पास-पड़ोस : मैप गेम के निहितार्थ
बीते सप्ताह पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने एक राजनीतिक मानचित्र का अनावरण किया जिसमें पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के साथ-साथ भारत के नियंत्रण वाले कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान को भी पाकिस्तानी क्षेत्र के रूप में प्रदर्शित किया गया है।
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जूनागढ़ और सरक्रीक भी पाकिस्तानी भू-राजनीतिक क्षेत्र के हिस्से बताए गए हैं। इमरान खान का कहना था कि यह मानचित्र भारत द्वारा 5 अगस्त, 2019 को उठाए गए कदमों को ठुकराता है।
तमाम सवाल उठते हैं कि कैसे? पहला तो यह कि क्या पाकिस्तान की सरकार ऐसी कोई अथॉरिटी है जो दूसरे देश की टेरिटरी या उसके किसी राज्य को अपने अधिकार क्षेत्र में दिखाने में समर्थ हो? यह भी तो नहीं कहा जा सकता है कि ऐतिहासिक रूप से पाकिस्तान उस पर अपना दावा कर सकता है क्योंकि पाकिस्तान का तो कोई इतिहास है ही नहीं। दूसरा सवाल यह है कि तमाम विसंगतियों वाला मानचित्र जारी करने के पीछे पाकिस्तान की मंशा क्या है? चूंकि भारत का पड़ोसी देश नेपाल भी एक मानचित्र जारी कर चुका है, जिसमें उसने लिंपियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख को अपने हिस्सा दिखाया है, जिस पर भारत कड़ा ऐतराज जता चुका है। इसलिए कॉमन सवाल है कि क्या ये कदम इन देशों द्वारा स्वतंत्र विचार के आधार पर उठाए गए हैं या इनकी स्क्रिप्ट कहीं और लिखी जा रही है और इस तरह के कदमों के लिए ताकत भी इन्हें वहीं से मिल रही है? सवाल यह भी कि क्या दोनों देश ‘मैप डिप्लोमेसी’ तक ही सीमित रहेंगे या सैन्य प्रयोग तक जाएंगे? अंतरराष्ट्रीय काटरेग्राफर टिम ट्रेनर का कहना है कि मानचित्र दुनिया को लेकर लोगों की सोच को प्रभावित करते हैं। पाकिस्तान ऐसा मानकर चल रहा है तो फिर वहां सत्ता में बैठे लोग मूर्ख ही कहे जा सकते हैं।
दरअसल, पाकिस्तान की सरकार को लगता है कि मानचित्र कूटनीति के माध्यम से ‘इंटरनल क्राइसिस मैनेजमेंट’ करने में सफल हो जाएगी और दुनिया का ध्यान भी अपनी ओर आकषिर्त कर ले जाएगी। हो सकता है कि पाकिस्तान मानकर चल रहा हो कि चीन के इशारे पर भारत के अन्य पड़ोसियों के साथ मिलकर ‘मैप्स वार’ के जरिए भारत पर दबाव बनाने में सफल हो जाएगा। हो सकता है कि इमरान ‘पावर ऑफ मैप्स’ के विषय में कुछ जानते हों लेकिन जिनका अपना इतिहास नहीं होता उनके लिए यह डेफिसिट डिप्लोमेसी का जरिया बनता है, न कि डिवीडेंड का नहीं।
किसी को भी कोई संशय नहीं होना चाहिए कि बीजिंग-इस्लामाबाद, बीजिंग-काठमांडू और कुछ हद तक इस्लामाबाद-काठमांडू बॉण्डिंग इस तरह की गतिविधियों के लिए ताकत देती है। पाकिस्तान द्वारा नये मानचित्र में अपनी पूर्वी सीमाओं को खुला रखना इस बात की तस्दीक करता है। बावजूद इसके, इस तरह की मूर्खता पाकिस्तान को नहीं करनी चाहिए थी। दरअसल, पाकिस्तान के इन दावों की न तो कानूनी वैधता है और न ही अंतरराष्ट्रीय विसनीयता। कारण यह कि पाकिस्तान सरकार स्वयं दिग्भ्रमित नजर आ रही है। एक तरफ भारत प्रशासित कश्मीर को अपने इलाके में दर्शा रही है, तो यह भी लिख रही है कि समस्या का हल संयुक्त राष्ट्र की सिक्योरिटी काउंसिल की सिफारिशों की रोशनी में होना है। रही सिंध और गुजरात के बीच अरब सागर की पट्टी सरक्रीक की, जिसे पाकिस्तान ने अपने मानचित्र में दिखाया है, तो उस पर भारत का नियंत्रण है।
