एड्स दिवस : एड्स का जोखिम बरकरार

Last Updated 01 Dec 2020 12:07:39 AM IST

पिछले दिनों यूएनएड्स द्वारा प्रकाशित ‘सैजिंग द मूमेंट’ नामक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया नए एचआईवी संक्रमणों को रोकने के लक्ष्य से काफी पीछे है।


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2019 में करीब 17 लाख नए मामले सामने आए थे, जो वैश्विक लक्ष्य से करीब तीन गुना ज्यादा हैं, हालांकि इनमें 2010 से करीब 23 फीसद की कमी आई है। इसके बावजूद यह 75 फीसद की कमी लाने के लक्ष्य से दूर है।  कुल मिलाकर कोविड की वजह से 2020 के लिए जो लक्ष्य निर्धारित किया गया था, उसे हासिल नहीं किया जा सकेगा।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार एचआईवी महामारी की शुरु आत से लेकर अब तक 7.5 करोड़ लोग संक्रमित हो चुके हैं और 3.2 करोड़ लोगों की मौत हो चुकी है। इस महामारी से दुनियाभर में हर साल लाखों मौत हो रही है। साल 2018 में ही 7.70 लाख लोग मारे गए, जबकि 17 लाख लोग संक्रमित हो गए। दुनियाभर में कुल 3.79 करोड़ लोग एचआईवी अथवा एड्स से पीड़ित हैं। हालांकि यूएनएड्स और डब्ल्यूएचओ द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार 2000 से 2019 के बीच नए एचआईवी संक्रमणों में करीब 39 फीसद की गिरावट आई है।

इसी अवधि में एचआईवी संबंधित मौतों में भी 51 फीसद की गिरावट दर्ज की गई है। इसमें एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी, दवाओं का बहुत बड़ा योगदान है। पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका में इस दिशा में प्रगति हुई है। वहां 2010 के बाद से संक्रमण के नए मामलों में 38 फीसद की गिरावट आई है, जबकि पूर्वी यूरोप और मध्य एशिया में 2010 के बाद से एचआईवी के नए मामलों में 72 फीसद की वृद्धि देखी गई है। मिडिल ईस्ट और उत्तरी अफ्रीका में नए संक्रमणों में 22 फीसद वृद्धि हुई है, वहीं दक्षिण अमेरिका में 21 फीसद की वृद्धि दर्ज की गई है।

रिपोर्ट के अनुसार 14 देशों ने एचआईवी उपचार के 90-90-90 लक्ष्य को हासिल कर लिए हैं। इसके अनुसार एड्स से ग्रस्त 90 फीसद लोगों को पता हो कि वो अपनी एचआईवी स्थिति को जानते हैं। इनमें से 90 फीसद को एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी (एआरटी) मिल रही है, जबकि 90 फीसद को दवाओं से फायदा मिला है।

भारत में 1986 में पहला मामला सामने आने के बाद एचआईवी-एड्स सालों तक एक बड़े खौफ का सबब रहा। इसके खिलाफ शुरू की गई योजनाबद्ध जंग से अब इसकी पकड़ लगातार ढीली पड़ रही है। सरकारी और गैर सरकारी समूहों के संगठित प्रयासों से देश में एचआईवी-एड्स के नए मामलों में काफी कमी आई है। नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (नाको) की वार्षिक रिपोर्ट 2018-19 के मुताबिक भारत की 0.22 प्रतिशत आबादी एचआईवी से संक्रमित है। संक्रमितों में 0.25 प्रतिशत पुरुष और 0.19 प्रतिशत महिलाएं शामिल हैं।

2001-03 के दौरान संक्रमण चरम पर था। इस दौरान 0.38 प्रतिशत आबादी संक्रमित थी। संक्रमण में कमी के बावजूद भारत में 21.4 लाख लोग एचआईवी से पीड़ित हैं। नाको के अनुसार 2017 तक एड्स के नए मामलों में तो भारी कमी आई ही, इसके कारण होने वाली मौतें भी 2005 के मुकाबले करीब 71 प्रतिशत कम हुई। फिलहाल सरकार 2024 तक देश से इसका पूरी तरह सफाया करने का इरादा रखती है।
पूरी दुनिया में सभी सरकारें एचआईवी एड्स से बचे रहने के बारे में जागरूकता अभियान छेड़े हुए हैं। सभी सरकारें, स्वयंसेवी संस्थाए, सामाजिक कार्यकर्ता और स्वयंसेवक आम लोगों को यह बताने में अपनी पूरी ताकत लगा रहे हैं कि यह बीमारी छुआछूत से नहीं फैलती और इससे पीड़ितों के साथ सद्भावना से पेश आना चाहिए। लेकिन इसके ठीक उलट लोग एड्स से पीड़ित व्यक्ति को घृणा से देखते हैं और उससे दूरी बना लेते हैं। एचआईवी से संक्रमित व्यक्ति का राज खुलने पर उसके माथे पर कलंक का टीका लग जाता है।

यह कलंक इस बीमारी से भी बड़ा होता है और पीड़ित को घोर निराशा का जीवन जीते हुए अपने मूलभूत अधिकारों और मौत के अंतिम क्षण तक एक अच्छी जिंदगी जीने से वंचित होना पड़ता है। अब वक्त आ गया है कि हम सभी एचआईवी एड्स को कलंक के रूप में प्रचारित करने की अपनी सोच और आचरण में बदलाव लाने के लिए काम करें। हमें एचआईवी एड्स से जुड़ी हर चर्चा, प्रतिबंधात्मक उपाय और शोध कार्य के दौरान इससे जुड़े कलंक को खत्म करने के मुद्दे को भी शामिल करना चाहिए।

शशांक द्विवेदी


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