बिहार : मूक नहीं हुए सवाल

Last Updated 19 Nov 2020 02:47:39 AM IST

बीते दस नवम्बर, 2020 को देर रात घोषित चुनाव परिणाम के बाद यह साफ हो गया था कि बिहार में एनडीए की ही सरकार बनेगी।


बिहार : मूक नहीं हुए सवाल

इसका कारण भी था। एनडीए को 125 सीटें मिलीं तो राजद महागठबंधन 110 सीटें प्राप्त कर सका। महागठबंधन बहुमत के लिए 12 सीटों से दूर रह गया। इस प्रकार नीतीश कुमार सातवीं बार बिहार के सीएम बन गए हैं। चुनाव परिणाम के बाद विश्लेषकों ने अलग-अलग रूपों में इसकी व्याख्या की है। कुछ ने इसे नीतीश कुमार की छवि की जीत बताया है, वहीं कुछ ने जीत का सारा श्रेय नरेन्द्र मोदी को दिया है। लेकिन इस पूरे विमर्श में चुनाव परिणाम के मूल को नजरअंदाज किया जा रहा है।
चुनाव परिणाम यह बताता है कि राजद महागठबंधन ने एनडीए को कड़ी चुनौती दी। यह चुनौती इसलिए भी मानीखेज कही जानी चाहिए क्योंकि इसका नेतृत्व तेजस्वी यादव कर रहे थे, जिनकी उम्र केवल 31 साल है। उनकी खासियत यह रही कि उन्होंने अपने पिता की राजनीति को नया विस्तार दिया। चुनाव के पहले यह माना जा रहा था कि तेजस्वी यादव नीतीश कुमार के सामने कहीं नहीं टिकेंगे। इस कयासबाजी की एक बड़ी वजह यह भी थी कि उनके साथ नरेन्द्र मोदी थे।

परंतु यह महज कयासबाजी साबित हुई। तेजस्वी यादव ने अपनी चुनावी रणनीति को ठोस आकार दिया और राजद की छवि को बदलकर रख दिया। अपने सहयोगी दलों कांग्रेस और  वाम दलों को 99 सीटें देकर उन्होंने यह साफ कर दिया कि वे कुछ अलग करेंगे। हालांकि इस बात की गुंजाइश अवश्य थी कि वे चाहते तो उपेंद्र कुशवाहा, ओवैसी और पप्पू यादव को महागठबंधन का हिस्सा बना सकते थे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और तेजस्वी यादव को पूरा चुनाव अपने नेतृत्व में लड़ना पड़ा।
अब सवाल उठता है कि क्या वाकई में तेजस्वी यादव की हार हुई है? यदि 125 के मुकाबले 110 के आंकड़े को देखें तो निश्चित रूप से यह तेजस्वी की पराजय है। परंतु, चुनावी राजनीति के लिहाज से देखें तो उन्होंने बड़ी जीत हासिल की है। दूसरी तरफ पिछली बार 71 सीटें जीतने वाले नीतीश कुमार इस बार 43 सीटें जीत सके। इस प्रदशर्न के पीछे जो तर्क दिए जा रहे हैं, उनमें भाजपा द्वारा किया गया भितरघात शामिल है। बताया जा रहा है कि भाजपा के आधार वोटरों ने जदयू उम्मीदवारों को वोट नहीं दिया जबकि जदयू के वोटरों ने भाजपा को अपना वोट दिया। एक दूसरा तर्क यह है कि लोजपा के उम्मीदवारों ने जदयू को 43 पर समेट दिया। इन दोनों तकरे से इतर एक तर्क यह भी कि नीतीश कुमार पूरे चुनाव कोई मुद्दा नहीं रख सके जबकि तेजस्वी यादव पढ़ाई, कमाई, दवाई, सिंचाई का मुद्दा बनाने में सफल रहे। वहीं भाजपा इस बार सीधे नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में चुनाव लड़ रही थी और उन्होंने हिंदुत्व को मुद्दा बनाने में सफलता पाई।
इन सबके अलावा बिहार विधानसभा चुनाव-2020 का हासिल रहा एक मजबूत विपक्ष और एक बेहद कमजोर सरकार। कमजोर सरकार से आशय यही कि 2005 से लेकर 2020 तक नीतीश कुमार सात बार सीएम बने लेकिन विधानसभा में पक्ष और विपक्ष के बीच अंतर इतना कम नहीं रहा। वास्तविकता तो यह है कि इस बार भाजपा और जदयू, दोनों मिलकर भी 122 के आंकड़े को पार नहीं कर सके। भाजपा को 74 और जदयू को 43 सीटें मिली हैं। इसका योग 117 होता है। यह आंकड़ा बहुमत के आंकड़े से 5 कम है।
अब केवल पांच सीटों के लिए नीतीश कुमार और नरेन्द्र मोदी की मजबूरी का आलम यह है कि उन्हें जीतनराम मांझी को बेटे संतोष मांझी को मंत्रिपरिषद में जगह देनी पड़ी। इतना ही नहीं, विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के संस्थापक मुकेश सहनी, जो स्वयं चुनाव हार गए लेकिन उनके दल के चार उम्मीदवार जीत गए, को भी मंत्रिपरिषद का हिस्सा बनाना पड़ा। नीतीश कुमार की परेशानी यह भी रही कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने इस बार उनके सामने दो ऐसी शत्रे रखीं जिनके लिए वे कतई तैयार नहीं होते यदि उनके पास साठ से अधिक सीटें होतीं। इनमें से एक तो विधानसभा अध्यक्ष का पद भाजपा को दिए जाने की शर्त शामिल है। दूसरी यह कि इस बार की सरकार में उन्हें दो मंत्रियों तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी को बतौर उपमुख्यमंत्री बनाना पड़ा।
दरअसल, बिहार चुनाव के बाद भी नवगठित सरकार की तस्वीर अभी तक साफ नहीं हुई है। इसकी वजह यह कि अभी मंत्रिपरिषद में केवल 15 सदस्य हैं। इनमें स्वयं नीतीश कुमार भी शामिल हैं। लगभग सभी मंत्रियों को औसतन तीन विभागों की जिम्मेदारी दी गई है। यह इस बात का संकेत भी है कि सरकार गठन को लेकर जो रस्साकशी भाजपा और जदयू के बीच चल रही थी, उसका पटापेक्ष अभी तक नहीं हुआ है। आने वाले समय में यह और स्पष्ट होगा कि यह तनातनी किस रूप में सामने आएगी।
इस तनातनी के पीछे एक मसला पश्चिम बंगाल में होने वाला चुनाव है। बताया जा रहा है कि केंद्र सरकार बिहार में एनआरसी और सीएए को लागू करना चाहती है, जिसका विरोध नीतीश कुमार करते रहे हैं। भाजपा बिहार के कंधे पर बंदूक रखकर पश्चिम बंगाल के समर को फतह करना चाहती है। यही वजह रही कि इस बार जब विभागों का बंटवारा चल रहा था तब गृह विभाग को लेकर जदयू और भाजपा के बीच अलगाव भी साफ दिखा।
बहरहाल, यदि कोई आश्चर्यजनक परिघटना न हो तो नीतीश कुमार के पास पर्याप्त बहुमत है। वे सरकार बिना किसी दबाव के चला सकते हैं परंतु असली सवाल तो यही है कि जूनियर पार्टनर होने के कारण क्या वे अपने सीनियर पार्टनर के हस्तक्षेप को अगले पांच वर्षो तक सहते रहेंगे।

नवल किशोर कुमार
फार्वड प्रेस, नई दिल्ली के हिंदी संपादक


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