मानसिक स्वास्थ्य : कोरोना काल में देश का स्वास्थ्य

Last Updated 16 Oct 2020 12:13:23 AM IST

कोरोना संकट ने भारत ही नहीं दुनिया के देशों को भी लॉकडाउन में धकेला। इस विपत्ति की घड़ी में जिन युवाओं की नौकरी छूटी, उन्हें बड़ा झटका लगा।


मानसिक स्वास्थ्य : कोरोना काल में देश का स्वास्थ्य

अवसाद ने अधिकांश लोगों को घेर रखा है। बीमारी की दवा उपलब्ध न होने से डिप्रेशन बढ़ रहा है। लॉकडाउन समाप्त होने के बावजूद लोग मानसिक तनाव से गुजर रहे हैं। दवा का न मिल पाना यानी इलाज की सुविधा न मिल पाना दुनियाभर में चिंता का विषय है। हर देश में लोग भयभीत हैं।
अध्ययनों से पता चला है कि बच्चों और बूढ़ों को इस बीमारी ने ज्यादा ग्रसित किया है। संक्रमित होने का लगभग एक करोड़ का आंकड़ा देश में दिख रहा है। लाख से ज्यादा मौतें भी हुई हैं। हालांकि स्वस्थ होने के आंकड़े भी उत्साहजनक हैं, लेकिन दवा का पता न चल पाना चिंताजनक है। सरकार की ओर से लॉकडाउन का पालन करने का सख्त निर्देश था। लॉकडाउन खुलने के बाद तो महामारी ने अपने पांव तेजी से पसारने शुरू कर दिए। इससे मासूम बच्चों से लेकर वृद्ध तक भयभीत थे क्योंकि उन पर असर ज्यादा हो रहा था। इंडियन सायकाइट्री सोसाइटी (आईपीएस) के सव्रेक्षण में पता चला है कि लॉकडाउन लागू होने के बाद से मानसिक बीमारियों के मामले 20 फीसदी बढ़े हैं और पांच में से एक भारतीय इससे प्रभावित है। आईपीएस का कहना है कि भारत में हाल के दिनों में कई कारणों से मानसिक संकट का खतरा पैदा हो रहा है-इनमें रोजी-रोटी छिनना, आर्थिक तंगी बढ़ना, अलग-थलग होना और घरेलू हिंसा बढ़ना शामिल हैं। विभिन्न प्रकार कारण किसी को भी आत्महत्या के लिए उकसा सकते हैं।

सेंटर फोर मेंटल हेल्थ, लॉ एंड पॉलिसी के निदेशक सौमित्र पठारे कहते हैं, मुझे संदेह है कि हमें मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर अब दिखने लगेंगे। यह संकट अब लोगों को प्रभावित कर रहा है। उन्होंने एक  बातचीत में कहा है कि हालात से सामना करने की हमारी सबकी एक सीमा है और ज्यादा समय तक बहुत तनाव रहा तो उससे निपटने की क्षमता व्यक्ति खो देता है। इस तरह मनोवैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि महामारी के इस दौर में बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए खास तौर से काफी दिक्कतें आ सकती हैं क्योंकि उन्हें दोस्तों से अलग-थलग अपने घरों में रहना पड़ रहा है। वे घर में तनाव और कहीं-कहीं हिंसा के गवाह भी बने हैं। इसलिए उनके मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है। पठारे कहते हैं कि जब बच्चे ऐसे माहौल में बड़े होते हैं, तब उनके मानसिक स्वास्थ्य के लिए तमाम जोखिम पैदा होते हैं। मौजूदा परिस्थितियां उनमें जोखिम बढ़ाएंगी। वे मानते हैं कि बच्चों के शोषण के मामले बढ़ सकते हैं; अगर बड़ों में तनाव और गुस्सा हो तो वह बच्चों पर भी हिंसा के रूप में निकल सकता है। स्वतंत्र अनुसंधानकर्ताओं का मानना है कि भारत में लॉकडाउन के कारण कोरोना वायरस से इतर होने वाली मौतों में ‘आत्महत्या’ बड़ा कारण है। सव्रेक्षण के अनुसार इस साल मार्च में 125 लोगों की मौत संक्रमण के डर, अकेलेपन, बाहर जाने-आने की आजादी छिन जाने या घर न जा पाने की हताशा के कारण हुई हैं। पठारे के अनुसार अगले छह से बारह महीनों में मानसिक स्वास्थ्य  बड़ा संकट बन सकता है।
हालांकि मोदी सरकार ने 2017 में ‘मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम’ पेश किया था, जिसके तहत सरकारी स्वास्थ्य देखभाल और इलाज के जरिए देश के लोगों का अच्छा मानसिक स्वास्थ्य सुनिश्चित करने की बात कही गई थी। पठारे मानते हैं कि भारत में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर बहुत प्रगतिशील कानून और नीतियां हैं पर हमारी समस्या सामाजिक क्षेत्र से जुड़ी हैं। इसके कारण कानून और नीतियों को जमीनी स्तर पर प्रभावी तरीके से लागू नहीं किया जाता। अब इसका उत्तर यही है कि देश की सरकारी ऐजेंसी भ्रष्टाचार मुक्त होकर लोगों की सेवा करे, तभी संभावनाओं के गर्भ में जाकर आम जन का मानसिक स्वास्थ्य अच्छा किया जा सकता है।
देश को सामाजिक सुरक्षा की बहुत जरूरत है। इसका न माहौल बना है और न ही काम की साफ तस्वीर दिख रही है। इसलिए भय की तस्वीर को हटाने का प्रयास करना चाहिए। सरकार को ध्यान देना चाहिए कि देश में सामाजिक सुरक्षा पुख्ता हो। मानसिक स्वास्थ्य कोरोना के लॉकडाउन के बाद और विकट होने की आशंका है।

भगवती प्रसाद डोभाल


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