खेती-किसानी : ..ताकि सुरक्षित रहें इनके हित

Last Updated 19 Aug 2020 01:30:55 AM IST

भारत की लगभग दो-तिहाई जनसंख्या के आर्थिक हित व रोजी-रोटी प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से खेती-किसानी व ग्रामीण अर्थव्यवस्था से जुड़े हुए है।


खेती-किसानी : ..ताकि सुरक्षित रहें इनके हित

अत: दूसरे देशों से कोई भी व्यापार समझौते करने से पहले भारतीय सरकार को यह यान में रखना पड़ता है कि व्यापार-समझौते का भारतीय किसानों की रोजी-रोटी पर कोई प्रतिकूल असर न हो।
कुछ समय पहले भारत में क्षेत्रीय समग्र आर्थिक भागेदारी (रीजियनल कांप्रीहैसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप- री.सी.ई.पी.) पर बहुत चर्चा हुई थी। इसके अनेक मुद्दे थे, जिनमें एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा यह था कि भारतीय किसानों विशेषकर डेयरी किसानों के हितों पर प्रतिकूल असर न पड़े। अंत में भारतीय सरकार ने इन हितों को समुचित महत्त्व देते हुए फिलहाल इस समझौते से बाहर रहने का निर्णय लिया जो उचित निर्णय था। इस निर्णय का किसान संगठनों ने व्यापक स्तर पर स्वागत किया था। कुछ दशक पहले तक अंतरराष्ट्रीय व्यापार के नियमों में प्रमुख भूमिका गैट (जनरल एग्रीमेंट आन टैरीफ एंड ट्रेड) के नियमों की थी। इन नियमों में विकासशील देशों की खेती-किसानी नीति पर कोई विशेष रोक-टोक नहीं थी। पर जब गैट व्यवस्था छोड़ कर विश्व व्यापार संगठन (वर्ल्ड ट्रेड आग्रेनाईजेशन या डब्ल्यू.टी.ओ.) की ओर बढ़ा गया तो भारत जैसे विकासील देश के कृषि व खाद्य हितों के लिए अनेक समस्याएं उत्पन्न होने लगी।

भारत व अन्य विकासशील देशों ने इन समस्याओं के समाधान के लिए अनेक प्रयास किए व सुझाव दिए। इनमें से कुछ स्वीकृत हुए व कुछ नहीं हुए। अत: कुछ हद तक इन खेती-किसानी के लिए उत्पन्न होने वाली समस्याओं को रोका जा सका व कुछ हद तक नई समस्याओं का प्रवेश अंतरराष्ट्रीय व्यापार व्यवस्था में हो गया। विश्व व्यापार संगठन की स्थापना के बाद भी विश्व में कई अन्य अंतरराष्ट्रीय व द्विराष्ट्रीय व्यापार समझौतों का दौर चलता रहा। इनमें से कुछ तो बहुत विवादास्पद सिद्ध हुए। भारत व यूरोपीयन यूनियन के बीच खुले व्यापार के समझौते की वार्ता अनेक वर्षो तक चलती रही। भारत में इस बारे में व्यापक बहस हुई कि यूरोपीयन यूनियन जो चाह रही है; उससे भारत के किसानों विशेषकर डेयरी किसानों व पशुपालकों को बहुत क्षति होगी। जहां भारत के हित बहुत जरूरी समझे गए, वहां भारत के वार्ताकारों ने कड़ा रुख अपनाया व यूरोपीयन यूनियन की दलीलों को अस्वीकृत कर दिया। अत: अनेक वर्ष चलने के बाद इस वार्ता को रोक दिया गया। अब आगे की चर्चा मुख्य रूप से भारत व अमेरिका के खुले व्यापार समझौते के रूप में है। चूंकि इस समझौते का असर बहुत व्यापक हो सकता है अत: इस समय समझौते के मात्र पहले चरण की ही चर्चा है। इस समझौते में भी अमेरिका का मुख्य सरोकार यह है कि वह अपने कृषि व डेयरी उत्पादों के आयात को बढ़ाए। दूसरी ओर भारत के लिए अपने किसानों विशेषकर मक्का, सोयबीन के किसानों, डेयरी किसानों व मुर्गीपालकों के हितों को सुरक्षित रखना है। अमेरिका की सोयाबीन व मक्का के उत्पाद मुख्य रूप से जीएम (जेनेटिकली मोडीफाइड) उत्पाद है और वहां दूध का उत्पादन बढ़ाने में जीएम ग्रोथ हारमोन का उपयोग होता है। अत: उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य की रक्षा करना भी भारत का एक प्रमुख उद्देश्य है। यदि भारतीय पक्ष की ओर देखा जाए तो अमेरिकी कृषि व डेयरी उत्पादों का आयात बढ़ना उसके हित में नहीं है। भारत व अमेरिकी किसान बहुत अलग स्थितियों में कार्य करते हैं व उनकी स्थितियां बराबरी की नहीं है। भारत के एक औसत किसान के पास 1 हेक्टेयर भूमि है तो संयुक्त राज्य अमेरिका के एक औसत किसान के पास 176 हेक्टेयर भूमि है।
संयुक्त राज्य अमेरिका की सरकार की ओर से वहां की कृषि व खाद्य व्यवस्था को इतनी सब्सिडी व सहायता मिलती है, जितना विकासशील देशों की सरकारों के लिए संभव ही नहीं है। अत: यदि भारत-अमेरिका खुले व्यापार समझौते (पहले चरण या दूसरे चरण) से भारत में सस्ते अमेरिकी कृषि उत्पादों के आयात की संभावना बढ़ती है तो इससे भारतीय किसानों की समस्याएं बढ़ने की आशंका है, वह भी ऐसे वक्त जिस समय पहले ही किसान कई गंभीर समस्याओं से जूझ रहे हैं। इन मुद्दों के महत्त्व को देखते हुए इसके बारे में सजगता व पारदर्शिता अपनाना बहुत आवश्यक है। इस विषय पर देश में अनुभवी विशेषज्ञ उपलब्ध हैं। उनकी राय जरूर लेनी चाहिए व किसान संगठनों से परामर्श करने की तो महती आवश्यकता है।

भारत डोगरा


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment