विश्लेषण : टाटा के हुए ’महाराज‘

Last Updated 18 Oct 2021 02:46:49 AM IST

डूबते हुए एअर इंडिया के ‘महाराजा’ का हाथ टाटा समूह ने 68 सालों बाद फिर से थाम लिया है।


विश्लेषण : टाटा के हुए ’महाराज‘

एविएशन विशेषज्ञों की मानें तो टाटा के मालिक बनते ही ‘महाराजा’ को बचाने और दोबारा ऊंची उड़ान भरने के काबिल बनाने के लिए कई ऐसे फैसले लेने होंगे जिनसे एअर इंडिया एक बार फिर से भारत के एविएशन क्षेत्र का महाराजा बन जाए। टाटा ने देश ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में कई डूबती हुई कंपनियों को खरीदा है। इनमें से कई कंपनियों को फायदे का सौदा भी बना दिया है। अब देखना यह है कि अफसरशाही में कैद एअर इंडिया को उसकी खोई हुई गरिमा कैसे वापस मिलती है।

मीडिया रिपोर्ट की मानें तो अब तक एअर इंडिया विमानों पर किराए या लीज के तौर पर बहुत ज्यादा पैसा खर्च कर रहा था। इसके साथ ही इन पुराने हवाई जहाजों का कई वर्षो से सही रख-रखाव भी नहीं हुआ है। यात्रियों के हित में टाटा को केबिन अपग्रेडेशन और इंजन अपग्रेडेशन समेत कई महत्त्वपूर्ण बदलाव लाने होंगे। विशेषज्ञों के अनुसार टाटा समूह को एअर इंडिया के मौजूदा विमानों को अपग्रेड करने के लिए 2 से 5 मिलियन डॉलर की मोटी रकम खर्च करनी पड़ सकती है। गौरतलब है कि जब नरेश गोयल की जेट एयरवेज को खरीदने के लिए टाटा के बोर्ड में चर्चा हुई तो कहा गया था कि डूबती हुई एयरलाइन को खरीदने से अच्छा होता है कि ऐसी एयरलाइन के बंद होने पर रिक्त स्थान नये विमानों से भरा जाए।

जिस तरह अफसरशाही ने सरकारी एयरलाइन में अनुभवहीन लोगों को अहम पदों पर तैनात किया था उससे भी एअर इंडिया को नुकसान हुआ। किसी भी एयरलाइन को सुचारु रूप से चलाने के लिए प्रोफेशनल टीम की जरूरत होती है। भाई-भतीजावाद या सिफारिशी भर्तियों की एयरलाइन जैसे संवेदनशील सेक्टर में कोई जगह नहीं होती। टाटा जैसे समूह से आप केवल प्रोफेशनल कार्य की ही उम्मीद कर सकते हैं। मिसाल के तौर पर टाटा समूह द्वारा भारतीय नागरिकों को पासपोर्ट जारी करने में जो योगदान दिखाई दे रहा है, वो अतुलनीय है। जिन दिनों पासपोर्ट सेवा लाल फीताशाही में कैद थी तब लोगों को पासपोर्ट बनवाने के लिए महीनों का इंतजार करना पड़ता था। वही काम अब कुछ ही दिनों में हो जाता है। आजकल के सोशल मीडिया और आईटी युग में हर ग्राहक जागरूक हो चुका है। यदि वो निराश होता है, तो कंपनी की साख को कुछ ही मिनटों में अर्श से फर्श पर पहुंचा सकता है। इसलिए ग्राहक संतुष्टि की प्रतिस्पर्धा के दबाव के चलते हर कंपनी को अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना पड़ता है।

विश्व भर में पिछले दो सालों में कोरोना की सबसे ज्यादा मार पर्यटन क्षेत्र पर पड़ी है। एविएशन सेक्टर इसका अहम हिस्सा है। एक अनुमान के तहत इन दो सालों में इस महामारी के चलते एविएशन सेक्टर को 200 बिलियन डॉलर से अधिक का नुकसान हुआ है। माना जा रहा है कि अगर सब कुछ सही रहता है, और कोविड की तीसरी लहर नहीं आती है, तो 2023 से एविएशन सेक्टर की गाड़ी फिर से पटरी पर आ जाएगी। एअर इंडिया का निजीकरण कर टाटा को दिए जाने के फैसले को ज्यादातर लोगों द्वारा एक अच्छा कदम ही माना गया है।

