स्मृति : अलविदा अहमद भाई
यूं तो हर जाने वाले के बाद उसकी अकीदत में कसीदे गढ़े जाते हैं। राजनीति में तो दुश्मन भी आकर घड़ियाली आंसू बहाते हैं।
स्मृति : अलविदा अहमद भाई |
काश मरने वाले को अपनी इन तारीफों का ट्रेलर उसके जीते जी मिल जाए, तो उसके दिल को कितना सुकून मिले। ब्रज में पिछली सदी में एक महान संत हुए थे, ग्वारिया बाबा। उन्होंने वृंदावन वासियों की सभा बुला कर कहा कि जो कुछ श्रद्धांजलि तुम मेरे मरने के बाद मुझे दोगे, वो आज मेरे सामने ही दे दो। सबने इसे मजाक समझा, पर बाबा गंभीर थे। फर्श बिछाए गए और शोक सभा प्रारंभ हो गई। बाबा दूर कौने में बैठ कर सुनते रहे और बोलने वाले एक के बाद एक उनके गुणों का यशगान करते गए। सभा समाप्ति पर बाबा ने सबका धन्यवाद किया। इत्तफाक देखिए कि कुछ दिनों बाद ही बाबा ने समाधि ले ली।
अहमद भाई पटेल कोई संत नहीं थे, राजनीतिज्ञ थे। राजनीति में ऊंच-नीच सबसे होती है। गलत और सही निर्णय भी होते हैं। दोस्त और दुश्मन भी बनते-बिगड़ते रहते हैं। क्योंकि राजनीति एक ऐसी काजल की कोठरी है कि जिसमें, ‘कैसो ही सयानो जाए - काजल को दाग भाई लागे रे लागे’। न पहले के सत्तारूढ़ दल में संत थे और न आज हैं। संतों का राजनीति से क्या काम? इसलिए अहमद भाई का मूल्यांकन एक राजनीतिज्ञ की तरह ही किया जाना चाहिए। जैसे साम, दाम, दंड, भेद अपना कर अमित भाई शाह ने भाजपा को मजबूत बनाया है और अपने नेता नरेंद्र भाई मोदी के प्रति पूर्ण निष्ठा का प्रमाण दिया है, वैसे ही अहमद भाई पटेल ने इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और सोनिया गांधी के प्रति अपनी निष्ठा रखते हुए कांग्रेस को मजबूत बनाया और उसे सत्ता में बनाए रखा। लेकिन उन्होंने खुद कभी कोई मंत्रिपद नहीं लिया और अपनी उपलब्धियों का ढिंढोरा भी मीडिया में नहीं मचने दिया।
अब तक बहुत सारे राजनेता, स्वयं प्रधानमंत्री मोदी, मीडियाकर्मी और कांग्रेस के करोड़ों कार्यकर्ता अहमद भाई की बेमिसाल शख्सियत का गुणगान अपने शोक संदेशों में कर चुके हैं। इसलिए मैं उन्हें यहां नहीं दोहरा रहा हूं कि वो कितने सहृदय थे, अहंकार शून्य थे, विनम्र थे, सबकी मदद करने के लिए तैयार रहते थे और सभी राजनीतिक दलों से उनके मधुर संबंध थे। मैं तो अहमद भाई पटेल की उस बात को रेखांकित करना चाहूंगा, जो भाजपा सहित सभी राजनेताओं को उनसे सीखनी चाहिए। वो थी अपने दुश्मन की भी योग्यता का सम्मान करना।
