ग्रामीण व किसान संकट : समाधान की गांधीजी की राह
आज हमारे गांव अनेक तरह की गंभीर आर्थिक व सामाजिक समस्याओं के दौर से गुजर रहे हैं।
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किसानों व खेती-किसानी का संकट तो चर्चा में रहता ही है, भूमिहीन मजदूरों व दस्तकारों की समस्याएं भी कोई कम विकट नहीं हैं। आज इन सभी की समस्याओं के समाधान पर चर्चा बढ़ रही है। क्या ऐसा संभव है कि इन सभी वगरे की समस्या का समाधान एक साथ एक हो सके? इतना ही नहीं, वह समाधान अल्पकालीन न हो कर टिकाऊ व स्थाई हो तभी वह असरदार होगा। जब हम ऐसे समाधान को तलाश करते हैं तो स्पष्ट होता है कि आजादी से पहले ही महात्मा गांधी ने जो ग्रामीण विकास की राह दिखाई थी, बहुत कुछ इस राह पर चलते हुए, इन्हीं सिद्धांतों पर चलते हुए हमें आज भी असरदार व संतोषजनक उपाय प्राप्त हो सकते हैं। इसी राह व सिद्धांतों को अपनाते हुए यहां एक कार्यक्रम प्रस्तुत है।
इसके लिए पहली जरूरत तो यह है कि पर्यावरण आधारित कृषि की एग्रोइकोलॉजी सोच को अपनाया जाए। इस सोच के अंतर्गत प्रकृति की प्रक्रियाओं की अच्छी समझ बनाई जाती है व इन प्रक्रियाओं में बाधा डाले बिना ऐसे उपायों से कृषि उत्पादन बढ़ाया जाता है जो पर्यावरण व मित्र जीवों की रक्षा करें। जिनमें पशुपालन व कृषि का बेहतर मिलन हो, जो गांवों के संसाधनों पर आधारित हों (आत्मनिर्भर) व जिनका खर्च न्यूनतम हो। इस तरह किसान का खर्च कम-से-कम करते हुए, पर्यावरण रक्षा करते हुए उत्पादन वृद्धि को टिकाऊ रूप दिया जाता है।
इसके साथ देशीय/स्थानीय/परंपरागत बीजों को बचाना व स्थानीय जल व नमी संरक्षण प्रयासों, हरियाली बढ़ाने को अधिक महत्त्व देना। फसल-चक्र ऐसे हों, जिनमें स्थानीय स्वास्थ्य अनुकूल खाद्यों को पहली प्राथमिकता मिले। कृषि में महिलाओं की भूमिका को अधिक मान्यता व सम्मान मिले। जीएम फसल से पर्यावरण रक्षा असंभव है अत: जीएम फसल पर पूर्ण रोक लगनी चाहिए। दूसरी जरूरत यह है कि कृषि उपज की प्रोसेसिंग गांव या पंचायत स्तर पर ही होनी चाहिए व इसके लिए बड़ी चावल, दाल, तेल की मिलों के स्थान पर छोटी मिल या कोल्हू या कपास प्रोसेसिंग की इकाई आदि कुटीर उद्योग लगाने चाहिए। इसके आधार पर खाद्य व कृषि लघु स्तर की प्रोसेसिंग से जुड़े तमाम रोजगार गांव के स्तर पर उपलब्ध होने चाहिए। इनमें महिलाओं को महत्त्वपूर्ण स्थान मिलना चाहिए। इन कुटीर व लघु उद्योगों को भली-भांति जमाने के लिए व अन्य उपयोगों के लिए भी सूचना तकनीक जैसे नये रोजगार व अन्य दैनिक जरूरतें पूरी करने वाले गैर-प्रदूषक उद्योग भी गांव व कस्बे स्तर पर पनपने चाहिए। इस तरह गांववासियों को खेती के अतिरिक्त अनेक विविधता भरे रोजगार भी गांव व कस्बे स्तर पर उपलब होंगे। इस तरह स्वदेशी व आत्मनिर्भरता इस रूप में आएंगे, जिसमें गांववासियों को टिकाऊ व रोजगार मिलेंगे। तीसरा कदम यह उठाना चाहिए कि स्थानीय, पर्यावरण-रक्षा के उपायों से प्राप्त स्वास्थ्य के अनुकूल खाद्यों के एक निचित भाग को सरकार को एम.एस.पी. या न्यायसंगत मूल्य के आधार पर खरीद लेना चाहिए व उसे उसी गांव या पंचायत की राशन की दुकानों (सार्वजनिक वितरण कार्यक्रम) व पोषण कार्यक्रमों (मिड डे मील, आंगनबाड़ी, सबला आदि) के लिए उपलब्ध करवा देना चाहिए।