टाटा को इसे सर्वश्रेष्ठ एयरलाइन बनाने के लिए कुछ बुनियादी बदलाव लाने होंगे। जैसा कि सभी जानते हैं टाटा समूह के पास पहले से ही दो एयरलाइंस हैं-‘विस्तारा’ और ‘एयर एशिया’-और अब एअर इंडिया और ‘एयर इंडिया एक्सप्रेस’। टाटा को इन चारों एयरलाइंस के पाइलट और स्टाफ की ट्रेनिंग के लिए अपनी ही एक अकेडमी बना देनी चाहिए जिसमें ट्रेनिंग अंतरराष्ट्रीय मानक के आधार पर हो। इससे पैसा भी बचेगा और ट्रेनिंग के मानक भी उच्च कोटि के होंगे। चार-चार एयरलाइंस के स्वामी बनने के बाद टाटा समूह की सीधी टक्कर मध्य पूर्व की ‘कतर एयरलाइन’ से होना तय है। मध्य पूर्व जैसे महत्त्वपूर्ण स्थान पर होने के चलते, इस समय कतर एयर के पास एविएशन सेक्टर के व्यापार का सबसे अधिक हिस्सा है। कोविड काल में सिंगापुर एयर के 60 प्रतिशत विमान ग्राउंड हो चुके हैं। सिंगापुर एयरलाइन में टाटा समूह की साझेदारी होने के कारण टाटा को सिंगापुर एयर के विमानों को अपने साथ जोड़ कर एअर इंडिया को दुनिया के हर कोने में पहुंचाने का प्रयास करना चाहिए। इससे कर्ज में डूबी एआर इंडिया के आय के नये स्रोत भी खुलेंगे।

टाटा को अपनी चारों विमानन कंपनियों को अलग ही रखना चाहिए। जिस तरह टाटा समूह के अलग-अलग प्रकार के होटल हैं जैसे ‘ताज’, ‘विवांता’ और ‘जिंजर’ आदि उसी तरह बजट एयरलाइन और मुख्यधारा की हवाई सेवा को भी अलग-अलग रखना बेहतर होगा। अलग कंपनी होने से टाटा समूह की ही दोनों कंपनियों को बेहतर परफॉर्म करना होगा और आपस की प्रतिस्पर्धा से ग्राहक का फायदा होना निश्चित है। इनमें दो कंपनी ‘एयर एशिया’ और ‘एयर इंडिया एक्सप्रेस’ सस्ती यानी ‘बजट एयरलाइन’ रहें, जो मौजूदा बजट एयरलाइंस आने वाले समय में राकेश झुनझुनवाला की ‘आकासा’ को सीधी टक्कर देंगी। मौजूदा ‘विस्तारा’ को भी मध्यवर्गीय एयरलाइन के साथ प्रतिस्पर्धा में रहते हुए पड़ोसी देशों में अपने पंख फैलाने होंगे।

एअर इंडिया में नये विमान जोड़ कर इसे एविएशन की दुनिया का महाराजा बनने की ओर कदम तेजी से दौड़ाने होंगे। बीते कई वर्षो से नुकसान उठा रही एअर इंडिया की देरी और खराब सेवा को लेकर नकारात्मक छवि बनी है। इस चुनौती को भी टाटा को गंभीरता से लेना होगा और सेवाओं की बेहतरी की दिशा में कुछ सक्रिय कदम उठाने होंगे। यह इतना आसान नहीं होगा परंतु टाटा समूह में विषम परिस्थितियों में टिके रहने और लंबी अवधि तक खेलने की क्षमता किसी से छुपी नहीं है। टाटा को इस चुनौतीपूर्ण कार्य के लिए एविएशन सेक्टर के अनुभवी लोगों की टीम बना कर सिद्ध करना होगा कि एअर इंडिया को वापस लेकर टाटा ने कोई गलती नहीं की।

विनीत नारायण


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