मध्य प्रदेश उप चुनाव : शिवराज-सिंधिया ने जमाई धाक
मध्य प्रदेश विधानसभा की 28 सीटों पर हुए उप चुनाव ने अहमियत की कसौटी पर खुद को खूब खरा उतारा है।
![]() मध्य प्रदेश उप चुनाव : शिवराज-सिंधिया ने जमाई धाक |
मंगलवार को मतगणना के शुरुआती रुझानों के मुताबिक भाजपा ने 20 सीटों पर निर्णायक बढ़त बनाकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सत्ता बरकरार रहने पर मुहर लगा दी। दरअसल, भाजपा को राज्य की सत्ता में बने रहने के लिए उप चुनाव में कम से कम सात सीटें जीतने की दरकार थी। वहीं, कांग्रेस के कमलनाथ को अपनी गंवाई गई सत्ता वापस पाने के लिए सभी 28 सीटें जीतना जरूरी था। हालांकि कमलनाथ और कांग्रेसी खेमा शुरू से ही इस बात से वाकिफ था कि उसके लिए यह लक्ष्य हासिल करना एवरेस्ट फतह करने से कम कतई नहीं है।
चुनाव परिणाम का यह विश्लेषण लिखे जाने तक भाजपा की झोली में आठ सीटें आ चुकी थी। अब यह कहना गलत नहीं होगा कि बहुआयामी निहिताथारे के साथ लड़े गए इस चुनाव में राज्य की जनता ने कांग्रेसी खेमे से ज्योतिरादित्य सिंधिया की अगुवाई में हुई बगावत को अपनी परोक्ष स्वीकृति प्रदान कर दी है। साथ ही कांग्रेस आलाकमान को यह संदेश भी दिया है कि वह असल सियासी मुद्दों को अहंकार के बजाय जमीनी हकीकत और अहमियत के नजरिये से देखे।
इस चुनाव में यह बात भी सामने आई कि जनता ने चुनाव प्रचार में कांग्रेस के अभियान को नकारात्मक होने के कारण नकार दिया। यह सर्वविदित है कि कमलनाथ खेमे ने कांग्रेस से बगावत कर भाजपा के भगवा रंग में रंग चुके उम्मीदवारों को ‘गद्दार’ ठहराने पर पूरे चुनाव प्रचार को केंद्रित किया था। ऐसा करके कांग्रेस की रणनीति, दलबदल के सहारे उसकी सरकार गिराने के भाजपा के कामयाब पैंतरे को अपने पक्ष में जनसमर्थन हासिल करके गलत साबित करने की थी। कांग्रेस इस रणनीति के जरिये कमलनाथ के प्रति जनता की सहानुभूति भी बटोरना चाहती थी, लेकिन मध्य प्रदेश के मतदाताओं ने उल्टे कांग्रेस के प्रचार अभियान को नकारात्मक साबित कर दिया। कांग्रेस का यह दांव, पिछले लोक सभा चुनाव की ही तरह गलत साबित होता दिख रहा है। यह ठीक वैसे ही हुआ जैसे लोक सभा चुनाव में राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को शिकस्त देने के लिए ‘चौकीदार चोर है’ नारा गढ़ा था। इस नारे का क्या हश्र हुआ, यह किसी से छुपा नहीं है। स्पष्ट है कि कांग्रेस को अब एक बार फिर अपनी गलतियों से सबक नहीं लेने की भूल का खामियाजा भुगतना होगा। इसके बरक्स, हम जानते हैं कि मध्य प्रदेश विधानसभा के उपचुनाव के साथ ही बिहार विधानसभा का चुनाव भी हुआ है। राजनीतिक परिपक्वता की दृष्टि से देश में सर्वाधिक उर्वर माने गये राज्य, बिहार में भी चुनाव परिणाम से कुछ इसी तरह का संदेश निकल कर सामने आ रहा है। वहां भी, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ ऊर्जा से लबरेज युवा तेजस्वी यादव जबरदस्त लड़ाई लड़ते दिखे हैं। यहां भी महागठबंधन और एनडीए के बीच बिहार की सत्ता को लेकर सीधा टकराव है।