मानचित्र में जिस जूनागढ़ और मनाबदर को पाकिस्तानी टेरिटरी में दिखाया गया है, वे दोनों अब गुजरात राज्य के हिस्से हैं। खास बात यह है कि दोनों की सीमाएं पाकिस्तान से नहीं मिलतीं। इतिहास के पन्ने पलटें तो आसानी से पता चल जाएगा कि जूनागढ़ के पाकिस्तान में विलय की एकपक्षीय घोषणा तत्कालीन नवाब ने की थी जो मुस्लिम था जबकि वहां की जनता हिंदू। इस घोषणा के बाद इस रियासत की प्रजा ने विद्रोह कर दिया था। विवश होकर वहां के वजीर ने भारत सरकार से स्थिति संभालने के लिए प्रार्थना की थी जिसके बाद भारतीय सेना भेजी गई जिसने स्थिति को नियंत्रित किया। इसके बाद वहां जनमत कराया गया जो भारत में विलय के पक्ष में था। अहम बात तो यह है कि पाकिस्तान की सरकार यह भी भूल रही है कि जो हिस्से उसने अपनी टेरिटरी में दर्शा लिए उनके संबंध में उसकी संसद तो कानून भी नहीं बना सकती क्योंकि वे उसकी भू-राजनीतिक सीमाओं में नहीं आते। हालांकि उपयरुक्त मानचित्र पाकिस्तान के सव्रेयर जनरल के सत्यापन और मुहर के साथ जारी हुआ है। इससे साबित होता है कि पाकिस्तान सरकार इस एग्जीक्यूटिव एक्शन के माध्यम से अपने देश के अंदर कोई संदेश देना चाहती है। लेकिन मजेदार बात यह है कि उसके कुछ विशेषज्ञ कहते दिख रहे हैं कि यह पाकिस्तान की शर्मनाक और बचकानी हरकत है। उनका मानना है कि ऐसे मानचित्र बना लेने और जारी कर देने मात्र से ही अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं उसे स्वीकृति नहीं दे देंगी। हां, देखना यह होगा कि इस तरह की लड़ाई बीजिंग-इस्लामाबाद-काठमांडू ट्राई बॉण्डिंग किसी स्ट्रैटेजिक ट्रैंगल का रूप तो नहीं लेगी।
नेपाल की बात करें तो वहां कम्युनिस्ट शासन है। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली बीजिंग की उंगली पकड़कर चल रहे हैं। नेपाली संसद ने नया मानचित्र स्वीकृत किया जिसमें लिंपियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख सहित 400 वर्ग किलोमीटर का हिस्सा बढ़ाकर नेपाल सीमा के अंदर दर्शा दिया। उल्लेखनीय है कि लगभग 6 माह पहले भारत द्वारा अपना नया राजनीतिक मानचित्र जारी किया गया था जिसमें जम्मू-कश्मीर राज्य को 2 केंद्रशासित प्रदेशों यानी जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को अपने हिस्से के रूप में दिखाया गया था। इस मानचित्र में लिंपियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख को भारत का हिस्सा बताया गया था जबकि नेपाल इन क्षेत्रों पर अपना दावा जाहिर करता रहा है। हालांकि नेपाल के दावे को भारत के विदेश मंत्रालय ने यह कहकर खारिज कर दिया कि नेपाल का दावा ऐतिहासिक तथ्यों और सबूतों पर आधारित नहीं है।
बहरहाल, जिसका इतिहास विस्तृत, दीर्घकालिक और समृद्ध होता है उसके लिए चुनौतियां अधिक होती हैं और जिम्मेदारियां भी। यही वजह है कि भारत शुरू से ही अपने पड़ोसियों के प्रति उदार एवं प्रगतिशील नीतियों के व्यवहार अपनाता रहा। चाहे भारत की पंचशील नीति रही हो या गुजराल डॉक्ट्रिन और नेबर्स फस्र्ट की नीति। अब भारत को फार्वड ट्रैक पर चलने के साथ-साथ यह ध्यान रखने की जरूरत होगी कि न्यूक्लियस स्टेट तभी ताकतवर हो सकता है, जब क्रोड स्टेट्स उसके लिए डिफेंसिव दीवार का काम करें।
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