जैन हवाला कांड में कांग्रेस के दर्जनों केंद्रीय मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों, राज्यपालों व सांसदों को इस्तीफा देना पड़ा था। इस दृष्टि से 1996 के बाद मैं कांग्रेस का दुश्मन ‘नम्बर एक’ माना जा सकता था। पर आश्चर्य है कि ऐसा नहीं हुआ। चाहे माधव राव सिंधिया हों, राजेश पायलट हों, कमलनाथ हों, अजरुन सिंह हों, ऐसे किसी भी बड़े नेता ने मेरे साथ कभी असम्मानजनक व्यवहार नहीं किया। बल्कि ये कहा कि तुमने अपना पत्रकारिता धर्म निभाया, इसलिए हमें तुमसे कोई शिकायत नहीं। हद तो तब हो गई, जब हवाला कांड के कुछ वर्ष बाद ही तब की मेरी राष्ट्रीय छवि को ध्यान में रखते हुए अहमद भाई ने मुझे कांग्रेस में शामिल होकर उत्तर प्रदेश की राजनीति संभालने का प्रस्ताव रखा। पता चला कि सोनिया गांधी ने इसका विरोध ये कह कर किया कि ‘विनीत नारायण ने हमारे दल की छवि का सबसे ज्यादा नुकसान किया है। वो कैसे हमारे दल में नेता बन सकता है?’ इस पर अहमद भाई का कहना था कि, ‘विनीत नारायण ने जो कुछ भी किया, वो एक पत्रकार के नाते किया। वो जब दल में शामिल हो जाएगा, तो दल के हिसाब से काम करेगा।’ इस पर तय यह हुआ कि अंबिका सोनी मुझे चाय पर बुलाएं और मुझसे लंबी बात करके ये तय करें कि मेरी कांग्रेस में क्या भूमिका रहेगी। अहमद भाई के सुझाव पर मैं अंबिका जी के साथ डेढ़ घंटा बैठा, पर उनसे मैंने साफ कहा कि मेरी रुचि रचनात्मक कार्यों में है, राजनीति में नहीं। और मैं हर दल से मधुर संबंध बना कर सही दूरी रखना चाहता हूं। ये उन दिनों की बात है, जब मैं ब्रज सेवा शुरू कर चुका था। इसलिए भी मेरी ब्रज के अलावा कहीं और रुचि नहीं थी।
इसके 7 साल बाद मेरे पुत्र के विवाह के स्वागत समारोह में 9 तुगलक रोड, नई दिल्ली पर केंद्र सरकार के अनेक मंत्री व भाजपा सहित अनेक दलों के राष्ट्रीय नेता भी बधाई देने आए। उस समय अहमद भाई पटेल की सत्ता के गलियारों में तूती बोलती थी। पर वे चुपचाप आए, वर-वधू को आशीर्वाद दिया और एक कोने में सोफे पर जाकर बैठ गए। वहां कुछ वरिष्ठ पत्रकारों और अधिकारियों से कहने लगे कि हमने तो विनीत जी को उत्तर प्रदेश का जिम्मा सौंपने का प्रस्ताव दिया था। पर इन्होंने हमारी बात नहीं मानी। वरना आज ये कांग्रेस के बड़े नेता होते। ऐसे तमाम अवसर आए, जब अहमद भाई मेरे पारिवारिक उत्सवों में चुपचाप आए और बिना हड़बड़ी के काफी देर बैठ कर गए। इस मामले में मैं आडवाणी जी की भी दाद दूंगा कि वे मेरे सभी पारिवारिक उत्सवों में आशीर्वाद देने आए। बिना ये सोचे कि हवाला कांड में आरोपित होने से उनके राजनीतिक कैरियर को कितना बड़ा झटका लगा था।
मैंने 35 वर्ष की पत्रकारिता में लगभग सभी दलों के बड़े राजनेताओं के साथ समय बिताया है। पर कभी किसी की अंधभक्ति नहीं की। कभी किसी की आलोचना करने में कसर नहीं छोड़ी। जो सही लगा, उसे सही कहा और जो गलत लगा, उसे गलत। पर मानना पड़ेगा कि उन सब राजनेताओं की पीढ़ी बहुत गंभीर, सौम्य, सहनशील और उदार थी। अहमद भाई पटेल उसी पीढ़ी के एक चमचमाते सितारे थे, जिनकी कमी उनके राजनीतिक दुश्मनों को भी खलेगी। आज की राजनीति में इस शालीनता और लोकतांत्रिक मूल्य की भारी कमी महसूस की जा रही है। अलविदा अहमद भाई।
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