गौरतलब यह भी है कि नीतीश और मोदी ने समूचे चुनाव अभियान में शालीनता के साथ चुनाव प्रचार किया। उन्होंने बड़प्पन दिखाते हुए तेजस्वी को सीधे तौर पर निशाना नहीं बनाया। बुद्ध की धरती पर रहने वाले बिहारियों को शायद, शालीनता से भरा यह चुनाव अभियान, राजद और कांग्रेस की आक्रामक प्रचार शैली की तुलना में ज्यादा पसंद आया। कमोबेश, मध्य प्रदेश में भी चुनाव और सत्ता की सियासत में युवा बनाम बुजुर्ग पीढ़ी का मुद्दा शुरू से ही अपनी मौजूदगी का अहसास करा रहा था। राज्य में उपचुनाव की वजह बने सिंधिया ने चुनाव प्रचार में, कभी अपने रहे लेकिन अब विरोधी हो चुके नेताओं के खिलाफ तीखे तेवर जरूर दिखाए, लेकिन सीधे तौर पर कमलनाथ या दिग्विजय सिंह पर ऐसा कोई निशाना नहीं साधा जिससे मर्यादा की लक्ष्मण रेखा का हनन होता हो। वहीं टीम कमलनाथ पूरी तरह से भाजपा के उम्मीदवारों को ‘गद्दार और जयचंद’ के तमगों से नवाजती रही। बेहतर होता अगर कांग्रेसी खेमा, भाजपा उम्मीदवारों के बजाय सिंधिया की मुहिम को अनैतिक और अलोकतांत्रिक साबित करने वाली दमदार दलीलों का सहारा लेता। साथ ही कांग्रेस, अपने नकारात्मक प्रचार अभियान के कारण सभी 28 विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा खेमे में व्याप्त भितरघात की पुख्ता भनक का लाभ उठाने का सुनहरा मौका भी गंवा बैठी।
इस उप चुनाव में भाजपा ने दलबदल कर शिवराज की सरकार बनवाने वाले सिधिया खेमे के सभी विधायकों को टिकट दिया था। ऐसे में इन क्षेत्रों में भाजपा के पुराने उम्मीदवार और स्थानीय नेताओं में दलबदलू विधायकों के प्रति स्वाभाविक नाराजगी थी। कांग्रेस ने कमलनाथ सरकार गिरने की सहानुभूति बटोरने पर ही पूरा ध्यान केंद्रित कर, भाजपा के अवश्यंभावी भितरघात का लाभ उठाने की संभावनाओं को टटोला तक नहीं। इसका जीता-जागता सबूत सिंधिया के प्रभाव वाला ग्वालियर चंबल संभाग बना, जहां तीसरी ताकत के रूप में बसपा की मौजूदगी ने कांग्रेस को मजबूती प्रदान की। मतगणना के देर शाम तक के रु झानों से स्पष्ट हो गया कि इस संभाग की भांडेर, डबरा, मुरैना और ग्वालियर सीटों पर कांग्रेसी उम्मीदवारों ने भाजपा को कांटे की टक्कर दी। डबरा में मंत्री इमरती देवी शाम छह बजे तक कांग्रेस उम्मीदवार से 1300 मतों से पिछड़ गई। इन सीटों पर अंतिम परिणाम जो भी रहे लेकिन, रुझानों से स्पष्ट हो गया कि कांग्रेस अगर ग्वालियर चंबल संभाग में बसपा की तर्ज पर अन्य क्षेत्रों में भी तीसरी ताकत को उभारने की सूझबूझ दिखाती तो चुनाव की तस्वीर शायद इससे इतर कुछ और हो सकती थी।
कुल मिलाकर इस उप चुनाव ने मध्य प्रदेश में शिवराज और सिंधिया की जोड़ी को जनता की सभी कसौटियों पर खरा उतरने का मौका दिया और वे खरे उतरे भी। इससे भाजपा के भीतर सिंधिया की स्वीकार्यता तो बढ़ेगी ही, साथ में शिवराज को ‘महाराज’ के साथ कदमताल करने में असहज महसूस करने की आशंकाओं पर भी इस चुनाव परिणाम से विराम लगेगा। वहीं, कांग्रेस अगर समय रहते जमीनी हकीकत को स्वीकारने की समझ दिखाती है तो बेशक, मध्य प्रदेश की सियासी जमीन अभी भी कांग्रेस के लिए उर्वर बन सकती है।
| Tweet![]() |