सरोकार : भारत से सीख सकते हैं पोलैंड और दूसरे देश
पोलैंड में गर्भपात पर प्रतिबंध के बाद हजारों लोग सड़कों पर उतर गए हैं। कोरोना की महामारी के बावजूद इस फैसले का विरोध हो रहा है।
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वहां संवैधानिक अदालत ने फैसला सुनाया है कि असामान्य भ्रूण होने पर गर्भपात नहीं कराया जा सकता। वहां 1993 में गर्भपात कानून लागू किया गया था। इसमें तीन आधार पर गर्भपात की इजाजत थी। एक, असामान्य भ्रूण होने; दूसरा जिंदगी या स्वास्थ्य को खतरा होने; तथा तीसरा, बलात्कार के कारण गर्भावस्था होने पर। संवैधानिक कोर्ट ने असामान्य भ्रूण वाले आधार को खत्म कर दिया है।
पोलैंड में गर्भपात से जुड़ी सच्चाइयां काफी स्याह हैं।
गर्भपात के जिस आधार को खत्म करने की बात कोर्ट ने कही है, उस आधार पर वहां सबसे अधिक गर्भपात कराए जाते हैं। 2017 में पोलैंड सरकार की रिपोर्ट में कहा गया था कि उस साल 1057 गर्भपात किए गए जिनमें से 1035 का कारण भ्रूण का असामान्य होना था। 1994 में जीवन या सेहत को खतरा होने के कारण 88.1 फीसद गर्भपात कराए जाते थे, लेकिन 2017 में इस दर में जबरदस्त गिरावट हुई। यह 2.1 फीसद रह गई। बलात्कार के कारण गर्भपात कराने के मामले वहां न के बराबर हैं।
यूं पोलैंड में गर्भपात एक लंबी प्रक्रिया है। तमाम प्रशासनिक अवरोधों के कारण इसकी मंजूरी के लिए महीनों लगते हैं। वकीलों तक की मदद लेनी पड़ जाती है। इसलिए कई महिलाएं विदेशों में जाकर गर्भपात कराती हैं। विदेश का खर्चा नहीं उठा पाने वाली गर्भपात के लिए दवाइयों का सहारा लेती हैं। कई चोरी छिपे गैर-कानूनी तरीके से गर्भपात कराती हैं। वैसे तकनीकी रूप से यह गैरकानूनी भी नहीं होता क्योंकि पोलैंड का कानून गर्भपात कराने को अपराध नहीं मानता, लेकिन डॉक्टरों, पति या पार्टनर, दोस्त, माता-पिता के लिए यह अपराध है जो किसी महिला को गर्भपात कराने में मदद करते हैं। अगर वे किसी महिला की विदेश जाकर गर्भपात कराने में मदद करते हैं तो यह भी पोलैंड में अपराध ही है।
2015 में पीईडब्ल्यू रिसर्च सेंटर की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि दुनिया के ज्यादातर देश किसी महिला की जिंदगी को बचाने के लिए गर्भपात की अनुमति देते हैं। ब्राजील में अनुमति तभी दी जाती है, जब महिला के साथ बलात्कार हुआ हो, या गर्भावस्था से उसकी जान को खतरा हो। इसके लिए अदालत से मंजूरी लेनी पड़ती है।
चिली में तो गर्भपात अपराध है। आयरलैंड में बिना किसी कारण गर्भपात कराने पर महिला को उम्रकैद तक हो सकती है। सऊदी अरब और इंडोनेशिया में गर्भपात के लिए पति की अनुमति जरूरी है। इधर, भारत में गर्भपात कानून को और लचीला बनाया जा रहा है। मार्च में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हषर्वर्धन ने लोक सभा में गर्भ का चिकित्सकीय समापन संशोधन विधेयक पेश किया था। इसमें कहा गया है कि पंजीकृत मेडिकल प्रैक्टीशनर की राय से 20 हफ्ते के भीतर गर्भावस्था को समाप्त किया जा सकता है।
पहले यह अवधि 12 हफ्ते थी। दो पंजीकृत मेडिकल प्रैक्टीशनर्स की सलाह से 20 से 24 हफ्ते के बीच भी गर्भपात कराया जा सकता है। वैसे गर्भपात या यूं कहें, प्रजनन अधिकार महिलाओं के अपने हक हैं। हमारा सर्वोच्च न्यायालय तक 2017 में कह चुका है कि बच्चा पैदा करना, या गर्भपात कराना, महिलाओं की मर्जी की बात है। मानसिक रूप से बीमार महिला को भी अधिकार है कि अपना गर्भपात करा सके। न तो पति की सहमति की जरूरत है, और न ही परिवार वालों की। क्या बाकी के देश भी इस बात को समझेंगे।
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