अर्थव्यवस्था : उत्साहजनक आंकड़े और आकलन
कोरोना संकट से उत्पन्न तमाम चुनौतियों और आशंकाओं के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था से संबद्ध नवीनतम आंकड़े और विभिन्न एजेंसियों द्वारा आने वाले समय में आर्थिक विकास का आकलन उत्साहवर्धक संकेत दे रहे हैं।
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राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक आठ बुनियादी क्षेत्र के उद्योगों, जिनका औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में हिस्सा 40.27 प्रतिशत है, के उत्पादन में कई महीनों से लगातार अच्छी वृद्धि दर्ज हुई है। वृहत पैमाने पर टीकाकरण और यात्रा प्रतिबंधों में छूट से पर्यटन से जुड़े क्षेत्रों के साथ अन्य सेवा क्षेत्रों से जुड़ी आर्थिक गतिविधियां भी तेजी से बढ़ी हैं। नीतिगत प्रयासों से देश में कम ब्याज का दौर जारी है, जिससे तात्कालिक रूप से अर्थव्यवस्था के कुछ क्षेत्रों में मांग बढ़ाने में सहायता मिलेगी। अच्छे मानसून से कृषि क्षेत्र में उत्पादन बेहतर रहने की संभावना है। अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों से मिल रहे अच्छे संकेतों से शेयर बाजार पिछले कई महीनों से अपने नये उच्चतम स्तर पर जाता रहा है।
हालांकि इन अच्छे आंकड़ों के बीच बढ़ती महंगाई खास कर पेट्रोल एवं डीजल के साथ-साथ खाद्य तेलों की कीमतों में वृद्धि चिंताजनक है। आने वाले समय में इन वस्तुओं की कीमतों में और तेजी आने की संभावना है, जिसके दूरगामी परिणाम आर्थिक-राजनीतिक दोनों स्तर पर हो सकते हैं। पिछले वर्ष के दुखद आर्थिक अनुभवों के ऊपर इस वर्ष के आंकड़ों से मिल रहे संकेत अच्छे भविष्य की उम्मीद जगाते हैं परंतु चुनौतियां रोजगार सहित कई स्तर पर अभी कुछ समय तक बने रहने की संभावना है।
कोरोना संकट के आर्थिक दुष्परिणाम का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि विश्व बैंक द्वारा किए गए एक आकलन के हिसाब से लगभग एक तिहाई मध्यम आय वर्ग के लोग आमदनी के हिसाब से कम आय वाली श्रेणी में चले गए हैं। आर्थिक असमानता बढ़ी है। अर्थव्यवस्था में विकास को लेकर इस वर्ष और अगले वर्ष के लिए विश्व मुद्रा कोष के नवीनतम आकलन क्रमश: 9.5 प्रतिशत एवं 8.5 प्रतिशत हैं। विश्व बैंक, अंकटाड, आरबीआई सहित अन्य संस्थाओं के आकलन कुछ इसी संख्या के आसपास हैं। क्रेडिट रेटिंग संस्थाओं ने भी आर्थिक स्थिति को लेकर सकारात्मक संकेत दिए हैं। विभिन्न संस्थाओं के आर्थिक विकास संबंधी भविष्यवाणियों के आंकड़ों में थोड़ा-बहुत अंतर जरूर है, लेकिन सभी इस बात पर सहमत हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था इस वर्ष और अगले साल विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेजी से बढ़ेगी।
ध्यान देने की बात है कि इन संस्थाओं के भविष्य के आकलन के आंकड़े जारी करने की विधि बहुत पारदर्शी नहीं रही है। फिर भी सबका अनुमान भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बेहतर है, तो यह सुखद संकेत है। हालांकि यह भी गौर करने की बात है कि विकसित देशों की अर्थव्यवस्था में भी तेजी से वृद्धि का आकलन किया गया है जो संख्या के आधार पर सबसे तेज बढ़ने वाली भारतीय अर्थव्यवस्था से बहुत ज्यादा कम नहीं है।
वैश्विक अर्थव्यवस्था में अच्छी वृद्धि के परिणामस्वरूप अंतरराष्ट्रीय मांग और व्यापार में होने वाली वृद्धि का कितना लाभ भारत जैसे विकासशील देश उठा पाते हैं, इसका असर भी आने वाले समय में आर्थिक विकास पर होगा। वहीं वैश्विक स्तर पर बढ़ता महंगाई का नकारात्मक असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर दिखने की संभावना है। आने वाले समय में रु पये के कीमत में भी अवमूल्यन का दबाव बना रहेगा। लेकिन रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति ने उम्मीद से अच्छा सहयोग केंद्र सरकार की राजकोषीय नीति को दिया है। अर्थव्यवस्था में कम ब्याज दर और तरलता बनी रही है। विनिवेश से राजस्व के लिए तय लक्ष्य को प्राप्त होने की उम्मीद है।
तमाम आशंकाओं के बावजूद एअर इंडिया की बिक्री के साथ बीपीसीएल, शिपिंग कॉरपोरेशन एवं एलआईसी जैसे कई कंपनियों के आंशिक एवं पूर्ण विनिवेशीकरण से राजस्व संग्रह की उम्मीद बढ़ी है। रोचक बात यह भी है कि निजी क्षेत्र में जाने वाली कई कंपनियां पहले निजी से ही सार्वजनिक क्षेत्र में आई थीं। और, अब पहले की तुलना में सरकारी कंपनियों के निजीकरण की राजनीतिक स्वीकार्यता भी बढ़ी है जिससे केंद्र सरकार के राजकोषीय घाटे को नियंत्रण में रखने में सहयोग मिलेगा।
हालांकि यह भविष्य के बड़े आर्थिक संकट के लिए अतिरिक्त राजस्व के विकल्प उपलब्ध रहने की जरूरत को भी रेखांकित करता है। सरकारी कजरे को नियंत्रित करना जरूरी है जिससे अतिरिक्त कर्ज लेने की गुंजाइश बनी रहे। राज्य सरकारों की वित्तीय स्थिति को सुधारने पर भी ध्यान देना जरूरी है जिससे राज्य राजस्व के लिए अपने स्तर पर राजकोषीय स्थिति मजबूत कर सकें।
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