वैश्विकी : बड़ी चुनौतियों के आगे बाइडेन
अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव की तस्वीर अब कुछ साफ हो गई है। कुछ राज्यों में वोटों की गिनती का काम अभी पूरा नहीं हुआ है, लेकिन इस बात की पूरी संभावना है कि डेमोक्रेटिक पार्टी के जो बाइडेन और कमला हैरिस अमेरिकी प्रशासन की कमान संभालेंगे।
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ट्रंप वोटों की गिनती को लेकर राज्यों की अदालतों और संघीय सुप्रीम कोर्ट की शरण ले रहे हैं, लेकिन इस बात की गुंजाइश कम है कि वह जो बाइडन को व्हाइट हाउस पहुंचने से रोक पाएंगे।
डोनाल्ड ट्रंप अपने चार वर्षीय कार्यकाल में अमेरिकी राजनीति और समाज जीवन को प्रभावित करने वाले सत्ता प्रतिष्ठान से जुझते रहे। मुख्यधारा की मीडिया के साथ ही देश के लिबरल बुद्धिजीवी वर्ग, सिविल सोसाइटी, सैन्य-औद्योगिक काम्प्लेक्स और युद्ध के जरिये मुनाफा कमाने वाले तंत्र के विरोध का उन्हें सामना करना पड़ा। अपनी रिपब्लिकन पार्टी की ओर से भी उन्हें आधा-अधूरा ही समर्थन मिल पाया। इसके बावजूद चुनाव में उनका प्रदर्शन आश्चर्यजनक रहा। जनमत सव्रे के अनुमानों को ठुकराते हुए उन्होंने अमेरिकी मतदाताओं की आशा से अधिक समर्थन हासिल किया। पिछले चुनाव की तुलना में उन्हें 3-40 लाख अधिक वोट मिले। डेमोक्रेटिक पार्टी के परंपरागत अेत और लैटिन मतदाताओं के बीच भी उनका समर्थन बढ़ा। ग्रामीण और कस्बाई ेत मतदाताओं और महिलाओं ने उनपर भरोसा जताया। स्पष्ट है कि ट्रंप ने अमेरिका की घरेलू राजनीति पर गहरी छाप छोड़ी है। जो बाइडेन के लिए यह मुश्किल होगा कि वह ट्रंप की राजनीतिक विरासत को पूरी तरह नकार सकें।
अमेरिकी चुनाव को लेकर भारत सहित पूरी दुनिया के देशों में इस बात का लेखा-जोखा लिया जा रहा है कि जो बाइडेन के अगले चार वर्ष के कार्यकाल में अमेरिकी राजनीति क्या दिशा लेगी? इस पर सबकी नजर होगी कि बाइडेन अपना ध्यान बुरी तरह विभाजित अमेरिकी समाज को एकजुट रखने, कोरोना महामारी के बाद अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने को प्राथमिकता देंगे या विश्व राजनीति में अमेरिका को सर्वप्रमुख देश बनाए रखने की नीति को प्राथमिकता देंगे। ट्रंप ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति में ‘एकला चलो’ की रणनीति अपनाई थी। इस नीति से यूरोप और एशिया में अमेरिका के नेतृत्व वाले गठबंधन कमजोर हुए थे। बाइडेन इन गठबंधनों को दोबारा सक्रिय कर सकते हैं। ट्रंप को इस बात का श्रेय जाता है कि अपने 4 वर्ष के कार्यकाल में उन्होंने कोई नया युद्ध नहीं छेड़ा। ईरान के विरुद्ध भी उनका सैन्य जवाब सीमित रहा। यहां तक कि उत्तर कोरिया के तानाशाह के साथ भी उन्होंने मेल-मिलाप की कोशिश की। अमेरिकी प्रशासन का पुराना इतिहास बताता है कि डेमोक्रेटिक पार्टी दुनिया में सैन्य हस्तक्षेप की नीति अपनाती है। उदारवादी माने जाने वाले बराक ओबामा ने अपने कार्यकाल में पश्चिम एशिया के अनके देशों में सैन्य हस्तक्षेप किया, जिसकी तबाही से ये देश आजतक जूझ रहे हैं। बाइडेन की संगत सैन्य हस्तक्षेप का समर्थन करने वाले जमावड़े के साथ है। आमतौर पर यह हस्तक्षेप मानवाधिकारों के नाम पर किया जाता है।
जो बाइडेन और कमला हैरिस का प्रशासन भारत के बारे में क्या नीति अपनाएगा इसे लेकर नई दिल्ली में लेखा-जोखा लिया जा रहा है। आमतौर पर यह धारणा थी कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अबकी बार ट्रंप सरकार के पक्ष में थे, लेकिन मोदी का यह कथन एक सार्वजनिक समारोह में व्यक्त की गई तात्कालिक प्रतिक्रिया थी। यह अमेरिकी चुनाव के बारे में भारत की पसंद या नापसंद को उजागर नहीं करती।
अमेरिका और भारत में एक वर्ग है जो आस लगाए बैठा है कि नया प्रशासन जम्मू-कश्मीर और भारत में मानवाधिकारों की स्थिति पर अधिक सक्रिय भूमिका निभाएगा। पाकिस्तान और अमेरिका में सक्रिय मुस्लिम संगठन चाहते हैं कि नया प्रशासन मोदी सरकार की नकेल कसे, लेकिन इस बात की संभावना कम है कि बाइडेन मोदी सरकार को नाखुश करने का कोई जोखिम उठाएंगे। यह जरूर है कि गाहे-बगाहे अमेरिकी प्रशासन की ओर से मानवाधिकारों के संरक्षण की नसीहत दी जाएगी। चीन को लेकर अमेरिका में मतैक्य है। एशिया और विश्व राजनीति में चीन को नंबर एक देश बनने से रोकने के लिए बाइडेन इंडो-पैसिफिक की नीति को जारी रखेंगे। बाइडेन एशिया में जापान, द. कोरिया और ऑस्र्टलिया के साथ अमेरिका के पुराने गठबंधन को मजबूत करेंगे।
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