सरोकार : इन सवालों से भागना आसान नहीं

Last Updated 17 Oct 2021 01:04:04 AM IST

भारत में नवविधा के रूप में नौ दिनों का स्त्री शक्ति दिवस मनाया जाता है। नौ रातों की हर एक रात स्त्री चेतना और उत्स को समर्पित रात मानी जाती है।


सरोकार : इन सवालों से भागना आसान नहीं

उजाले की दस्तक के साथ एक ऐसी तेजोमयी की कामना की जाती है, जो सभी दुर्विचारों और दुराग्रहों का शमन कर जगत का कल्याण करें, लेकिन दुगरुणों और कुविचारों की अग्नि में जलता काम पुरु ष कभी इससे पार नहीं पाता।

थोड़ा अजीब है न जिस भारत में चिर काल से स्त्रियां देवी रूप में पूजी जाती रही हैं, वहां उनका स्त्रीत्व सुरक्षित नहीं। पापनी, अपराधनी और व्यभिचारी कह कर उन्हें समय के कठघड़े में खड़ा कर दिया जाता है। उनके अस्तित्व को नकार दिया जाता है। जब  आधुनिक जीवन स्थितियों के समानांतर अधिकार प्राप्त करने की लालसा या फिर प्राप्त करवा देने की क्रियात्मक्ता के साथ, रस्मोरिवाज और विचार के स्तर पर वे आधुनिक बनने की लालसा को व्यंजित करती हैं, उन्हें व्यभिचारी करार दिया जाता है। इसी दोहरी मानसिकता के चलते भारतीय स्त्री, वर्तमान जीवन की त्रासद स्थितियों के बीच जीने के लिए विवश हो गई है।

देवी होकर भी देवी नहीं है: हाल के वर्षो में महिलाओं को देवी मानने की इस अवधारणा में एक बड़ा मानसिक संघटन हुआ है। महिलाओं को लेकर पुराने विचार, परंपरागत संबंध, आदर और आस्था बटोरते आदर्श कहीं-न-कहीं खोखले हुए हैं। इनके सम्मान के प्रति एक गहरी टूटन सर्वत्र व्याप्त दिखती है और इस मूल्य हीनता का शिकार स्त्रियां घर और बाहर दोनों जगह हैं। घर के भीतर वो अपनों के आत्मघात और शोषण की शिकार हैं, तो बाहर मुखौटा धारण किए कामुक यायावरों से त्रस्त। अलबत्ता, देवी रूपी इस पूजनीया के प्रति हिंसा और शोषण इन नौ दिनों में भी नहीं रुकता। यकीनन राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो जैसी संस्थाएं इस बात की तस्दीक करती हैं कि देवी की इस पावन धरा पर कुकर्म लगातार बढ़ रहे हैं। रिपोर्ट बताती हैं कि हर साल बार-बार पूजी जाने वाली स्त्रियां किस संत्रास से गुजर रही हैं।

29 सितम्बर को जारी ‘भारत में अपराध-2019’ रिपोर्ट बताती है कि पिछले साल देश में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में 7.3 फीसद की बढ़त हुई है। साल 2019 में प्रति एक लाख की आबादी पर दर्ज महिलाओं के खिलाफ अपराधों की दर 62.4 फीसद रही। साल 2018 में यह दर 58.8 फीसद रही थी। और अब तो यह लगातार बढ़ रही है। इस दौरान देश में रोजाना औसतन 87 दुष्कर्म के मामले सामने आए और महिलाओं के खिलाफ 3,78,236 मामले दर्ज किए गए। इनमें  अधिकाश (30.9 फीसद) पीड़िता के पति या रिश्तेदारों से जुड़े थे। इसके अलावा, महिलाओं पर 21.8 फीसद हमले उनकी इज्जत पर हमला करने के इरादे से किए गए। ये आंकड़े स्त्री को देवी स्वरूपा मानने वाले समाज से देवी जैसे शुचितापूर्ण शब्दों को नये सिरे से परिभाषित किए जाने की मांग करते हैं।

क्या स्त्रियों के प्रति छद्म आदर और झूठी आस्था बटोरते समाज पर सवालिया निशान नहीं लगाया जाए? क्या उन्हें कठघरे में खड़ा कर उनकी भूमिका पर सार्थक और महत्त्वपूर्ण सवाल न पूछा जाए। सिर्फ  विचारों के आधार पर छद्म दार्शनिकता और स्त्री विमर्श जैसे प्रतिमान गढ़ने का विरोध न किया ही जाए। स्त्रियां अगर देवी हैं तो उनके स्त्रीतत्व को असल सम्मान मिले। आस्था और भक्ति का ढोंग सिर्फ  नौ दिन ही क्यों तदन्तर क्यों नहीं। पुरु ष समाज महिलाओं को लेकर गढ़े गए अपने दैहिक शोषण के समीकरण से बाहर निकले। औरतों की वास्तविक पूजा तभी होगी।

डॉ. दर्शनी प्रिय


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