वैश्विकी : लोकतंत्र और इस्लाम की टकराहट

Last Updated 01 Nov 2020 05:58:21 AM IST

फ्रांस में पिछले दिनों मजहबी कट्टरपंथ के आधार पर हुई आतंकी वारदात में पेरिस ही नहीं बल्कि दुनिया के अनेक देशों में धार्मिक विभाजन की चुनौती पेश कर दी है।


वैश्विकी : लोकतंत्र और इस्लाम की टकराहट

भारत भी इससे अछूता नहीं है। इस्लामी आतंकवादी संगठनों, इस्लामी स्टेट, अल कायदा और बोको हरम की आतंकवादी वारदात में जान-माल की कहीं अधिक क्षति होती रही है, लेकिन पेरिस और नीस शहरों में सर कलम करने की नृशंस घटनाओं ने मजहबी जुनून के आधार पर होने वाली वारदात की नई चुनौती पेश की है। कई मायनों में इक्का-दुक्का धर्माध शख्स द्वारा अंजाम दी गई ये वारदात किसी बड़े आतंकी हमले से भी अधिक भयावह है। संगठित आतंकवाद का मुकाबला तो राज्य की संगठित शक्ति के आधार पर किया जा सकता है, लेकिन विचार के स्तर पर धर्माधता के शिकार व्यक्ति को रोकना सुरक्षा एजेंसियों के लिए बड़ी चुनौती है। फ्रांस आज जिस खतरे का मुकाबला कर रहा है, उसका सामना यूरोप सहित पश्चिमी देशों को देर-सबेर करना होगा। मानवीयता पर आधारित यूरोपीय संघ की आव्रजन नीति पर भी नये सिरे से गौर करना होगा।

फ्रांस के राष्ट्रपति इमेनअल मैक्रों ने आतंकी हमलों के बाद बयान दिया कि विश्व इस्लाम संकट के दौर से गुजर रहा है। दूसरे शब्दों में उनका कहना था कि ‘राजनीतिक इस्लाम’ फ्रांस ही नहीं दुनिया के लिए संकट बन रहा है। उनका आशय यह है कि ‘राजनीतिक इस्लाम’ के भीतर से कट् टरपंथियों और इस्लामिक आतंकवादियों को कोई चुनौती नहीं दी गई है। जब भी फ्रांस जैसी कोई घटना होती है तो दुनिया का राजनीतिक इस्लाम उसकी सफाई पेश करने लगता है और इसके लिए उन्हीं लोगों को जिम्मेदार ठहराने लगता है जिनके विरुद्ध हिंसा की गई है। फ्रांस इसका ताजा उदाहरण है। दुनिया के मुस्लिम क्षेत्रों से फ्रांस की तो निंदा की गई, लेकिन उन आतंकियों की निंदा नहीं की गई जिसकी वजह से फ्रांसीसी राष्ट्रपति मैक्रों को इस्लाम को लेकर यह बयान देना पड़ा। मैक्रों ने मुस्लिम संस्थाओं और जेहादी मानसिकता वाले धार्मिक नेताओं के विरुद्ध सख्त कदम उठाने की घोषणा की है। एक ऐसे समय जब पूरी दुनिया को मैक्रों के साथ एकजुटता प्रदर्शित करनी चाहिए थी, उस समय तुर्की, पाकिस्तान, ईरान और पश्चिमी एशिया के मुस्लिम देशों ने मैक्रों की तीखी आलोचना की। तुर्की के राष्ट्रपति आदरेगन ने तो कूटनीतिक मर्यादा को ताक पर रखते हुए मैक्रों को विक्षिप्त बता दिया। सबसे चौंकाने वाला बयान मलयेशिया के पूर्व प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद की ओर से आया। दुनिया के वरिष्ठतम नेता 95 वर्षीय महातिर ने प्रकारांतर से सिर कलम किए जाने की घटना को जायज ठहराते हुए लाखों फ्रांसीसी लोगों के मारे जाने की बात कह दी। सोशल मीडिया पर उन्होंने लिखा कि अतीत में फ्रांस ने लाखों लोगों को मौत के घाट उतारा था। अब फ्रांस के लोगों के साथ भी ऐसा हो सकता है। बाद में महातिर की ओर से सफाई आई की उनके कथन को संदर्भ से अलग करके उद्धृत किया था। कुछ भी हो इस्लामी जगत के नेता इस्लाम और उसके पैगम्बर के विरुद्ध कोई भी अपमानजनक टिप्पणी बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं है।
फ्रांस के नेता इस्लाम के फ्रांसीसीकरण की बात कर रहे हैं। फ्रांसीसी इस्लाम में इस्लाम की मूल शिक्षाओं और पश्चिमी लोकतांत्रिक उदारवादी देशों के मूल्यों के बीच उचित तालमेल बिठाने की बात कही जा रही है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि इस्लाम के बारे में भारत में भी ऐसा ही नजरिया पाया जाता है। विगत दशकों में इस्लाम के भारतीयकरण का विचार रखा गया था। राजनीतिक कारणों से भारतीय इस्लाम एक निश्चित आकार नहीं ले पाया। दुर्भाग्य से मुस्लिम समुदाय के एक तबका मजहबी कट्टरता की ओर झुकने लगा। हाल के वर्षो में अनेक अवसरों पर इसका इजहार हुआ है। फ्रांस की घटना को लेकर भी भारत में इसी तरह की प्रतिक्रिया देखने को मिली है।
दुनिया के लोकतांत्रिक उदारवादी देश इस्लामी कट्टरता का मुकाबला करने के लिए चीन के अमानवीय नीति का अनुसरण नहीं कर सकते। इस्लामी कट्टरता का मुकाबला करने के लिए कौन सी वैकल्पिक नीति अपनाई जाए, फ्रांस ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया इसकी तलाश में है और इस मामले में फ्रांस इस समय अग्रिम मोच्रे पर है। फ्रांस का इस्लाम संबंधी प्रयोग सफल होता है या असफल, इससे पूरी दुनिया की लोकतांत्रिक व्यवस्था और इस्लाम का रिश्ता तय होगा।

डॉ. दिलीप चौबे


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