कोरोना के बाद अर्थव्यवस्था : अभी बहुत काम बाकी है
कारों शेयर बाजार के आंकड़ों को देखें तो लगता है कि जैसे अर्थव्यवस्था एकदम सामान्य गति से चल रही है।
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पर डूबते छोटे कारोबारों की दशा-दिशा देखें, तो लगता है कि अभी अर्थव्यवस्था को सुधारने की दिशा में बहुत काम बाकी है। बैंड बाजे वाले, छोटे टूर ऑपरेटर इन जैसे धंधे ठप ही नहीं हुए हैं, डूब गए हैं। खराब खबरें इस कदर सामान्य हो गई हैं कि अब कोई सकारात्मक खबर या सकारात्मक आंकड़ा आने के बाद भी उसे दो बार चेक करने की जरूरत होती है कि क्या यह सच है। पर यह सच है कि भारतीय अर्थव्यवस्था से जुड़े हाल में जो आंकड़े आए हैं, वो एकदम यही संकेत दे रहे हैं कि कोरोना ने जिस अर्थव्यवस्था को चोट देकर बेहोश किया था, वह अर्थव्यवस्था अब होश में आती दिख रही है हाल के आंकड़ों के आशय समझ कर यही साफ होता है। हालांकि आंकड़े एक तरफ सकारात्मकता की बात रेखांकित करते हैं पर यह बात भी इनसे साफ होती है कि अभी भी अर्थव्यवस्था की चुनौतियां कम नहीं हुई हैं। लगातार नीतिगत प्रयास आवश्यक होंगे।
सबसे महत्त्वपूर्ण आकड़ा, जो अर्थव्यवस्था की बेहोशी टूटने को रेखांकित करता है, है जीएसटी संग्रह माल एवं सेवा कर संग्रह का आंकड़ा। सितम्बर, 2020 में 95,480 करोड़ रु पये का संग्रह माल एवं सेवा कर की मद में हुआ। सितम्बर, 2019 में यानी पिछले साल कोरोना मुक्त वक्त में भी जितना माल एवं सेवा कर संग्रह हुआ था, उसके मुकाबले सितम्बर, 2020 का संग्रह 4 फीसदी ज्यादा है और अगस्त, 2020 के मुकाबले तो 9 फीसदी ज्यादा है। माल एवं सेवाकर का संग्रह दो बातें रेखांकित करता है कि माल एवं सेवाओं के बिकने की रफ्तार कोरोना पूर्व की स्थितियों के आसपास पहुंच रही है; और दूसरी बात यह है कि अर्थव्यवस्था में अब एक हद तक कोरोना का खौफ कम हुआ है और लोग उपभोग कर रहे हैं, उपभोग के आइटमों पर खर्च कर रहे हैं।
कर के आंकड़े ठोस होते हैं, ये अनुमान नहीं होते कि अर्थव्यवस्था का विकास पांच प्रतिशत की दर से होगा या दस प्रतिशत की दर से होगा, यह तो अनुमान है। पर कर संग्रह के आंकड़े तो उस रकम के आंकड़े हैं, जो संग्रहित की जा चुकी है यानी मोटे तौर पर माल एवं सेवा कर के आंकड़े बता रहे हैं कि अर्थव्यवस्था में खरीदी का स्तर धीमे-धीमे पुराने स्तर पर लौट रहा है। यह अपने आप में बहुत सकारात्मक संकेत है। माल एवं सेवा कर का संग्रह लगातार बढ़ेगा, तो केंद्र सरकार के पास ज्यादा राजस्व होगा तमाम मदों पर खर्च करने के लिए। केंद्र और राज्य सरकारों के विवाद कम होंगे। हाल में केंद्र सरकार और तमाम राज्य सरकारों के बीच माल एवं सेवा कर से जुड़े मुआवजे को लेकर लगातार विवाद खड़े हुए हैं। राजस्व अगर बढ़े, तो केंद्र सरकार के पास देने के लिए संसाधन होंगे।
एक आंकड़ा होता है पीएमआई-इसे खरीद प्रबंधक सूचकांक कहा जा सकता है। यह सूचकांक बताता है कि तमाम कंपनियों के प्रबंधक पहले के मुकाबले कच्चा माल आदि ज्यादा खरीद रहे हैं, या कम खरीद रहे हैं। अगर कच्चा माल ज्यादा खरीदा जा रहा है खरीद प्रबंधकों द्वारा, तो यह साफ है कि उन्हें तमाम आइटमों की मांग में तेजी दिखाई दे रही है। सितम्बर महीने का पीएमआई सूचकांक 56.8 प्रतिशत पर रहा। पिछले आठ सालों में इसमें सबसे ज्यादा तेजी देखी गई यानी खरीद प्रबंधकों के आकलन के मुताबिक आने वाले वक्त में तमाम आइटमों की खरीद में तेजी आने वाली है।
