दिजबो : निजीकरण के सवाल पर नूरा कुश्ती

Last Updated 15 Oct 2020 12:10:57 AM IST

पानी के वितरण संवर्धन और संरक्षण को लेकर दिल्ली सरकार हमेशा चिंता करती रही है।


दिजबो : निजीकरण के सवाल पर नूरा कुश्ती

यह अच्छी बात है। मगर यह अच्छी बात नहीं है कि इन प्रबंधनों का अतिरिक्त बोझ दिल्लीवासियों की जेब पर पड़े। पानी या हवा जैसे जीवन के आवश्यक तत्व पर हर किसी का मौलिक अधिकार है। ऐसे में पानी के प्रबंधन को निजी हाथों में सौंपने की बात भी करना, किसी दु:स्वप्न से कम नहीं।
एक बार ऐसी चर्चा तेज हो गई थी कि पानी के प्रबंधन को लेकर दिल्ली सरकार दिल्ली जल बोर्ड को निजी हाथों में सौंपने की तैयारी कर रही है। फिर क्या था, विपक्षी दलों में इसे लेकर खलबली मच गई। सफाई देने के लिए स्वयं मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को आगे आना पड़ा। उन्होंने स्पष्ट किया कि किसी भी हालत में पानी का निजीकरण नहीं किया जाएगा। विपक्ष की आशंका गलत एवं बेबुनियाद हैं। बकौल केजरीवाल, मैं स्वयं इस पक्ष में नहीं हूं। भाजपा और कांग्रेस के नेताओं का आरोप है कि दिल्ली जल बोर्ड की हालत दयनीय है। आज भी टैंकर माफिया सक्रिय है। पाइपलाइन बदलना तो दूर कर्मचारियों की तनख्वाह भी समय पर नहीं मिल पाती। कइयों ने तो पानी की शुद्धता को लेकर भी सवाल उठाया है।
दिल्ली सरकार अगर निजीकरण की राह पर चलती है, तो जल बोर्ड के हजारों कर्मचारी बेरोजगार हो जाएंगे। सनद रहे कि दिल्ली जल बोर्ड में काफी समय से नई भर्तियां भी बंद हैं। नई व्यवस्था के तहत पाइपलाइन बिछाने का काम इन दिनों निजी कंपनियों के हाथों में है। धीरे-धीरे यह प्रबंधन पूरी तरह जब निजी हाथों में चला जाएगा तो पानी दिल्लीवासियों के लिए महंगा हो जाएगा। पानी के बिना जीवन कितना मुश्किल होता है, हर इंसान को इसकी सहज ही समझ होती है।

एक जानकारी के मुताबिक दुनिया के 65 से अधिक देश पानी के निजीकरण का फैसला बदल चुके हैं, जबकि दिल्ली में इस दिशा में लगातार कोशिश की जा रही है। इस बाबत दिल्ली जल बोर्ड की कर्मचारी यूनियन ने कई बार विरोध प्र्दशन भी किए हैं। उनका मानना है कि अगर पानी का निजीकरण होता है, तो उनकी नौकरी खतरे में पड़ सकती हैं। वहीं, दिल्ली के मुख्यमंत्री ने जल वितरण की व्यवस्था को मजबूती प्रदान करने के लिए अत्याधुनिक तकनीकों का सहारा लेने का फैसला किया है। दिल्ली सरकार मानती है कि पानी के प्रबंधन को ठीक करने और पानी की प्रत्येक बूंद को बचाने की जिम्मेदारी तय करने की व्यवस्था होनी चाहिए। इसलिए पानी के वितरण को बेहतर बनाने के लिए सरकार विशेषज्ञ और  निजी कंपनियों से सहयोग ले रही है।  
दिल्ली की आबादी लगभग दो करोड़ है। यहां हर आदमी के लिए रोजाना 176 लीटर पानी उपलब्ध है, जबकि पूरी दिल्ली में पानी के वितरण के लिए 930 मिलियन यानी 93 करोड़ गैलन का उत्पादन होता है। दिल्ली सरकार कहती है कि पानी की उपलब्धता बढ़नी चाहिए। इसलिए वह उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड सरकार से बातचीत कर रही है। इससे हमें पता चल सकेगा कि पानी की एक-एक बूंद का इस्तेमाल कैसे हो और पानी की बर्बादी को कैसे रोका जाए? मुख्यमंत्री केजरीवाल मानते हैं कि पानी के प्रबंधन में कई प्रकार की खामियां हैं। मगर इसकी रोकथाम के लिए सबकी सही जिम्मेदारी तय की जानी चाहिए।
दिल्ली जल बोर्ड के उपाध्यक्ष राघव चड्ढा ने इस बाबत आगामी 30 अक्टूबर तक राजधानी दिल्ली के अंदर पानी की बर्बादी को रोकने के लिए ‘फ्लो मीटर’ लगाने का फैसला किया है। खबर है कि इस महीने के आखिर तक करीब 3500 फ्लो मीटर लगा दिए जाएंगे। इसका मकसद पानी की बर्बादी को रोकना है। लेकिन उपभोक्ताओं को सरकार के इस फैसले को लेकर संशय है। यह कि वजह से उनके पानी का बिल तो नहीं बढ़ जाएगा! जनता जानना चाहती है कि आखिर, फ्लो मीटर की सच्चाई क्या है और सरकार को इसे लगवाने की जरूरत क्यों आन पड़ी? वहीं, केजरीवाल सरकार का जवाब है कि फ्लो मीटर से न केवल पाइपलाइन से होने वाली पानी की सप्लाई का पता लगाया जा सकेगा, बल्कि किसी भी लीकेज या चोरी का पता लगाना भी आसान हो जाएगा। सरकार की दलील है कि उसका संकल्प है, सभी लोगों को 24 घंटे और सातों दिन शुद्ध पानी मिले।

सुशील देव


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment