गुटखा बिक्री : आखिर पस्त क्यों है सरकार?

Last Updated 02 Nov 2020 03:28:05 AM IST

झारखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने हाल ही में झारखंड सरकार के गुटखा बिक्री पर पूरी तरह प्रतिबंध के दावे की पोल खोल कर रख दी।


गुटखा बिक्री : आखिर पस्त क्यों है सरकार?

न्यायाधीश ने मामले की सुनवाई के दौरान ही बाजार से कुछ ही मिनट के भीतर कई ब्रांड के गुटखे मंगवाकर राज्य सरकार के शपथ पत्र पर नाराजगी जताई। इस घटना से राज्य सरकार हलकान है।
झारखंड उच्च न्यायालय की इस कार्रवाई से साबित हो गया कि राज्य में 2018 से लागू गुटखा प्रतिबंध जैसी कोई चीज नहीं है और प्रदेश में खुलेआम इसकी बिक्री हो रही है और धड़ल्ले से लोग इसे खरीद रहे हैं और खा रहे हैं। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि जब सरकार ने राज्य में गुटखे की बिक्री पर प्रतिबंध लगा रखा है तो फिर बाजार में यह खुलेआम क्यों मिल रहा है? ऐसा नहीं है ऐसा केवल झारखंड में हो रहा है, बल्कि देश के कई ऐसे राज्य हैं, जहां की सरकारों ने अपने यहां गुटखा पर प्रतिबंध लगा रखा है, बावजूद इसके वहां भी धड़ल्ले से इसकी बिक्री हो रही है। हमें समझना होगा कि गुटखा एक हानिकारक पदार्थ है जो स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता है और इसके सेवन से लोग गंभीर बीमारियों से ग्रसित हो जाते हैं। साथ ही इससे कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी तक हो जाती हैं।
इन्हीं चिंताओं को ध्यान में रखते हुए समय-समय पर कई राज्य की सरकारों ने अपने यहां गुटखा पर प्रतिबंध लगाया है। बावजूद इसके प्रतिबंध वाले सभी राज्यों में आसानी से या चोरी-छिपे यह सामग्री लोगों को मिल ही जाती है। ऐसे में गुटखा पर लगाया जाने वाला प्रतिबंध बेमानी सा लगता है। साथ ही यह सवाल भी उठता है कि प्रतिबंध वाले राज्य के बाजारों में गुटखा कहां से पहुंच रहे हैं? क्या सरकारें सिर्फ  कागज पर ही काम कर रही है?

क्या सरकार जमीनी हकीकत नहीं जानती है या सरकार सब कुछ जानते हुए भी जानबूझ कर आंखें बंद किए हुए है? दिखावे के लिए लगाया जाने वाला प्रतिबंध अगर नहीं लगाया जाए तो बेहतर होगा। ऐसा करके सरकार आम लोगों के जीवन के साथ खिलवाड़ करती है। अगर सही मायने में गुटखा पर प्रतिबंध लगा दिया जाए और यह लोगों को आसानी से नहीं मिले तो संभव है कि बहुत सारी समस्याओं का अपने आप ही समाधान हो जाएगा। कई बीमारियां समाप्त हो जाएंगी और बीमारों की संख्या कम होगी। गुटखा पर प्रतिबंध लगाने के लिए सरकारों ने अक्सर कई कदम उठाए हैं। कई राज्यों में अब यह दो अलग-अलग पैकेटों में मिलता है। एक में सुपारी और एक में पत्ती। सरकार का आकलन था कि इससे गुटखा खाने वाले लोगों की संख्या कम होगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। गुटखा के पैकेटों पर इससे होने वाली बीमारियों के बारे में भी जानकारी दी जाती है और बताया जाता है कि यह कितना खतरनाक हो सकता है। इन तमाम सरकारी प्रयासों के बावजूद बाजार में धड़ल्ले से इसकी बिक्री होती है और लोग इसका सेवन करते हैं। अगर प्रशासन सख्ती करती है तो गुटखा अधिक दाम में मिलने लगता है, लेकिन इसकी बिक्री बंद नहीं होती है। ऐसे में सरकार को चाहिए कि वह गुटखा के उत्पादन पर भी प्रतिबंध लगाने के लिए कार्रवाई करे। ऐसा नहीं है कि गुटखा की बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध संभव नहीं है। अगर सही मायने में गुटखा उत्पादन पर प्रतिबंध लगाने के लिए कार्रवाई की जाएगी तो काफी हद तक गुटखा समस्या का अपने आप ही समाधान हो जाएगा।
ऐसे में लगता है कि सही मायने में प्रशासन इस प्रतिबंध को लागू करने के लिए गंभीर नहीं है। अगर ऐसा होता हो प्रशासन प्रतिबंध को लागू कराने के लिए नजीर पेश करने वाली सख्त कार्रवाई करती। इससे गुटखे का उत्पादन करने और बिक्री करने वाले के मन में खौफ पैदा होता और वे किसी भी कीमत पर कानून हाथ में नहीं  लेते। देश के नागरिकों के लिए गुटखा किसी धीमा जहर से कम नहीं है। अपने नागरिकों को इस जहर से बचाने के लिए सरकारों को प्रयास करने ही होंगे। सख्ती करनी हो तो सख्ती भी करें और साथ में जागरूकता का प्रसार भी करें। ऐसे में अपने लोगों की खातिर सरकार को नागरिक समाज, प्रशासन के साथ मिल कर व्यापक पैमाने पर जनता के बीच जाना होगा। इसके अलावा, सरकारों को सिर्फ  कागज पर नहीं बल्कि सख्त कार्रवाई के जरिए स्थिति सुधारने का प्रयास करना चाहिए। इससे गुटखे की बिक्री पर पूर्णत: प्रतिबंध संभव हो सकेगा।

चन्दन कु. चौधरी


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment