मीडिया : मीडिया का छल
हाय! आर्यन खान छह दिन और जेल में रहेंगे! आर्थर रोड जेल बड़ी बदनाम है। उसमें नामी क्रिमिनलों को रखा जाता है। वे क्या खाएंगे? कैसे सोएंगे?
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नारकोटिक्स विभाग वालों ने क्रूज की नशा पार्टी में लिप्त पाए गए कई लोगों को पकड़ा है, लेकिन मीडिया का जितना फोकस आर्यन खान पर रहा है, अन्य किसी पर नहीं रहा।
खबर चैनलों के रिपोर्टर उसकी एक-एक पल की गतिविधि को कवर करते बताते रहे हैं कि वह सुपर स्टार शाहरुख खान का पुत्र है। विदेशों में पढ़ा है। उसे क्रूज पार्टी में ‘वीआइपी गेस्ट’ की तरह किसी ने बुलाया था; यानी उसे फंसाया गया है और उसके पास से कोई नशा बरामद नहीं हुआ। वह निर्दोष है! उसके वकीलों ने उसके पक्ष में ऐसी ही दलीलें दी हैं, और जांच ही बता सकती है कि असलियत क्या है? लेकिन जांच का भरोसा क्या? यहां हमारी चिंता विषय ‘जांच’ नहीं, बल्कि मीडिया की वह रिपोर्टिग है, जो आर्यन को पहले पल से किसी सेलिब्रिटी की तरह पेश करती है, और उसके प्रति अवांछित हमदर्दी पैदा करती है। सवाल उठता है कि क्या यह ठीक है, या कि यह मीडिया की अपनी बीमारी है कि जब भी कोई हाई प्रोफाइल केस सामने आता है, वैसे ही मीडिया उसको किसी फिल्मी कहानी में बदलने लगता है।
मीडिया की इस ‘व्याधि’ को हमने सुशांत सिंह के केस में देखा और ऐसा ही हम इस केस में देख रहे हैं। ऐसी हर कहानी को मीडिया पहले दिन-रात बजाता है, और इतना ज्यादा बजाता है कि हमारे मन में कहानी के नायक/खलनायक के प्रति हमदर्दी पैदा होने लगती है और हम जाने अनजाने उसे ‘संदेह का लाभ’ देने लगते हैं। ऐसी हर ‘हाई प्रोफाइल’ कहानी में जितना बताया जाता है, उससे अधिक समझा जाता है और अंतत: हर कहानी ‘मिथकीय आयाम’ लेने लगती है।
इस तरह की हर हाई प्रोफाइल कहानी से अंतत: हम यही सीखते हैं कि:
1. ऐसी हर ‘हाई प्रोफाइल’ कहानी ‘सेलिब्रिटीज’ की ‘प्राइवेट सोसाइटी’ में ताक-झांक का मौका देती है।
2. ऐसी हर बड़ी कहानी के सूत्र बड़े-बड़े ताकतवर लोगों से जुड़े होते हैं और उनके पीछे बड़ी राजनीति खड़ी होती है।
3. ऐसी हर कहानी को ‘किसी’ के द्वारा रचा गया ‘राजनीतिक षड्यंत्र’ बताया जाने लगता है!
4. ‘राजनीतिक षड्यंत्र’ बताई जाने के बाद हर कहानी ‘शिकार’ और ‘शिकारी’ की बना दी जाती है मानो किसी ताकतवर ने अपने दुश्मन को नीचा दिखाने के लिए एक ‘षड्यंत्र’ रचा हो।
5. इसके बाद कहानी के नायक/खलनायक को संदेह का लाभ मिलने और मीडिया उसे उसी रूप में दिखाने लगता है। लेकिन हर बड़ी कवरेज हमें हाई सोसाइटी की जिंदगी के ग्लैमर से या तो ईष्र्या करने लगते हैं, या निंदा करने लगते हैं, या उसके प्रति आकषिर्त होने लगते हैं। ऐसी हर कवरेज विलासी जिंदगी का अदर्शीकरण करती जाती है। यही वह ‘सांस्कृतिक झटका’ होता है, जो ऐसी हर कवरेज से हमें लगता है। हमको उसका अनिवार्य दर्शक बना दिया जाता है।
ऐसी हर कहानी को देख आम युवक सोचता है कि काश! हमारा जीवन भी ऐसा होता। हम भी क्रूज पर बड़े लोगों के साथ पार्टी में होते। नशा करते। हम भी बड़े बाप के बेटे होते तो हमें भी ऐसा ही मीडिया मिलता, जो हमें दिन-रात दिखाता और एक दिन हम भी सेलिब्रिटी बन जाते। आर्यन की इस कहानी के भी दो पहलू हैं। पहला है: आर्यन की मासूमियत की कहानी, उसे फंसाया जाना; और दूसरा है: उसकी जमानत का टल जाना और इसे देख हमारी हमदर्दी का उमड़ना और अंत में केस का रफा-दफा हो जाना। लेकिन ऐसा पहली बार नहीं हो रहा। पुराने जमाने के एक बड़े हीरो के बेटे के नशेड़ी होने की कहानी तो विख्यात थी, लेकिन तब इतना मीडिया नहीं था। सब जानते थे कि उसका बेटा नशा करता है। बंदूक का शौकीन है। उस पर वर्जित हथियार रखने का केस चला था, अंतत: वह छूट गया और बड़ा हीरो बना। ऐसे ही कुछ स्टारों पर ‘रक्षित हिरन’ के शिकार का केस चला, लेकिन कुछ न हुआ। ऐसे ही एक स्टार पर पटरी पर सोये कई लोगों को कुचल कर मार देने का केस चला, लेकिन कुछ न हुआ। ऐसे ही पिछले दिनों एक हीरो लटक गया है, लेकिन अब तक कुछ न निकला। इसका अंत भी वही होगा, जो अन्य हाई प्रोफाइल केसों का हुआ है। जब बड़ी ताकतें कूद पड़ती हैं, तो हर कहानी मैनेज हो जाती है। मीडिया हर सेलिब्रिटी कहानी को इसी तरह बनाता है: शुरू में वह न्याय-न्याय चिल्लाता है, लेकिन अंतत: वह किसी बड़े के ‘बिगड़ैल बच्चे’ को हमारा ‘हीरो’ में बनाकर छोड़ जाता है।
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