सरोकार : सूडान से महिलाओं के लिए अच्छी खबर
सूडान की सरकार ने हाल ही में देश भर में फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन या सीधे शब्दों में जननांगों को काटने या खतना पर पाबंदी लगाई है।
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2014 में एक सर्वे में संयुक्त राष्ट्र ने अनुमान लगाया था कि सूडान की 15 से 49 साल की 87 फीसद औरतों को इस कुप्रथा का शिकार बनाया गया है। यूं यह सिर्फ सूडान की प्रथा नहीं है। मिस्र, सोमालिया, केन्या, बुर्किना फासो, नाइजीरिया, सेनेगल, जिबूती और अरब प्रायद्वीप के ओमान, संयुक्त अरब अमीरात और यमन, इराक और फिलिस्तीनी क्षेत्रों में भी प्रचलित है।
इसका क्या कारण है? जाहिर-सी बात है, इसका मकसद लड़कियों के कौमार्य को बरकरार रखना है। उनकी यौन इच्छाओं को काबू में करना है। वैसे सूडान के धार्मिंक नेताओं को इस पर बयान देना बाकी है। पर फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन यानी एफजीएम बुनियादी मानवाधिकारों का हनन है। इससे सेहत पर खतरनाक असर होते हैं। मेन्स्ट्रुएशन और प्रसव कठिन और तकलीफदेह होता है। जीवन को खतरा भी होता है। चिकित्सकीय सहायता के बिना और अस्वच्छ परिस्थितियों में होने के कारण इससे लड़कियां संक्रमण की शिकार होती हैं। कई बार उनकी मृत्यु भी हो जाती है। ऐसी कुप्रथा का मकसद महिलाओं पर नियंत्रण है। अपनी देह पर उनकी स्वायत्तता को नकारना है। इसके कुछ दूसरे पहलू भी हैं। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार दुनिया भर में हर साल एफजीएम के कारण महिलाओं की सेहत को जो नुकसान होता है, उसके इलाज की कुल लागत 1.4 अरब डॉलर है। आंकड़ों के अनुसार कई देश अपने कुल स्वास्थ्य व्यय का करीब 10 फीसद हर साल एफजीएम से जुड़े इलाज पर खर्च करते हैं। कुछ देशों में तो ये आंकड़ा 30 फीसद तक है।
सूडान में यह प्रतिबंध दशकों के आंदोलनों का प्रतिफल है। सूडान में एक संघीय प्रणाली लागू है। इसका मतलब यह है कि राज्यों के अपने कानून हैं। एफजीएम पर सबसे पहले 2008 में दक्षिणी कोडरेफैन में पाबंदी लगाई गई थी। इस राज्य ने इसके खिलाफ एक कानून बनाया था। इसके एक साल बाद गादारेफ में ऐसा कानून बनाया गया। चुनौती यह थी कि बाकी के राज्यों में इस पर सर्वसम्मति बने। अब इतने साल बाद सूडान की सोविरन काउंसिल ने कानून बनाकर इस कुप्रथा पर पाबंदी लगाई है, लेकिन कानून बनाने से कुप्रथाएं खत्म नहीं होतीं। इसे लोगों का समर्थन भी मिलना चाहिए। सूडान में सरकार कोशिश कर रही है कि इस कुप्रथा के खिलाफ ठोस से ठोस कदम उठाए जाएं। इसके लिए रेडियो कार्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं। नेतागण संदेश दे रहे हैं। गाने और नाटक बनाए जा रहे हैं। राष्ट्रीय स्तर पर सलीमा जैसा अभियान चलाया गया है। अरबी में सलीमा का मतलब संपूर्ण औरत होता है।
इससे पहले मिस्र भी 2008 में एफजीएम पर प्रतिबंध लगा चुका है। इसके बाद 2016 में उन डॉक्टरों और माता-पिता को भी क्रिमिनलाइज करने के लिए कानून में संशोधन किए गए जो इस कुप्रथा का पालन करते हैं। ऐसे अपराधियों को सात साल की सजा का प्रावधान किया गया। सूडान से एक और अच्छी खबर यह है कि अब देश में गैर-मुसलमानों को शराब पीने की भी छूट मिल गई है। सूडान के पूर्व राष्ट्रपति जाफर निमीरी ने 1983 में इस्लामिक कानून लागू करने के बाद शराब पर प्रतिबंध लगा दिया था। नये कानून में गैर-मुस्लिमों के लिए शराब पीने, इस्लाम त्यागने का अधिकार, महिलाओं को बिना पुरुष रिश्तेदारों के साथ सफर करने का अधिकार मिल गया है।
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