मुद्दा : अनलॉक होते हादसे
अगर समानताएं देखना चाहें तो चार अगस्त को लेबनान की राजधानी बेरूत में हुए धमाके और सात अगस्त को केरल के कोझिकोड में हुई विमान दुर्घटना में कुछ बातें एक-सी नजर आएंगी।
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कोरोनाकाल में हुई इन दुर्घटनाओं में किसी ऐसी चूक या लापरवाही का संकेत मिलता है, जिसे नजरअंदाज करने से हादसा बड़ा हो गया। ये घटनाएं एकदम हाल की हैं, लेकिन मार्च में हुए लॉकडाउन और उसके बाद अनलॉक की प्रक्रिया में कई अन्य औद्योगिक दुर्घटनाएं अपने ही देश में हुई हैं। इनका सिलसिला कई और बातों के साथ यह भी साबित करता है कि चलती हुई मशीनरी को जब किसी वजह से अरसे तक रोक कर दोबारा चालू किया जाता है, तो जरूरी सावधानियों से हमारी नजर हट जाती है। यह असावधानी चूंकि घातक है, इसलिए विचारने की जरूरत है कि ठहराव बाद कोई सिस्टम दोबारा चालू हो तो कितनी ज्यादा सतर्कता बरती जाए।
बेरूत में बंदरगाह पर बीते कई वर्षो से मौजूद अमोनियम नाइट्रेट के ढेर में कोई चिंगारी कोरोनाकाल में ही क्यों विनाशक ढंग से भड़की-शायद इसकी ठोस वजह कभी पता ना चले। कई किलोमीटर के दायरे में सब कुछ ध्वस्त और स्वाहा करने वाली घटना के कारणों से जुड़े सबूत भी पूरी तरह मिट चुके होंगे। लेकिन जिस बात पर जांचकर्ताओं की नजर जाने की उम्मीद हम कर सकते हैं, वह यह है कि कोविड-19 की महामारी के दौर में कर्मचारियों की कमी और सुस्ती ने हादसों की राह आसान कर दी है। हमारे ही देश में अनलॉक की प्रक्रिया शुरू होने के बाद मई से अब तक 30 से ज्यादा औद्योगिक दुर्घटनाओं में 75 लोग जान गंवा चुके हैं। इन्हें देखकर लग रहा है कि कोरोना वायरस के संकटकाल में सारी मुसीबतें एक साथ आ गई हैं।
सवाल है कि बंदरगाहों, फैक्ट्रियों और प्लांटों में ऐसी दुर्घटनाओं की संख्या अचानक क्यों बढ़ गई है। क्या वजह लापरवाही है या सुरक्षा उपायों का कारगर ढंग से लागू नहीं किया जाना। एक उदाहरण आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम में एक केमिकल इंडस्ट्री (एलजी पॉलिमर इंडस्ट्री) में मई में हुए गैस रिसाव का है। इसमें करीब एक दर्जन लोगों की मौत हो गई थी। हादसा लॉकडाउन खत्म होने की घोषणा के फौरन बाद फैक्ट्री का कामकाज फिर से शुरू करने की तैयारी के दौरान हुआ था। दावा किया गया कि मौतों के अलावा इसके प्लांट से स्टाइरीन गैस के रिसाव के संपर्क में आने वाले आसपास के करीब पांच हजार लोगों के दिमाग और रीढ़ पर इसका असर हुआ था। ऐसा क्यों हुआ? ज्यादातर विशेषज्ञों का मत है कि संभवत: लॉकडाउन की वजह से फैक्ट्री की टंकियों और मशीनों का सही रखरखाव नहीं हो पाया। केमिकल फैक्ट्री में तो कई चीजों के नियमित निरीक्षण की जरूरत पड़ती है। ऐसे में मुमकिन है कि लॉकडाउन के दौरान नियमित निरीक्षण में बाधा आई हो या किसी अन्य स्तर पर लापरवाही हुई हो।
सवाल कई हैं, लेकिन औद्योगिक दुर्घटनाओं-आपदाओं के बारे में सर्वमान्य तथ्य है कि यदि लापरवाही न बरती जाए तो उनके बारे में पहले से अनुमान लगाया जा सकता है। लेकिन हालिया औद्योगिक हादसों से स्पष्ट हुआ है कि लापरवाही बरते जाने और सावधानी के नियम-कायदों का उचित ढंग से पालन नहीं करने के कारण ही यह नौबत आई। बॉयलर का ढांचा पुराना पड़ जाना, पाइपों में लीकेज की कोई समस्या पैदा हो जाना, प्लांट के भीतर कहीं निकासी का कोई वॉल्व बंद होने से बेतहाशा दबाव बन जाना या ज्यादा मात्रा में ईधन का प्रवाह हो जाने से विस्फोट हो जाना-ऐसी तमाम गड़बड़ियां हैं, जिनकी समय-समय पर जांच न हो तो दुर्घटना की आशंका रहती है। चूंकि इन गड़बड़ियों के काफी गंभीर नतीजे निकलते हैं, दर्जनों कर्मचारियों की जान जाने का खतरा बना रहता है, इसलिए प्राय: सभी सावधानियां बरती जाती हैं। यह भी हो सकता है कि महीनों बंद पड़े प्लांटों में क्षरण अथवा किसी अन्य कारण से मशीनरी में कोई दिक्कत पैदा हो गई हो या फिर कामकाज शुरू होने पर बीते दिनों के घाटे की भरपाई करने और मांग के मुताबिक सप्लाई सुनिश्चित करने की जल्दबाजी में फैक्ट्री संचालक हो सकता है कि मशीनरी में इस दौरान पैदा हुई समस्याओं की तरफ ध्यान न दे पा रहे हों। पूरे देश की फैक्ट्रियों को फौरन दुरुस्त करना होगा। घटनाओं की बारीकी से जांच किया जाना जरूरी है। दुर्घटनाओं के मद्देनजर देश के सभी कारखानों की सुरक्षा-व्यवस्था की समीक्षा हो।
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