बतंगड़ बेतुक : हम अपना भक्ति धर्म निभाएंगे
झल्लन आते ही बोला, ‘ददाजू, हम अपना दिमाग एक बड़ी उलझन में फंसा लिये हैं, क्या करें, क्या नहीं करें इस दुविधा से निपटने में पूरा जोर भी लगा दिये हैं पर कोई फौरी समाधान नहीं निकला सो किसी सुकर समाधान के लिए आपके पास आ लिये हैं।’
बतंगड़ बेतुक : हम अपना भक्ति धर्म निभाएंगे |
हमने कहा, ‘ऐसी क्या उलझन आ गयी जो तुझ जैसे चिर उलझे हुए आदमी को और उलझा गयी और कभी-कभी जलने वाली दिमाग की बत्ती को फिर बुझा गयी?’ झल्लन ने सर खुजाते हुए और थोड़ा हमारी बात पर मुस्कुराते हुए कहा, ‘असल में ददाजू, हम समझ नहीं पा रहे हैं कि हम गवैया-अभिनेता-नेता, आप-निंदक नेता तिवारी के साथ जायें या बीजेपी की नाक में उंगली डाले रखने वाले और उसे नाकों चने चबवा देने वाले अपनी राजधानी के मुख्यमंत्री के साथ गोटी बिठाएं?’
हमने कहा, ‘किस मुद्दे पर तू गवैया नेता के साथ आना चाहता है और किस मुद्दे पर आप के बाप मुख्यमंत्री का साथ निभाना चाहता है?’ झल्लन बोला, ‘बात छठ मैया की अगवानी की है। छठ मैया आ गयी है पर देखिए, उसके आगमन पर राजनीति छा गयी है। मुख्यमंत्री कहता है कि छठ मैया की अगवानी तो करेंगे पर थोड़ी दूरी बनाकर करेंगे और मास्क लगाकर करेंगे, साथ ही अध्र्य देने के लिए न भीड़ जुटाएंगे और न भीड़ में जुटेंगे।’ हमने कहा, ‘एक जिम्मेदार मुख्यमंत्री ऐसी बात कह रहा है तो मानना चाहिए कि सोच-समझकर कह रहा है और कोरोना महामारी के राजधानी में आतंक के चलते कह रहा है। उसकी जिम्मेदारी है कि लोगों को भीड़ में जाने से बचाए और ऐसे बुरे दौर में भीड़ बनने के खतरे समझाए और उन्हें बेहूदे वायरस की चपेट से बचाए।’ झल्लन बोला, ‘पर ददाजू, हमारा गवैया सांसद भी तो जिम्मेदार है, कोरोना को लेकर वो भी खबरदार है। पर वो कहता है छठ माई की भीड़-झुंड अगवानी पर जो पाबंदी लगाई है वह लगाने वाले ने बुरी नीयत से और नमकहरामी के तहत लगाई है।’ हमने कहा, ‘छठ मैया की अगवानी पर बिहारी पूर्वाचलियों की नजर रहती है और छठ मैया की कृपा भी इन्हीं पर बरसती है और गवैया नेता की राजनीति इन्हीं के बल पर चलती है, सो वह कैसे मान लेगा कि झुंड-पूजा पर जो रोक लगायी गयी है वो सही लगाई गयी है। उसे तो लगता है कि छठ मैया के बहाने उसी को निशाना बनाकर उसी पर तोप चलाई गयी है। बड़ा बुरा वक्त आ गया है, तेरी छठ मैया का आगमन हो या दशहरा-दीवाली पर गणोश-लक्ष्मी का आगमन हो, राजनीति सब में घुस जाती है और सबका मजा किरकिरा कर जाती है।’
झल्लन बोला, ‘ददाजू, यहीं तो हम अटक गये हैं और लीक से थोड़ा भटक गये हैं। यही हमारी समझ में नहीं आ रहा है कि जिम्मेदार मुख्यमंत्री के काम-कदम को जायज ठहराएं या जिम्मेदार सांसद के व्यवहार को जिम्मेदार बताएं?’ हमने कहा, ‘देख झल्लन, जिम्मेदारी और समझदारी इसमें है कि कोरोना के मुद्दे पर दोनों सहमत हो जायें, मिल-जुलकर मुहिम आगे बढ़ाएं और कोरोना ने दिल्ली को जिस तरह जकड़ रखा है उसे उसकी जकड़ से बचाएं।’ झल्लन बोला, ‘चाहते तो हम भी यही थे पर हमारे चाहने से क्या होता है, होता वही है जो मंजूरे नेता होता है और हम यहीं दुविधाग्रस्त हैं कि इस नेता के साथ जायें या उस नेता के साथ जायें?’ हमने कहा, ‘तू ये तो जानता है कि करणीय क्या है और अनुचित-अकरणीय क्या है, फिर इसमें तेरी दुविधा क्या है।’ झल्लन बोला, ‘दुविधा ये है ददाजू कि अगर हम सांसद को गलत ठहराते हैं तो छठ माई नाराज हो जाएगी और नाराज माई न जाने किस-किस की वॉट लगाएगी। और अगर हम मुख्यमंत्री को गलत ठहराते हैं तो कोविड का कहर और पसर जाएगा और ये दानव न जाने और कितनों को निगल जाएगा।’ हमने कहा, ‘अब तुझे क्या हिसाब-किताब लगाना है। साफ-साफ तय हो रहा है कि माई का पक्ष छोड़ तुझे दानव के विरोध में जाना है यानी सांसद का पक्ष नहीं लेना है, मुख्यमंत्री का साथ निभाना है।’ झल्लन बोला, ‘देखिए ददाजू, आप इतने जटिल और गंभीर मसले का इतना सरल हल नहीं निकाल सकते और इस हल की वजह से हमें बड़ी दुविधा में नहीं डाल सकते।’ हमने कहा, ‘हम अक्ल की बात बता रहे हैं तो तेरी समझ में नहीं आ रही है और नेताओं की तरह समझदारी तेरे लिए दुविधा हुई जा रही है।’
झल्लन बोला, ‘देखिए ददाजू, हम आपकी बात से सहमत नहीं हो रहे हैं और यहां अपना निर्णय खुद ले रहे हैं। निर्णय ये कि हम छठ मैया की पूजा का थाल सजाएंगे और अपना भक्ति धर्म निभाएंगे। छठ माई छठ माई है उसमें भक्ति और श्रद्धा की अपार ताकत समाई है, वह खुश हो गयी तो वारे-न्यारे कर जाएगी, नाराज हो गयी तो पूरी दिल्ली को तबाह कर जाएगी। रही दानव कोरोना की बात तो हमें लगता है कि जब छठ मैया दुर्गा का अवतार लेकर दानव से भिड़ जाएगी तो पक्का उसे मार गिराएगी, छठ मैया के आगे कोरोना की एक नहीं चल पाएगी। सो सोचे हैं कि हम अपने सांसद का साथ निभाएंगे, मुख्यमंत्री के साथ नहीं जाएंगे।’
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