वैश्विकी : ‘बॉर्डरलेस’ मजहबी उन्माद

Last Updated 17 Oct 2021 01:13:56 AM IST

पिछले एक सप्ताह के दौरान अफगानिस्तान में ही नहीं, बल्कि भारत सहित दुनिया के कई देशों में मजहबी जुनून के कारण हुई हिंसक वारदात चिंता पैदा करती हैं।




वैश्विकी : ‘बॉर्डरलेस’ मजहबी उन्माद

अफगानिस्तान में तालिबानी आतंकवादियों का कब्जा एक अलग-थलग घटना नहीं है। अन्य देशों में भी छोटे-बड़े पैमाने पर मजहबी उन्माद ने सरकार और समाज के लिए समस्या पैदा की है। पिछले एक सप्ताह की घटनाओं पर नजर डाली जाए तो अफगानिस्तान में कुंदूज और कंधार में शिया मस्जिदों को निशाना बनाया गया जिसमें बड़ी संख्या में लोग हताहत हुए। बांग्लादेश में दुर्गा पूजा आयोजन के दौरान पूजा पंडालों और हिंदू मंदिरों पर हमले हुए जिनमें पुजारियों समेत छह लोग मारे गए। ब्रिटेन में कंजरवेटिव पार्टी के वरिष्ठ सांसद डेविड एमेस की चाकू मारकर हत्या कर दी गई। ब्रिटेन की पुलिस ने घटना के सिलसिले में सोमाली मूल के एक ब्रिटिश मुस्लिम युवक को गिरफ्तार किया है। भारत में राजधानी दिल्ली की सीमा पर एक दलित युवक को नृशंसता के साथ मौत के घाट उतार दिया गया।

बांग्लादेश और सिंघू बॉर्डर की घटनाएं ईशनिंदा या बेअदबी से जुड़ी हैं। मुस्लिम जगत में ईशनिंदा का विचार गैर-मुस्लिमों के सिर पर तलवार की तरह  लटका रहता है। पाकिस्तान में तो ईशनिंदा के लिए अनिवार्य रूप से मृत्युदंड का प्रावधान है। गैर-जानकारी या अनजाने में किसी घटना को मुल्ला-मौलवी या धार्मिक कट्टरपंथी ईशनिंदा घोषित कर देते हैं तथा जिससे किसी निदरेष व्यक्ति की जिंदगी  तबाह हो जाती है। भारत में कानूनी रूप से ईशनिंदा या बेअदबी को एक विशिष्ट अपराध की श्रेणी में नहीं रखा गया है। आम तौर पर भारतीय दंड संहिता में धार्मिक भावनाओं को आहत करने की धारा लगाई जाती है, जिसमें सामान्य दंड की व्यवस्था है। सिंघू बॉर्डर पर हुई घटना इसलिए और भी चिंताजनक तथा चौंकाने वाली है। मजहबी उन्माद से प्रेरित कोई गुट मनमाने तरीके से पाकिस्तान की ईशनिंदा संबंधी दंड शैली को लागू करने पर आमादा हैं। सरकार और समाज को इस प्रवृत्ति को रोकने के लिए तत्काल प्रभाव से कार्रवाई करनी होगी।

तालिबान आतंकवादियों को पूरी दुनिया में मध्ययुगीन बर्बर गिरोह के रूप में पहचाना जाता है। यह बर्बरता लोकतांत्रिक देशों में भी सिर उठा रही है। भारत जैसे सहिष्णु और अहिंसावादी देश में धर्म के नाम पर यदि ऐसा सिलसिला शुरू हुआ तो विविधता पर आधारित इस देश का तानाबाना प्रभावित होगा। पिछले दशकों के दौरान अंतरराष्ट्रीय बिरादरी आतंकवाद से निपटने के उपायों पर विचार करती रही है। हाल के वर्षो में मुख्य जोर इस बात पर दिया जाता है कि धार्मिक संकीर्णता और कट्टरवाद की विचारधारा को फैलने से कैसे रोका जाए। इस विचारधारा के आधार पर ही आतंकवाद फलता-फूलता है। समस्या यह है कि धार्मिक संकीर्णता और कट्टरता धर्म ग्रंथों की व्याख्या से पैदा होती हैं। यह केवल कानून व्यवस्था बनाए रखने का मामला नहीं है। यह धर्मनिरपेक्ष या धर्म आधारित शासन व्यवस्था तक सीमित मामला भी नहीं है। वास्तव में यह क्षेत्र धर्म  प्रतिष्ठानों और धार्मिक नेताओं से जुड़ा है। सरकार धर्म ग्रंथों की व्याख्या नहीं कर सकती। शिक्षा व्यवस्था के जरिए लोगों की सोच को सकारात्मक बनाए रखने की कोशिश की जाती है। अनुभवों से पता लगता है कि यह कोशिश सफल नहीं रही।

अफगानिस्तान में शिया मस्जिदों पर हुए हमले इस बात का संकेत हैं कि वहां जिहादी विचारधारा में विश्वास रखने वाले अलग-अलग गिरोह सक्रिय हो रहे हैं। सुन्नी कट्टरवादी शिया समुदाय को धर्म विरोधी घोषित करते हैं। उनकी मंशा अफगानिस्तान को शिया-मुक्त करना है। शिया बहुल ईरान इन घटनाओं को लेकर अवश्य चिंतित होगा। इस बीच खबर है कि सीरिया और इराक के जिहादी लड़ाकू अफगानिस्तान का रुख कर रहे हैं। रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने इस खतरे का उल्लेख किया है।

अफगानिस्तान में आतंकवाद और हिंसा को काबू में रखने के लिए रूस एक सम्मेलन का आयोजन कर रहा है। 20 अक्टूबर को आयोजित होने वाली इस बैठक में भारत भी भाग लेगा। संभावना है कि भारत जम्मू कश्मीर में आतंकवादी घुसपैठ के खतरे की ओर विभिन्न देशों का ध्यान आकषिर्त करेगा। कुल मिलाकर अमेरिका के अफगानिस्तान से जाने के बाद रूस केंद्रीय भूमिका में आ गया है। इस क्षेत्र के देशों को यह अपेक्षा है कि रूस किसी संभावित आतंकवाद विरोधी गठबंधन की अगुवाई करेगा।

डॉ. दिलीप चौबे


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