अर्थव्यवस्था : संशोधनों से प्रभावी होगा आईबीसी

Last Updated 16 Nov 2020 05:09:03 AM IST

ऋण शोधन अक्षमता कानून समिति और मंत्रियों का समूह दिवाला और शोधन अक्षमता कोड (आईबीसी) में संशोधन करने पर विचार कर रहा है। संशोधन संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में पेश करने का प्रस्ताव है।


अर्थव्यवस्था : संशोधनों से प्रभावी होगा आईबीसी

इसके पहले आईबीसी में संशोधन इस साल जून महीने में अध्यादेश लाकर किया गया था, जिसके तहत यह प्रावधान किया गया था कि कोरोना महामारी की वजह से 25 मार्च से 6 महीने तक कोई नई दिवाला कार्रवाई शुरू नहीं की जाएगी, लेकिन 25 मार्च से पहले कर्ज भुगतान में चूक करने वाली कंपनियों के खिलाफ दिवाला प्रक्रिया के तहत कार्रवाई जारी रहेगी।
मौजूदा समय में कोरोना के कारण कंपनियों को गंभीर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है। इसलिए उन्हें राहत देने के लिए आईबीसी की धारा 7, 9, 10 को स्थगित करने का फैसला किया गया है, ताकि दिवाला होने वाली कंपनियों को बचाया जा सके। प्रस्तावित संशोधनों में कॉर्पोरेट ऋणशोधन क्षअमता के लिए सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) के लिए विशेष तंत्र और मामलों को स्वीकार करने और निपटाने में होने वाली देरी को कम करने वाले उपाय शामिल हैं।
गठित समितियां उद्योग संघों और भारतीय दिवाला एवं शोधन अक्षमता बोर्ड (आईबीबीआई) से आने वाले सुझावों का भी विश्लेषण कर रही हैं, ताकि जरूरी और उपयोगी सुझावों को संशोधनों में शामिल किया जा सके। समितियों का काम एमएसएमई के लिए ऋणशोधन अक्षमता की प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए कानून बनाने में सहयोग करना और पूर्व-नियोजित योजनाओं की खूबियों को कारगर बनाना है। पूर्व-नियोजित योजनाएं अमेरिका और ब्रिटेन में प्रचलित हैं।

प्रस्तावित संशोधनों में एमएसएमई के लिए विशेष ऋणशोधन अक्षमता ढांचे में दिवालिया कर्जदार को समाधान हो जाने तक कंपनी का स्वामित्व अपने हाथ में रखने की अनुमति दी जा सकती है। हालांकि, सभी महत्त्वपूर्ण निर्णयों पर अंतिम फैसला लेनदारों की समिति लेगी। हालांकि कुछ मुद्दों का समाधान प्रशासनिक कदम उठाकर भी किए जा सकते हैं।
उदाहरण के लिए राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) के पीठों की संख्या बढ़ाना या फिर गंभीरता से विचार न करने योग्य वादों में असंतुष्ट प्रमोटरों या परिचालक लेनदारों की ओर से दायर होने वाले मुकदमों से बचने के लिए एनसीएलटी में आवेदन दाखिल करने के शुल्क को बढ़ाना। गठित समितियां कॉर्पोरेट ऋणशोधन अक्षमता को शुरू करने से संबंधित प्रावधानों का निलंबन समाप्त होने के बाद आने वाली संभावित परिस्थितियों पर भी विमर्श कर रही है। फिलहाल, निलंबन दिसम्बर में समाप्त होने के बाद आईबीसी कानून को तुरत-फुरत लागू नहीं किया जा सकता है। वैसे, इसे मार्च तक बढ़ाया जा सकता है। समिति को जो सुझाव मिल रहे हैं, उसमें दबावग्रस्त कंपनी को उन हिस्सों का समाधान करने की अनुमति देना है, जो ऐसे हिस्सों का परिचालन जारी रख सकते हैं और उसे तरलता मुहैया करा सकते हैं, जहां से कोई मूल्य हासिल होने की उम्मीद नहीं है। आईबीसी ‘प्रेसीडेंसी टाउन इन्सॉल्वेन्सी एक्ट’ और ‘प्रोवेंशियल इन्सॉल्वेन्सी एक्ट 1920’ को शिथिल करती है और कंपनी एक्ट, लिमिटेड लाइबिलिटी पार्टनरशिप एक्ट और सेक्यूटाईज़ेशन एक्टसमेत कई अन्य कानूनों में संशोधन करती है। सामान्यत: पूर्व के कानूनों में स्पष्टता नहीं होने की वजह से कर्जदाताओं को नुकसान हो रहा था और कंपनियों को भी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था।
आईबीसी के अस्तित्व में आने से पहले दिवालियापन से संबंधित 12 से भी ज्यादा कानून थे, जिनमें से कुछ तो 100 साल से भी ज्यादा पुराने थे। इसी क्रम में विवादों के तेज निपटारे के लिए 1 जून 2016 को सरकार ने एनसीएलटी और राष्ट्रीय कंपनी विधि अपील प्राधिकरण (एनसीएलएटी) का गठन किया। आमतौर पर यदि कोई कंपनी कर्ज को नहीं चुकाती है तो आईबीसी के तहत कर्ज वसूलने के लिए उस कंपनी को दिवालिया घोषित कर दियाजाता है। कहा जा सकता है कि किसी भी कानून को प्रभावी बनाए रखने के लिए उसमें समय-समय पर बदली परिस्थितियों के अनुसार बदलाव करना जरूरी होता है। ऐसा करने से ही संबंधित कानून की प्रसंगकिता बनी रह सकती है। इस दृष्टिकोण से आईबीसी में प्रस्तावित संशोधन समीचीन प्रतीत हो रहा है।

सतीश सिंह


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