सब्जी उत्पादक : केरल सरकार ने जगाई उम्मीदें

Last Updated 11 Nov 2020 04:20:44 AM IST

हाल ही में केरल ने सब्जियों के लिए एमएसपी मूल्य तय कर देश के अन्य राज्यों के लिए नजीर पेश की है।


सब्जी उत्पादक : केरल सरकार ने जगाई उम्मीदें

न्यूनतम समर्थन मूल्य जो अब तक केवल फसल के लिए ही मान्य था; उसे सब्जियों के लिए स्थापित किया जाना किसान कल्याण की दिशा में एक सांकेतिक कदम माना जा रहा है। एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य जिसके जरिए किसानों को उनके उत्पादों के लिए सरकार द्वारा तय एक निश्चित खरीद मूल्य दी जाती है। सब्जियों के लिए पहली बार ऐसी पहल कर केरल ने  न केवल सबको चौंकाया है बल्कि वह सब्जियों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है।
सब्जियों का यह न्यूनतम या आधार मूल्य उत्पादन लागत से 20 फीसद अधिक होगा। राज्य में 16 किस्मों की सब्जियों के लिए बेस प्राइस तय किया जा रहा है। राज्य के इस कदम से छोटे और अल्प उत्पादकों को आर्थिक मदद  के साथ-साथ सरकारी संबल भी मिलेगा। आमदनी में  इजाफा होने के आसार तो है ही। निश्चित ही इससे उनके नुकसान की आशंका भी कम होगी। हालांकि इसका एक अहम पक्ष ये भी होगा की इसे लागू करने से पूर्व काफी तैयारी और सब्जियों के रख-रखाव के लिए बड़े पैमाने पर कोल्ड स्टोरेज की जरूरत होगी। विदित हो की देश में सब्जियों की उत्पादकता का राष्ट्रीय औसत 17.3 टन प्रति हेक्टेयर के आस-पास है, जिसके लिए वर्तमान में कोई भी मौजूदा कारगर नीति नहीं है।

ना ही सरकारी अमले की ओर  से कभी इसे प्राथमिकता सूची में रखने का प्रयत्न किया गया। न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा सरकार द्वारा कृषि लागत एवं मूल्य आयोग की संस्तुति पर साल में दो बार रबी और खरीफ की फसल के लिए की जाती है। भारत में सबसे पहले साल 1966-67 में गेहूं के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा की गई थी। तब देश में हरित क्रांति की शुरु आत हुई थी। कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) की सिफारिश पर ही केंद्र सरकार द्वारा फसलों की एमएसपी तय की जाती है। इसके अलावा राज्य सरकारों और संबंधित मंत्रालयों की राय भी मांगी जाती है। कृषि लागत एवं मूल्य आयोग की स्थापना इसी प्रयोजन से साल 1965 में की गई थी, लेकिन सब्जियों के समर्थन मूल्य को लेकर इस आयोग ने भी कभी सुध नहीं ली।
निश्चित ही केरल की इस पहल ने दूसरे राज्यों को भी प्रोत्साहित किया है। झारखंड ने इसे लागू करने की सांकेतिक घोषणा भी कर दी है। इससे किसानों को औने-पौने दामों में अपनी फसल  बेचने पर मजबूर नहीं होना पड़ेगा। झारखंड अग्रणी सब्जी उत्पादक राज्यों में से एक है। यहां से हरी सब्जियां तकरीबन सभी पड़ोसी राज्यों को भेजी जाती है। राज्य में 300000 हेक्टेयर से अधिक भूमि पर सब्जियों की खेती होती है। जाहिर है इससे छोटे और मंझोले सब्जी उत्पादकों को राहत की सांस मिलेगी। शांता कुमार कमिटी की रिपोर्ट के अनुसार देश में 86 फीसद किसान छोटे है। उनकी आमदनी बड़े किसानों की तुलना में नगण्य है। कइयों के पास तो खेती की अपनी जमीन भी नहीं, जिससे उन्हें पट्टे या बंटाईदारी पर खेती करने को विवश होना पड़ता है। चूंकि इन छोटे किसानों के पास पूंजी की भी किल्लत होती है, जिससे मजबूरन उन्हें बड़ी और लाभ वाली खेती से मुंह मोड़ना पड़ता है। नतीजतन फलों और सब्जियों की अल्प निवेश वाली खेती ही उनका अंतिम विकल्प होता है। तमाम जद्दोजहद के बाद भी कई बार उन्हें अपने फलों और उत्पादों की सही कीमत नहीं मिल पाती और कम उत्पादन होने के चलते मंडी तक माल ले जाने का भाड़ा भी ज्यादा चुकाना पड़ता है।
ऐसे में सब्जियों का एमएसपी तय होना इन सीमांत किसानों  के कल्याण की दिशा में बड़ा कदम साबित होगा। इससे न केवल निर्धन किसानों को उनके श्रम का उचित मूल्य मिलेगा बल्कि शोषण के खिलाफ भी किलेबंदी में उन्हें बड़ी सहायता मिलेगी। सरकार हर फसल सीजन से पहले सीएसीपी यानी कमीशन फॉर एग्रीकल्चर कॉस्ट एवं प्राइसेज की सिफारिश पर एमएसपी तय करती है। यदि किसी फसल की बंपर पैदावार हुई है तो उसकी बाजार में कीमतें कम होती है, तब एमएसपी उनके लिए फिक्स एश्योर्ड प्राइस का काम करती है। यह एक तरह से कीमतों के गिरने पर किसानों को बचाने वाली बीमा पॉलिसी की तरह काम करती है। उम्मीद है केरल की यह नायाब पहल दूसरे राज्यों को भी प्रोत्साहित और प्रभावित करेगी। आखिर देश के अन्नदाता और सब्जिदाता दोनों ही कृषि की रीढ़ है। उनके संरक्षण और आर्थिक संवर्धन के बगैर देश को कृषि विकास के पथ पर अग्रसर नहीं किया जा सकता।

डॉ. दर्शनी प्रिय


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