मानव तस्करी : तोड़ा जा सकेगा जाल?

Last Updated 06 Aug 2020 12:04:13 AM IST

मानवता को शर्मसार कर देने वाली मानव तस्करी सभ्य समाज के माथे पर बदनुमा दाग है।


मानव तस्करी : तोड़ा जा सकेगा जाल?

भारत में मानव तस्करी को लेकर पिछले दिनों अमेरिकी विदेश मंत्रालय की रिपोर्ट ‘ट्रैफिकिंग इन पर्संस रिपोर्ट-2020’ में भारत को गत वर्ष की भांति टियर-2 श्रेणी में रखा गया। रिपोर्ट के मुताबिक सरकार ने 2019 में मानव तस्करी जैसी बुराई को मिटाने के लिए प्रयास तो किए लेकिन इसे रोकने से जुड़े न्यूनतम मानक हासिल नहीं किए जा सके। 
अमेरिकी विदेश मंत्रालय की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि माओवादी समूहों ने हथियार और आईईडी को संभालने के लिए छत्तीसगढ़, झारखंड इत्यादि में 12 वर्ष तक के कम उम्र बच्चों को जबरन भर्ती किया और मानव ढाल के तौर पर भी उनका इस्तेमाल किया गया। माओवादी समूहों से जुड़ीं महिलाओं और लड़कियों के साथ माओवादी शिविरों में यौन हिंसा की जाती थी। सरकार विरोधी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए जम्मू-कश्मीर में भी सशस्त्र समूह 14 वर्ष तक के कम उम्र किशोरों की लगातार भर्ती और उनका इस्तेमाल करते रहे हैं। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) समस्त भारत में मानव तस्करी पर शोध करा रहा है। एनएचआरसी की पहल पर किए गए अध्ययन में कुछ मानव तस्करों की केस स्टडी करने पर देखा गया कि वे किन परिस्थितियों और सबूतों के आधार पर निचली अदालतों से बच निकलते हैं।

उड़ीसा हाई कोर्ट ने तो गत दिनों मानव तस्करी के आरोप में गिरफ्तार एक व्यक्ति की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान अपने आदेश में बेहद सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि वेश्यावृत्ति के लिए मानव तस्करी नशीले पदाथरे की तस्करी से भी अधिक जघन्य अपराध है। न्यायमूर्ति एस के पाणिगृही ने अपने आदेश में कहा कि सरकार की सर्वव्यापी, आचारी, नैतिक और वेश्यावृत्ति विरोधी मुद्रा है लेकिन व्यवहार में कानून और उनके अमल के बीच व्यापक अंतर है, जिस कारण मानव तस्करी के मामलों में सजा की दर बेहद कम होती है। अदालत ने यह टिप्पणी कोलकाता से देह व्यापार के लिए लड़कियों की तस्करी के आरोप में पकड़े गए पंचानन पाधी नामक व्यक्ति की जमानत याचिका की सुनवाई के दौरान की। बहरहाल, भारत में मानव तस्करी की समस्या नासूर का रूप लेती जा रही है। दो साल पहले पुणो के मदरसे रूपी यतीमखाने का मामला सामने आया था, जहां से 36 ऐसे बच्चों को छुड़ाया गया था, जिन्हें बिहार-झारखंड से अच्छी तालीम देने के नाम पर लाया गया था। मदरसे में न केवल उनका यौन शोषण होता बल्कि मदरसा मानव तस्करी का अड्डा भी बना था। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के मुताबिक विभर में दो करोड़ से भी ज्यादा लोग मानव तस्करी से पीड़ित हैं, जिनमें से करीब 68 फीसदी को जबरन मजदूरी के काम में लगाया जाता है। करीब 26 फीसदी बच्चे और 55 फीसदी महिलाएं व लड़कियां तस्करी की शिकार होती हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो  के अनुसार विगत एक दशक में भारत में हुई मानव तस्करी में 76 फीसदी लड़कियां और महिलाएं हैं।
ड्रग्स और हथियारों की तस्करी के बाद मानव तस्करी को दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा संगठित अपराध माना गया है। संयुक्त राष्ट्र की परिभाषा के अनुसार किसी व्यक्ति को डराकर, बल प्रयोग कर या दोषपूर्ण तरीके से भर्ती, परिवहन अथवा शरण में रखने की गतिविधि तस्करी की श्रेणी में आती है। देह व्यापार से लेकर बंधुआ मजदूरी, जबरन विवाह, घरेलू चाकरी, अंग व्यापार तक के लिए दुनिया भर में महिलाओं, बच्चों और  पुरुषों को खरीदा-बेचा जाता है। आंकड़ों के मुताबिक, करीब 80 फीसदी मानव तस्करी जिस्मफरोशी के लिए होती है जबकि 20 फीसदी बंधुआ मजदूरी या अन्य प्रयोजनों के लिए। एनसीआरबी के अनुसार तस्करी के मामलों में भारत में मानव तस्करी दूसरा सबसे बड़ा अपराध है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश में हर आठ मिनट में एक बच्चा लापता हो जाता है। तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, प. बंगाल, महाराष्ट्र तथा छत्तीसगढ़ तो मानव तस्करी के गढ़ माने जाते हैं। मानव तस्करी के दर्ज होने वाले 70 फीसदी से अधिक मामले इन्हीं राज्यों के होते हैं। मानव तस्करी रोकने और पीड़ितों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए सरकार ऐसा ठोस विधेयक लाना चाहती है, जिससे इस जाल को तोड़ा जा सके।

योगेश कु. गोयल


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment