जनगणना : सटीकता और पारदर्शिता जरूरी

Last Updated 20 Aug 2020 12:39:12 AM IST

जनगणना-2021 ऐसा अवसर होगा जब भारत सरकार अपनी लोक-कल्याणकारी योजनाओं के दावों की जमीनी हकीकत जानने की कोशिश करेगी?


जनगणना : सटीकता और पारदर्शिता जरूरी

जनगणना पंजीकरण के अतिरिक्त आयुक्त संजय मानते हैं कि ‘भौगोलिक और सामाजिक रूप से अनेक विविधताएं हैं। ऐसे में जनगणना ऐसा अवसर है, जिसमें सरकार देश के प्रत्येक नागरिक से सीधे रूबरू होती है। ऐसे में यदि योजनाओं के अमल में कोई विसंगति या विसंगतियां पेश आती है तो उन्हें दूर करने के उपाय किए जा सकते हैं’।

भारत की जनसंख्या 1901 में 23,83,96,327 थी। आजादी के साल 1947 में 34.2 करोड़ हो गई थी। 1947 से 1981 के बीच भारतीय आबादी की दर में ढाई गुना वृद्धि दर्ज की गई और यह 68.4 करोड़ हो गई थी। जनसंख्या वृद्धि दर का आकलन करने वाले विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में प्रति वर्ष एक करोड़ 60 लाख आबादी बढ़ जाती है। इस दर के अनुसार हमें अपने देश की करीब एक अरब 30 करोड़ लोगों की एक निश्चित जनसंख्या प्रारूप में गिनती करनी है ताकि व्यक्तियों और संसाधनों के समतुल्य आर्थिक और रोजगारमूलक विकास का खाका खींचा जा सके। हरेक दस साल में की जाने वाली जनता-जनार्दन की गिनती में करीब 20 लाख कर्मचारी जुटते हैं। छह लाख ग्रामों, पांच हजार कस्बों, सैकड़ों नगरों और दर्जनों महानगरों के रहवासियों के द्वार-द्वार दस्तक देकर जनगणना का कार्य करना इसलिए जटिल होता है। तब और बोझिल हो जाता है जब किसी कर्मचारी-दल को उसके स्थनीय दैनंदिन कार्य से दूर कर दूरांचल में भेज दिया जाता है। ऐसे  हालात में गिनती की जल्दबाजी में वे मानव समूह छूट जाते हैं, जो आजीविका के लिए मूल निवास स्थल से पलायन कर जाते हैं। ऐसे लोगों में ज्यादातर अनुसूचित जाति/जनजातियों के लोग होते हैं। बीते कुछ सालों में आधुनिक और आर्थिक विकास की अवधारणा के चलते इन्हीं जाति समूह के करीब चार करोड़ लोग विस्थापन के दायरे में हैं। इन विस्थापितों का स्थायी ठिकाना कहां है, जनगणना दल के लिए यह पता लगाना मुशकिल हो जाता है।

जरूरी है कि जनगणना की प्रक्रिया के वर्तमान स्वरूप को बदल कर ऐसे स्वरूप में तब्दील किया जाए जिससे गिनती में निरंतरता बनी रहे। इसके लिए न तो भारी भरकम संस्थागत ढांचे की जरूरत है और न ही सरकारी अमले की। केवल गिनती की केंद्रीकृत जटिल पद्धति को विकेंद्रीकृत करके सरल करना है। यह तरकीब ऊपर से शुरू न होकर नीचे से शुरू होगी। देश की सबसे छोटी राजनैतिक व प्रशासनिक इकाई ग्राम पंचायत है जिसका त्रिस्तरीय ढांचा विकास खंड व जिला स्तर तक है। इतना करना भर है कि तीन प्रतियों में एक जनसंख्या पंजी  पंचायत कार्यालय में रखनी है। इसी पंजी की प्रतिलिपि कंप्यूटर में फीड कर जनसंख्या प्रारूप पर भी दर्ज हो। परिवार को इकाई मानकर सरपंच, सचिव और पटवारी को जवाबदेही सौंपी जाए कि वे परिवार के प्रत्येक सदस्य का नामकरण व अन्य जानकारियां जनसंख्या प्रारूप के अनुसार इन पंजियों में दर्ज करें। इस गिनती को सचित्र भी किया जा सकता है। चूंकि ग्राम पंचायत स्तर का प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे को बखूबी जानता है, इसलिए इस गिनती में चित्र व नाम के स्तर पर भ्रम की स्थित निर्मिंत नहीं होगी। जैसा कि मतदाता सूचियों और मतदता परिचय-पत्र में हो जाती है।

ग्राम पंचायत पर एकत्रित होने वाली जानकारी प्रत्येक माह की निश्चित तारीख को विकास खंड स्तर पर पहुंचाई जाकर पंजी की एक प्रति विकास खंड कार्यालय में रखी जाए और इसे आधार बनाकर इसका तत्काल कंप्यूटरीकरण किया जाए। जिले के सभी विकास खंडों की यह जानकारी जिला स्तर पर मंगाई जाए। इस तरह से विकास खंडों के आंकड़ों की गणना कर जिले की जनगणना प्रत्येक माह होती रहेगी। जिलावार गणना के डाटा को प्रदेश स्तर पर सांख्यकीय कार्यालय में इकट्ठा कर प्रदेश की जनगणना का आंकड़ा भी प्रत्येक माह सामने आता रहेगा। प्रदेशवार जनसंख्या के आंकड़ों को देश की राजधानी में जनसंख्या कार्यालय में संग्रहीत कर प्रत्येक माह देश की जनगणना का प्रामाणिक आंकड़ा मिलता रहेगा। देश के नगर व महानगर वार्डों में विभक्त हैं। वार्डवार जनगणना के लिए गिनती की उपरोक्त प्रणाली अपनाई जाए। इस गिनती में जितनी पारदर्शिता और शुद्धता रहेगी उतनी किसी अन्य पद्धति से संभव नहीं है।

प्रमोद भार्गव


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment