बाल कैंसर : कारणों को रोकना जरूरी
एक समय कैंसर को मुख्यत: वयस्क आयु वर्ग के लोगों का रोग माना जाता था पर हाल के वर्षो में बाल-कैंसर (18 वर्ष से कम के आयु वर्ग) में भी कैंसर में तेजी से वृद्धि हुई है।
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अमेरिका में बहुत छोटे बच्चों को छोड़ दें तो अन्य सभी बच्चों और किशोरों में सबसे जानलेवा बीमारी कैंसर बन गई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार विश्व में एक वर्ष में तीन लाख बाल-कैंसर के मामले दर्ज हो रहे हैं। इस समय भारत में यह संख्या 50000 से 55000 के बीच है। पर विशेषज्ञ मानते हैं कि बहुत से अन्य बाल-कैंसर के मामले होते हैं विशेषकर निर्धन वर्ग और दूर के गांवों में जो दर्ज ही नहीं होते हैं। यह संख्या 20000 के आसपास अनुमानित है। इस तरह भारत में एक वर्ष में बाल-कैंसर के मामलों की संख्या 70000 से 75000 तक हो सकती है। यह संख्या किसी भी अन्य देश के बाल-कैंसर के मामलों से अधिक है। दिल्ली के 14 वर्ष तक की आयु के लड़कों में कैंसर की दर एशिया के किसी भी अन्य देश से अधिक पाई गई है।
अमेरिका के विशेषज्ञों ने वहां बाल-कैंसर बढ़ने की दर को बहुत चिंताजनक माना है पर भारत में यह वार्षिक वृद्धि दर वहां से अधिक पाई गई है। विकसित देशों में बाल-कैंसर के सफल इलाज या मरीज के ठीक होने की दर 80 से 90 प्रतिशत है, जबकि अनेक विकासशील और निर्धन देशों में यह मात्र 10 से 20 प्रतिशत है। भारत में यह 20 प्रतिशत के आसपास है। इस तरह विकासशील और निर्धन देशों में बाल-कैंसर की समस्या अधिक गंभीर है। विशेषकर दूर-दूर के गांवों में रहने वाले मरीजों का इलाज बहुत कठिन है।
अब बहुत से विशेषज्ञों का इस विषय पर एक मत बन रहा है कि बाल कैंसर की संभावना को रोकने पर अधिक ध्यान देना जरूरी है। नये अध्ययनों से यह निरंतर स्पष्ट हो रहा है कि बाल कैंसर के अधिकांश मामले तरह-तरह के खतरनाक उत्पादों और रसायनों के संपर्क से जुड़े होते हैं। अमेरिका की बाल कैंसर रोकथाम की पहल (चाइल्ड कैंसर प्रीवेंशन इनिश्येिटिव-सीसीपीआई) के सितम्बर, 2020 में जारी हुए अध्ययन ने बाल-कैंसर की संभावना को इस तरह काफी हद तक रोकने को ही सर्वाधिक महत्त्व दिया है। इस अध्ययन में विशेषकर रासायनिक कीटनाशकों, खरपतवारनाशकों, सड़क प्रदूषण और कुछ खतरनाक तरह के दैनिक जीवन के उत्पादों से होने वाली क्षति पर अधिक जोर दिया गया है। अध्ययन में बताया गया है कि बहुत बड़ी संख्या में नये रसायनों का उपयोग दैनिक जीवन के उत्पादों में हो रहा है जबकि इनसे जुड़े खतरों का अध्ययन भी नहीं हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार इन विभिन्न खतरों को नियंत्रित करने से बाल-कैंसर में तो कमी आएगी ही, साथ में कुछ अन्य लाभ भी प्राप्त होंगे।
इसके अतिरिक्त कुछ अन्य वैज्ञानिकों ने सेल फोन और उनके टावर से जुड़े रेडिएशन के खतरों की चर्चा इस संदर्भ में की है। डॉ. देवरा डेविड ने अपनी चर्चित पुस्तक में इलैक्ट्रो मैग्नेटिक प्रदूषण से मस्तिष्क टय़ूमर की संभावना के बारे में विस्तार से लिखा है, और साथ में विस्तार से बताया है कि यह खतरा विशेष रूप से बच्चों के लिए अधिक क्यों है। अब चूंकि बच्चों के लिए यह एक्सपोजर बहुत बढ़ रहा है, अत: इस खतरे की संभावना को कम करने के लिए विभिन्न सावधानियां अपनाना अब और जरूरी हो गया है।
हाल के अध्ययनों से बाल-कैंसर के पर्यावरणीय कारणों के बारे में बहुत सी ऐसी जानकारी उपलब्ध हुई हैं, जिनका असरदार उपयोग बाल-कैंसर को रोकने के लिए और महत्त्वपूर्ण स्तर पर कम करने के लिए किया जा सकता है। पर जैसा कि सीसीपीआई के अध्ययन ने रेखांकित किया है, इन जानकारियों को दबाने के कुप्रयास या इनके महत्त्व को नकारने के कुप्रयास भी बहुत हुए हैं। अब आगे सरकारों के सामने चुनौती है कि बच्चों के स्वास्थ्य और भविष्य को उच्चतम प्राथमिकता देते हुए वे जरूरी निर्णय लेती हैं कि नहीं। सरकारी प्रयासों के साथ यदि जन अभियान के स्तर पर बाल-कैंसर की संभावना को न्यूनतम करने की जानकारियों का प्रसार किया जाए तो सफलता अधिक शीघ्र मिलेगी और अधिक व्यापक स्तर पर मिलेगी।
यह सच है कि बाल कैंसर के इलाज में हाल के वर्षो में महत्त्वपूर्ण सुधार हुए हैं पर यदि बाल कैंसर के मामले तेजी से बढ़ते रहे तो केवल इलाज में सुधार के बल पर इस गंभीर स्वास्थ्य समस्या को काबू में नहीं किया जा सकेगा। इलाज में सुधार के साथ-साथ बाल कैंसर में वृद्धि के कारणों को रोकना भी जरूरी है।
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