मीडिया : कोरोना, आम आदमी और मीडिया

Last Updated 17 Apr 2021 11:20:03 PM IST

सब जानते थे कि कोरोना कहीं नहीं गया है। उसकी दूसरी लहर और देशों में आ रही है तो यहां भी आएगी। तब तैयारियां क्यों नहीं की गई? अब न बेड हैं। न प्लाज्मा है।


मीडिया : कोरोना, आम आदमी और मीडिया

न आक्सीजन है। न टीका है। ऐसा क्यों हुआ? सब जानते हैं कि भीड़ें कोरोना को फैलाने वाली ‘सुपर स्प्रेडर’ हैं। तब भीड़ें क्यों बनने दीं? किसानों को धरना क्यों देने दिया गया? चुनावों में रैलियों और रोड शोज की अनुमति क्यों दी गई? कुंभ को अनुमति क्यों दी गई?
ये हमारी नहीं एक बड़े कोरोना एक्सपर्ट डाक्टर  की तल्ख टिप्पणी थी जो एक दिन पहले एक चैनल पर सुनी गई। चैनल कोरोना की दूसरी लहर के इतने विकराल रूप से फैलने के कारण और निवारण पर चरचा करा रहा था जहां सबसे बड़ा कारण ‘भीड़ों’ को बताया जा रहा था! पिछले एक महीने से हर रोज कोरोना की दूसरी विकराल लहर के प्रकोप की दहशतनाक खबरें को देखते सुनते आ रहे हैं। लाशों के अंबार लगे हैं कूड़ा-गाड़ियों में लाशें ढोयी जा रही हैं परिजन बिलखते दिखते हैं। सर्वत्र मौत का डर है चैनल इस डर को और बढ़ा-चढ़ाकर पेश करते हैं कोई साहस नहीं बंधता दिखता। आम आदमी बेसहारा है! जिंदा है तो अपनी जिजीविषा के बल पर! कई राज्य सरकारों ने नाइट और सप्ताहांत का कर्फ्यू लगाया है मजदूर फिर लौटते दिखते हैं! सर्वत्र त्राहि-त्राहि है जैसी पिछले बरस थी। पिछले बरस की तरह ही नेताओं ने और सरकारों ने अपने हाथ खड़े कर दिए हैं और वे एक दूसरे पर आरोपों में व्यस्त हैं। रोज सैकड़ों की मौत हो रही है और मौत पर भी राजनीति है कि कोरोना से मरा कि अन्य बीमारी से मरा! दवाओं और टीकों की और कालाबाजारी की खबरें हैं। पैसे और रसूख वालों को सब कुछ है। बाकी को कुछ नहीं है।

सब नसीहत देते हैं कि कोरोना से ‘बचना’ ही कोरोना का ‘इलाज’ है। इसलिए तो बाहर निकलिए तो मास्क लगाइए। दो गज की दूरी रखिए। हाथ धोइए!  कोरोना के ग्लोबल खुदा पहले कहते थे कि ये हवा में नहीं रहता अब कह रहे हैं हवा में रहता है इसलिए दो-दो मास्क लगाइए घर के अंदर भी लगाके रखिए! चैनलों की खबरों यही सीख देती हैं कि अंतत: आपकी  सुरक्षा की जिम्मेदारी सिर्फ आप पर है! चैनलों की चरचाएं मजेदार हैं:भीड़ रोकनी थी तो ‘कुंभ क्यों कराया?’ जबाव: आस्था का सवाल है और ‘चुनाव की रैलियों की अनुमति क्यों?’ जबाव आया: जनतंत्र की जरूरत है जब पूछा इतने अधिक संक्रमित क्यों? जबाव: लोग जरूरी सावधनी नहीं बरतते जहां चाहें भीड़ लगा लेते हैं। आप रोकते क्यों नहीं? जबाव:इसीलिए तो मास्क न लगाने पर हजार से दस हजार का जुर्माना लगा रहे हैं। जो गरीब जुर्माना नहीं दे सकते?  उनको जेल में डालेंगे? लेकिन करोड़ों के लिए तो जेलें भी नहीं! तब क्या?
किसी के पास कोई जबाव नहीं है। अंत में सब भगवान भरोसे है! इसके बरक्स खबर चैनलों में हर पांच दस मिनट में दुहरते उन विज्ञापनों को देखें जिनमें कोई-न-कोई सीएम मुस्कुराता हुआ अपनी ‘उपलब्धियां’ गिनाता रहता है। मैंने ये कर दिया, मैंने वो कर दिया! ‘उनके’ आशीर्वाद से मैंने अपने राज्य को स्वर्ग बना दिया है। अभी और बनाना है! और जब खबरें असलियत बताती हैं कि इन राज्यों के अस्पतालों में कोरोना संक्रमितों के लिए पर्याप्त बेड नहीं, टीकों की कमी है, प्लाज्मा और आक्सीजन की कमी है। यही नहीं मशान और कब्रिस्तानों में अंतिम संस्कार के लिए जगह नहीं है। बिलखते परिजन लाइन लगा के खड़े दिखते हैं..तब इन विज्ञापनों की चमक के नीचे छिपाए जा रहे भयावह यथार्थ का परदा हटता है, लेकिन मजाल की कोई एंकर उसी सीएम से तुरंत यह पूछे कि सर जी आपके बनाए स्वर्ग के पीछे तो अभाव का ये भयावह नरक छिपा है, क्या अब भी आप मुस्कुराते विज्ञापन करते हुए दिखेंगे? लेकिन कोई चैनल और एंकर ऐसे  कठोर सवाल क्यों पूछें?
पूछेंगे तो विज्ञापन बंद हो जाएंगे कमाई नहीं होगी! कमाई नहीं तो चैनल बंद!  एक एंकर कहता है कि नेताजी ने कहा था कि भीड़ न करें, लेकिन नेताजी रैलियों में जा रहे हैं। वे अपनी ही बात पर कायम क्यों न रहे लेकिन पूछे कौन? अजीब दुष्चक्र है:आस्था है तो भीड़ होगी ही। चुनाव है तो भीड़ होगी ही। भीड़ होगी तो कोरोना फैलेगा ही। कोरोना फैलेगा तो लोग मरेंगे ही! लॉकडाउन कर दें तो रोटी न मिलेगी! तय कर लें कि भरे पेट मरना है कि भूखे पेट मरना है। जिस तरह बस अड्डे या रेलवे स्टेशन पर लिखा रहता है कि ‘अपने सामान की आप रक्षा करें!’ उसी तरह मीडिया के संदेशों में यही कहा जाता है कि ‘आदमी अपनी रक्षा स्वयं करे!’ आमजन को भाग्य भरोसे छोड़ दिया गया है! कोरोना की राजनीति में मीडिया का भी हिस्सा है!

सुधीश पचौरी


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