के अलावा हमने दुनिया के दूसरे देशों को भी वैक्सीन की डोज देने में कोई कोताही नहीं बरती। तब भी सवाल उठाए जा रहे थे कि हमारे यहां वैक्सीन की कमी है, और हम दूसरे देशों को वैक्सीन दे रहे हैं, लेकिन प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी ने वैक्सीन मैत्री अभियान शुरू करके मई, 2021 में 95 देशों को 6.63 करोड़ वैक्सीन भेजीं।
अक्टूबर, 2021 में नेपाल, म्यांमार, बांग्लादेश और ईरान को 10 लाख डोज भेजे गए। आज हम विश्व पटल पर टीकाकरण के मामले में परचम लहरा रहे हैं, तो वह केवल और केवल प्रधानमंत्री की लगातार सक्रियता और टीका बनाने वाली कंपनियों और वैक्सीन लगाने वाले स्वास्थ्यकर्मिंयों के कारण संभव हो पाया है।
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