कार बाजार की सबसे बड़ी कंपनी मारु ति सुजुकी के आंकड़े बताते हैं कि सितम्बर, 2019 के मुकाबले सितम्बर, 2020 में इसकी बिक्री में 31 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई यानी इसने 31 प्रतिशत कारें ज्यादा बेचीं। कारों का ज्यादा बिकना यह साबित करता है कि लोगों के पास क्रय क्षमता है और उन्हें यह भी यकीन है कि वे कार चलाने का खर्च वहन कर सकते हैं। मंदी के दौर में कारों की बिक्री बढ़ती नहीं है। इकतीस प्रतिशत की बढ़ोतरी तो आम तौर पर तेजी के दौर में भी असामान्य ही मानी जाती है। एक तरह से कोरोना ऑटोमोबाइल उद्योग के लिए तो वरदान ही साबित हुआ है। संक्रमण से बचने के लिए कई लोग सार्वजनिक परिवहन व्यवस्थाओं को इस्तेमाल करने के बजाय अपने ही वाहन में चलना सुरक्षित समझ रहे हैं और इसलिए अपनी कार या अपने ही दुपहिया वाहन को ओर उन्मुख हो रहे हैं। ऑटोमोबाइल उद्योग लंबे समय से मांग में सुस्ती का सामना कर रहा था। अब वह सुस्ती दूर होती दिखती है। दुपहिया उद्योग की बहुत ही महत्त्वपूर्ण कंपनी बजाज ऑटो के आंकड़े भी कुछ ऐसी ही तस्वीर दिखा रहे हैं। सितम्बर, 2019 के मुकाबले सितम्बर, 2020 में बजाज ऑटो की बिक्री में 10 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है यानी दुपहिया और चौपहिया वाहनों के दिन बेहतर हो रहे हैं। इससे इन उद्योगों में रोजगार आदि की हालत भी बेहतर होगी और जाहिर है कि कर संग्रह पर भी इसका असर पड़ेगा। जीएसटी संग्रह के आंकड़े बता ही रहे हैं कि स्थितियां पहले के मुकाबले बेहतर हो रही हैं।
एक बात तो हाट बाजारों में जाकर महसूस की जा सकती है कि कोरोना का वह खौफ तो नहीं रहा है, जो मई-जून में हुआ करता था। इसका मतलब यह नहीं है कि कोरोना को लेकर असावधानियां बरती जाएं पर इसका मतलब यह है कि देश की जनता धीमे-धीमे कोरोना के साथ रहना-जीना सीख रही है। और कोरोना एक तरह से अब लोगों के जीवन में शामिल हो रहा है, लोग इसकी तैयारी कर रहे हैं पर कोरोना के भय से अपना जीवन स्थगित नहीं कर रहे हैं। मुंबई शेयर बाजार का संवेदी सूचकांक छह महीने पहले के मुकाबले करीब 29 प्रतिशत बढ़ा हुआ दिख रहा है यानी छह महीने पर जो खौफ का माहौल था, उसमें शेयर बाजार में हर कोई शेयर बेचकर निकलना चाह रहा था, अब स्थिति वैसी नहीं है।
लोगों को जीवन पर, अर्थव्यवस्था पर लगातार भरोसा हो रहा है। सुखद बात यह है कि भारत में कृषि की स्थिति लगातार मजबूत बनी हुई है। कोरोना कृषि का कुछ ना बिगाड़ पाया है और इस कारण से ग्रामीण अर्थव्यवस्था में मजबूती बनी हुई है। सकारात्मक संकेतों का मतलब यह नहीं है कि स्थितियां सामान्य हो गई हैं। नहीं, ऐसा नहीं है। 2020-21 में आर्थिक विकास की दर नकारात्मक ही रहने की आशंका है पर हालात कुछ यूं माने जा सकते हैं कि अर्थव्यवस्था की बेहोशी टूटी है, अब अर्थव्यवस्था चलने भी लगेगी। अर्थव्यवस्था के जो हिस्से बिल्कुल सुप्तप्राय हो गए थे, उनकी तंद्रा भी भंग होगी। कोरोना से पूरा ऊबरने में भले ही वक्त लगे, पर उबरने की प्रक्रिया शुरू हो गई है, यह बात तो हाल के आंकड़े साफ करते हैं पर सरकार को मनरेगा समेत ऐसे तमाम कार्यक्रमों के बजट की चिंता लगातार करनी चाहिए जिनसे अर्थव्यवस्था के विपन्न तबकों में क्रय शक्ति की आपूर्ति होती हो। यह क्रय शक्ति आखिर में तमाम उद्योगों और सेवाओं की मांग बढ़ाने का काम करती है, जिससे अर्थव्यवस्था मजबूत होती है।
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