इस तरह यातायात पर बहुत सा खर्च बचेगा। चूंकि पोषण कार्यक्रमों के लिए सब्जी, दाल, मसाले, तेल सब कुछ चाहिए अत: इन सब की स्थानीय खरीद भी एम.एस.पी. पर हो सकेगी। इसके अतिरिक्त भूमिहीन परिवारों के लिए एक बहुत बड़ा अभियान आरंभ करने की बहुत जरूरत है। जहां तक संभव है उन्हें कुछ भूमि कृषि या किचन गार्डन के लिए देनी चाहिए जहां वे एग्रोइकोलॉजी से खेती कर सकें। सीलिंग लागू कर व अन्य उपायों से उन्हें कृषि भूमि दी जा सकती है। जहां यह संभव न हो वहां बेकार पड़ी ऐसी भूमि जिस पर वृक्ष उगाना संभव है उन्हें देनी चाहिए व इस वनीकरण के लिए उन्हें टिकाऊ रोजगार न्यायसंगत मासिक मजदूरी पर देना चाहिए। जब वृक्ष बड़े हो जाएं तो इनसे प्राप्त लघु वन उपज (पत्ती, फूल, फल, बीज, तेल आदि) पर उनका ही अािकार होगा व वे इससे आजीविका प्राप्त कर सकेंगे।
स्थानीय प्रजाति के वृक्षों व झाड़ियों का फैलाव इस तरह हो जैसे उस क्षेत्र के स्थानीय प्राकृतिक वनों में होता है। इसके साथ-साथ जल, नमी संरक्षण के बहुत से कार्य भी किए जाएं जिनमें स्थानीय परंपरागत ज्ञान से सीखा जाए। इस तरह भूमिहीन परिवारों को किसी न किसी तरह का कृषि या वृक्ष भूमि आधार मिले तथा सभी के आवास भूमि अधिकार सुरक्षित हों। गांवों के सभी मूल परिवारों को भूमि आधार प्राप्त होना चाहिए। अंतिम जरूरत यह है कि सभी गांवों/पंचायतों में महिलाओं व युवाओं के नेतृत्व में स्थाई समाज-सुधार समितियों का गठन होना चाहिए। इन का कार्य यह है कि निरंतरता से शराब व हर तरह के नशे को दूर करने का कार्य निरंतरता से चलता रहे। इसके साथ छुआछूत, हर तरह के भेदभाव, दहेज-प्रथा, महिलाओं से हिंसा व अभद्रता, भ्रष्टाचार, तरह-तरह के अनावश्यक झगड़ों, गंदगी के विरुद्ध भी इस समिति को निरंतरता से सक्रिय रहना चाहिए। सभी सरकारों योजनाओं का लाभ लोगों तक बिना भ्रष्टाचार के पहुंचे इसके लिए भी समिति को सक्रिय रहना चाहिए। इस कार्यक्रम के आधार पर टिकाऊ तौर पर हमारे गांवों में किसानों के संकट, बेरोजगारी व निर्धनता को दूर किया जा सकता है। इस तरह गांवों में आ रही निराशा को दूर कर तरह-तरह के रचनात्मक प्रयासों को उत्साहवर्धक बढ़ावा दिया जा सकता है।
इसके अतिरिक्त कर्जग्रस्त किसानों व मजदूरों को मौजूदा कठिनाईयों में तुरंत राहत देने के लिए कर्ज-राहत की घोषणा भी एकमुश्त की जानी चाहिए। गांधी जी की सोच पर आधारित इस 5-सूत्रीय कार्यक्रम को उत्साहवर्धक रचनात्मक भागीदारी पर आधारित एक व्यापक जन-अभियान का रूप दिया जा सकता है। इसके बावजूद एक सिद्धांत के तौर पर सभी सरकारों को चाहिए कि वे ग्रामीण व कृषि विकास को अधिक प्राथमिकता दें तथा इसके लिए अपेक्षाकृत अधिक बजट उपलब्ध करवाएं। इस कार्यक्रम को अपनाने से जलवायु बदलाव का संकट कम करने में भी बहुत मदद मिलेगी अत: इसके लिए उपलब्ध धन का प्रयोग भी इस कार्यक्रम के लिए हो सकता है।
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