प्रदूषण की चिंता : कोरोना बाद की सिरदर्दी
पराली जलाए जाने की खबरों के साथ प्रदूषण का मौसम एक बार फिर देहरी पर दस्तक देने लगा है।
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ऐसे वक्त में जबकि कोरोना वायरस के कहर में कमी आने के संकेत के साथ यह उम्मीद जगी है कि सटीक वैक्सीन आए या न आए, पर कोविड-19 नामक महामारी से हम जल्दी ही काफी हद तक उबर जाएंगे, दिल्ली-एनसीआर पर दूषित होती हवाओं का संकट फिर सिर पर मंडराने लगा है। यानी कोरोना भले थम जाए, पर तब सवाल यह होगा कि आखिर प्रदूषण की उस बीमारी का क्या होगा जो सतत जारी है। खास तौर से हमारी सांसों में जहर घोलने वाली उस प्रदूषित हवा से कैसे निपटा जाएगा, जिसकी साफ-सफाई की तमाम कोशिशों के बावजूद हालात जस के तस हैं।
ऐसे में यह आशंका पैदा हो गई है कि वायु प्रदूषण कहीं कोरोना की मंद पड़ती चाल में कोई नई हलचल पैदा न कर दे। ऐसा न हो-इसके लिए तैयारी अभी से करनी होगी। कोरोना वायरस के प्रसार को वायु प्रदूषण से सीधे तौर पर नहीं जोड़ा जा रहा हो, लेकिन यह साबित हो चुका है कि फेफड़ों पर हावी होने वाली यह महामारी इस अंग को कमजोर बनाने वाले हालात में और घातक हो सकती है। अमेरिका की हार्वर्ड यूनिर्वसटिी और लुइसियाना स्टेट यूनिर्वसटिी में हुए अध्ययनों का हवाला देते हुए बताया जा रहा है कि कोरोना संक्रमण के हल्के मामलों को गंभीर बनाने में वायु प्रदूषण अहम कारक हो सकता है। इसके अलावा वायु प्रदूषण में वृद्धि कोरोना के हवाई संक्रमण को आसान बना सकती है।
ऐसे में, दिल्ली-एनसीआर में इस साल वायु प्रदूषण के स्तर में किसी भी तरह की वृद्धि से कोरोना के कारण मृत्यु दर में तेजी से बढ़ोतरी की वजह बन सकती है। शायद इसी चिंता के मद्देनजर हाल में दिल्ली हाईकोर्ट ने एक याचिका की सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार से पूछा है कि वह पड़ोसी राज्यों पंजाब और हरियाणा में पराली (कृषि अवशेष) जलाने पर रोक के लिए क्या कदम उठा रही है। समस्या और चिंता की बात यह है कि अगर पराली का धुआं बीते वर्षो की तरह ही आक्रामक ढंग से दिल्ली-एनसीआर से लेकर अन्य पड़ोसी राज्यों और उनके शहरों में पहुंचकर गहरी-जहरीली धुंध यानी स्मॉग की पैदावार का कारण बना तो इससे कोविड-19 की स्थितियां और खराब हो सकती हैं। खेतों में जलाई जाने वाली पराली से उठने वाला धुआं कहां-कहां तक पहुंच सकता है, इस बारे में हाल में अमेरिकी स्पेस एजेंसी-नासा ने फोटो भी जारी किए हैं।
दावा है कि पंजाब-हरियाणा के खेतों से उठी कालिख भरी यह धुंध मध्य प्रदेश के इंदौर तक जा पहुंचती है। दिल्ली-एनसीआर के बारे में दर्ज दस्तावेजी तथ्यों के मुताबिक यहां के वायु प्रदूषण में पराली जलाने से पैदा होने वाले धुएं का योगदान 40 फीसद तक होता है, लेकिन पराली वायु प्रदूषण का अकेला कारण नहीं है। अरसे से दिल्ली-एनसीआर के अलावा देश के अन्य शहरों ने देखा है कि दिवाली जैसे त्योहारी मौसम में पटाखे जलाने से उठने वाला धुआं माहौल को कितना जहरीला बनाता रहा है। सर्वोच्च अदालत की सख्ती के बाद इसमें आंशिक कमी आई है, लेकिन दूसरे वायु प्रदूषकों पर अभी ज्यादा जोर नहीं चला है। इसकी बानगी शहरों के वायु प्रदूषण सूचकांक-एयर क्वॉलिटी इंडेक्स के आंकड़ों से मिल जाती है। देखा गया है कि जागरूकता अभियानों और ऑड-ईवन जैसे उपायों के बावजूद शहरों में सांस लेने लायक हवा की मौजूदगी एक सपना ही है। इसका एक सच यह है कि पराली और पटाखों के बाद वायु प्रदूषण में वाहनों और उद्योगों से निकलने वाले प्रदूषण की 60 फीसद हिस्सेदारी है।
सेंटर फॉर साइंस ऐंड एनवायरनमेंट (क्च्क) की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली-एनसीआर में ही हवा को जहरीला बनाने में कार आदि वाहन करीब 39 फीसद और उद्योग करीब 22 फीसद योगदान दे रहे हैं। कार आदि वाहन देश के दूसरे शहरों में भी तेजी से बढ़ रहे हैं क्योंकि वहां जागरूकता के मुकाबले धन-संपदा का दिखावा करने वाला मध्यवर्ग दिल्ली-मुंबई की तरह ही तेज विकास कर रहा है। ऐसे में यह रूदन निर्थक ही है कि शहरों को स्मॉग (जहर भरी धुंध) क्यों अपनी चपेट में ले रहा है क्योंकि उससे पहले हर चीज को प्रदूषित करने वाली लालसाओं ने हमें अपनी चपेट में ले लिया है। ऐसे जरूरी सिर्फ यह नहीं है कि वायु प्रदूषण की समस्या को लेकर अदालतें और सरकारें जगें, बल्कि जनता का जागना ज्यादा जरूरी है।
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