मुद्दा : वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत में है दम

Last Updated 19 Oct 2021 02:31:18 AM IST

इन दिनों देश में कोयले की कमी के चलते दमकती रोशनी और सतत विकास पर अंधियारा दिख रहा है।


मुद्दा : वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत में है दम

भारत की अर्थव्यवस्था में आए जबरदस्त उछाल ने ऊर्जा की खपत में तेजी से बढ़ोतरी की है और यही कारण है कि देश गंभीर ऊर्जा संकट के मुहाने पर खड़ा है।  आर्थिक विकास के लिए सहज और भरोसेमंद ऊर्जा की आपूर्ति अत्यावश्यक होती है, जबकि नई आपूर्ति का खर्च तो बेहद डांवाडोल है।
भारत में यूं तो दुनिया में कोयले का चौथा सबसे बड़ा भंडार है, लेकिन ख़पत की वजह से भारत कोयला आयात करने में दुनिया में दूसरे नंबर पर है। हमारे कुल बिजली उत्पादन- 3,86888 मेगावाट में थर्मल पावर सेंटर की भागीदारी 60.9 फीसद है। इसमें भी कोयला आधारित 52.6 फीसद, लिग्नाइट, गैस व तेल पर आधारित बिजली घरों की क्षमता क्रमश: 1.7, 6.5 और 0.1 प्रतिशत है।  हम आज भी हाईड्रो अर्थात पानी पर आधारित परियोजना से महज 12.1 प्रतिशत, परमाणु से 1.8 और  अक्षय ऊर्जा स्रोत से 25.2 प्रतिशत बिजली प्राप्त कर रहे हैं। इस साल सितम्बर 2021 तक, देश के कोयला आधारित बिजली उत्पादन में लगभग 24 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।

बिजली संयंत्रों में कोयले की दैनिक औसत आवश्यकता लगभग 18.5 लाख टन है, जबकि हर दिन महज 17.5 लाख टन कोयला ही वहां पहुंचा। यह किसी से छुपा नहीं है कि कोयले से बिजली पैदा करने का कार्य हम अनंत काल तक कर नहीं सकते क्योंकि प्रकृति की गोद में इसका भंडार सीमित है। वैसे भी दुनिया पर मंडरा रहे जलवायु परिवर्तन के खतरे में भारत के सामने चुनौती है कि किस तरह  काबन उत्सर्जन कम किया जाए, जबकि कोयले के दहन से बिजली बनाने की प्रक्रिया में  बेशुमार कार्बन निकलता है। कोयले से संचालित बिजलीघरों से स्थानीय स्तर पर वायु प्रदूषण की समस्या खड़ी हो रही है विशेष रूप से नाइट्रोजन ऑक्साइड और सल्फर ऑक्साइड के कारण। इन बिजलीघरों से उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसों से उपजा प्रदूषण ‘ग्रीन हाउस गैसों’ का दुश्मन है और धरती के गरम होने और मौसम में अप्रत्याशित बदलाव का कारक है। परमाणु बिजली घरों के कारण पर्यावरणीय संकट अलग तरह का है। एक तो इस पर कई अंतरराट्रीय पाबंदिया हैं और फिर चेरनोबेल और फुकुशिमा के बाद स्पट हो गया है कि परमाणु विखंडन से बिजली बनाना किसी भी समय एटम बम के विस्फोट जैसे कुप्रभावों को न्योता है। आण्विक पदाथरे की देखभाल और रेडियोएक्टिव कचरे का निबटारा बेहद संवेदनशील और खतरनाक काम है। हवा सर्वसुलभ और खतराहीन उर्जा स्रोत है। आयरलैंड में पवन ऊर्जा से प्राप्त बिजली उनकी जरूरतों का 100 गुणा है। भारत में पवन ऊर्जा की अपार संभावनाएं हैं; इसके बावजूद हमारे यहां बिजली के कुल उत्पादन का महज 1.6 फीसद ही पवन ऊर्जा से उत्पादित होता है। हमारी पवन ऊर्जा की क्षमता 300 गीगावाट प्रतिवर्ष है। पवन ऊर्जा देश के ऊर्जा क्षेत्र की तकदीर बदलने में सक्षम है। देश में इस समय लगभग 39 गीगावाट पवन-बिजली उत्पादन के संयत्र स्थापित हैं और हम दुनिया में चौथे स्थान पर हैं। यदि गंभीरता से प्रयास किया जाए तो अपनी जरूरत के 40 प्रतिशत बिजली को पवन ऊर्जा के माध्यम से पाना बेहद सरल उपाय है।
सूरज से बिजली पाना भारत के लिए बहुत सहज है। देश में साल में आठ से दस महीने धूप रहती है और चार महीने तीखी धूप रहती है। वैसे भी जहां अमेरिका व ब्रिटेन में प्रति मेगावाट सौर ऊर्जा उत्पादन पर खर्चा क्रमश: 238 और 251 डॉलर है वहीं भारत में यह महज 66 डॉलर प्रति घंटा है, यहां तक कि चीन में भी यह व्यय भारत से दो डॉलर अधिक है। कम लागत के कारण घरों और वाणिज्यिक एवं औद्योगिक भवनों में इस्तेमाल किए जाने वाले छत पर लगे सौर पैनल जैसी रूफटॉप सोलर फोटोवोल्टिक (आरटीएसपीवी) तकनीक, वर्तमान में सबसे तेजी से लगाई जाने वाली ऊर्जा उत्पादन तकनीक है।  अनुमान है कि आरटीएसपीवी से 2050 तक वैश्विक बिजली की मांग का 49 प्रतिशत तक पूरा होगा। पानी से बिजली बनाने में पर्वतीय राज्यों के झरनों पर यदि ज्यादा  निर्माण से बच कर छोटे टरबाइन लगाए जाएं और उनका वितरण भी स्थानीय स्तर पर योजनाबद्ध किया जाए तो दूरस्था पहाड़ी इलाकों में बिजली की पूर्ति की जा सकती है। बिजली के बगैर प्रगति की कल्पना नहीं की जा सकती। यदि ऊर्जा का किफायती इस्तेमाल सुनिश्चित किए बगैर ऊर्जा के उत्पादन की मात्रा बढ़ाई जाती रही तो इस कार्य में खर्च किया जा रहा पैसा व्यर्थ जाने की संभावना है और इसका विषम प्रभाव अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा।

पंकज चतुर्वेदी


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