विमर्श : तुलसी, लोहिया और ओली के राम

Last Updated 06 Aug 2020 12:06:41 AM IST

केपी शर्मा ‘ओली’ नेपाल के प्रधानमंत्री हैं। उनका स्थान मार्क्‍सवादी लेनिनवादी आंदोलन एवं संगठन के अग्रणी नेताओं में है।


विमर्श : तुलसी, लोहिया और ओली के राम

पिछले दिनों उनकी ओर से दिए गए वक्तव्य की सभी तरफ काफी आलोचना हुई, जिसमें उन्होंने श्री राम के जन्म स्थान को लेकर विवादास्पद बयान दिया था। बयान का समय भी गलत था एवं मजमून भी। पांच अगस्त को अयोध्या में विशाल एवं भव्य राम मन्दिर के लिए भूमि पूजन का कार्यक्रम संपन्न हुआ। हिंदू-मुस्लिम धर्मगुरुओं के लंबे वाद-विवाद के बाद भी जन्म भूमि विवाद नहीं सुलझ पाया तो सुप्रीम कोर्ट और इससे पहले हाई कोर्ट में लंबी बहस एवं साक्ष्य उपलब्ध करने के उपरांत ही मन्दिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ। भारत की समन्यवादी सांस्कृतिक धरोहर के सम्मान हेतु एक मस्जिद के निर्माण को भी उचित स्थान देकर स्वीकार कर लिया गया।
ओली सनातनी न होकर नास्तिक हैं।  मार्क्‍सवाद का अध्ययन उन्हें सिखाता है कि धर्म अफीम जैसा नशा है, लेकिन वे राम के अस्तित्व को भी स्वीकार करते हैं और उनकी महिमा को भी। काठमांडू स्थित विशाल पशुपतिनाथ मन्दिर अपनी भव्यता और मान्यता के लिए विप्रसिद्ध धार्मिंक स्थान है  मार्क्‍सवादी आंदोलन से जुड़े अनेक नेता शिवरात्रि एवं महाशिवरात्रि के धार्मिंक आयोजन में शिरकत करते हैं। दशहरे का आयोजन नेपाल में भी उसी धार्मिंक भावना से किया जाता है, जैसे भारत के विभिन्न हिस्सों में भव्य शोभायात्रा से लेकर रावण दहन के कार्यक्रम होते हैं। इसीलिए प्रधानमंत्री ओली की ओर से भगवान श्री राम का जन्म एवं अस्तित्व को लेकर दिया गया वक्तव्य उनके बदले हुए वैचारिक रुख का प्रतीक है। 

केरल कम्युनिस्ट आंदोलन का गढ़ रहा है। पहली साम्यवादी सरकार ईएमएस नम्बूदरीपाद के नेतृत्व में 1957 में केरल में ही अस्तित्व में आई थी।  पिछले कई वर्षो से वहां के सांस्कृतिक, धार्मिंक कार्यक्रमों में आश्चर्यजनक ट्रेंड देखने को मिल रहा है।  केरल की सत्ताधारी माकपा के सांस्कृतिक संगठनों की ओर से ‘रामायण मेले’ का आयोजन किया जाना ऐसा ही प्रयास है।  ‘संस्कृत संगम संस्था’ की ओर से केरल के सभी 14 जिलों में यह आयोजन हो रहा है।  कार्यक्रम 32 दिनों तक चलेंगे। घर के सबसे बुजुर्ग व्यक्ति को इसकी कमान सौंपी जाती है, जो एक जलते दीप के सम्मुख प्रात:काल से ही रामायण के श्लोक पढ़ना प्रारंभ करते हैं। इसे बालखंड की संज्ञा दी गई है। समूचे माह को ‘रामायण महीने’ के रूप में मनाया जाता है। अंतिम दिन के कार्यक्रम को युद्धखंड के नाम से पुकारा जाता है। यहां मान्यता है कि इसी दिन रावण वध के बाद राम-लक्ष्मण और सीता अयोध्या लौटे थे। यह उत्तर भारत के दशहरा त्यौहार की तर्ज पर है। 
मलयालम के प्रसिद्ध कवि रामानुजम अनुथाजन को यहां के मलयालम पिता के नाम से जाना जाता है और वे ‘अध्यात्म रामायण’ के रचियता हैं। देश-विदेश में लगभग कई सौ प्रकार की रामायण का चलन अस्तित्व में है। यहां मान्यता है कि अत्यधिक वष्रा के कारण फसल बर्बाद होने और कई प्रकार के रोगों के होने की आशंका बनी रहती है। बांध भी कई बार टूट जाते हैं, इससे पल्रय जैसे मंजर दिखते हैं।  सभी लोग 32 दिनों तक घर पर ही विश्राम कर रामायण पाठ कर बीमारी और बर्बादी से मुक्ति हेतु प्रार्थना करते हैं। इस ग्रंथ को वहां के सबसे प्राचीन ग्रंथ में शुमार किया गया है। राजनीति के कई विद्वान टिप्पणीकार ऐसा भी मानते हैं कि समूचे विश्व में हो रहे बदलावों को यहां के साम्यवादी स्वीकार नहीं कर पा रहे थे, लेकिन समूचे पूर्वी यूरोप के साम्यवादी देश, चर्च और मस्जिदों की चकाचौंध से हतप्रभ हैं, पोलैंड में साम्यवादी सरकार के तख्ता पलटने में कामयाब रहे मजदूर नेता ला वालेसा ने राजधानी वारसा में पोप का प्रथम कार्यक्रम आयोजित कर समूचे धार्मिंक ढांचे को चुनौती देकर ईसाई धर्म की पुनर्स्थापना की। उज्बेकिस्तान से कजाकिस्तान तक अब मस्जिदों की रौनक चकाचौध करने वाली है। 
पांच अगस्त को अयोध्या में भूमि पूजन को लेकर भव्य आयोजन शुरू हुआ। समाजवादी आंदोलन के जनक डॉ. राममनोहर लोहिया ने राम और रामायण मेले के आयोजन को लेकर सर्वाधिक लेख लिखे हैं। डॉ. लोहिया सभी भाषाओं में उपलब्ध रामायण के प्रशंसक हैं पर उनका मन तुलसी की रामायण में रमा हुआ है। तुलसी की रामायण में आनंद के साथ-साथ धर्म भी जुड़ा हुआ है। तुलसी की कविता से निकलती है अनगिनत रोज की उक्तियां और कहावतें जो आदमी को टिकाती हैं और सीधे रखती हैं। तुलसी एक रक्षक कवि हैं। जब चारों तरफ से अभेद हमले हों तो बचाना, थामना, टेकी देना शायद ही तुलसी से बढ़कर कोई कर सकता है। बाल्मीकि एवं दूसरी रामायण में प्रेम को इतनी बड़ी जगह नहीं मिली, जितनी कि तुलसी की रामायण में। प्राय: सभी अच्छे पात्र बहुत ज्यादा अश्रुलोचन हैं। राम की आंखों में हमेशा आंसू छलकते हैं। शांति और करु णा एक-दूसरे के बहुत नजदीक हैं। मनुष्य जब-जब गद्गद् होता है, उसमें करु णा जागती है और विस्तार भी। 
अपने प्रसिद्ध लेख ‘राम, कृष्ण और शिव’ के समापन में डॉ. लोहिया लिखते हैं, ‘ऐ भारत माता हमें शिव का मस्तिष्क दो, कृष्ण का हृदय दो तथा राम का कर्म और वचन दो’।  राम की पूर्णता मर्यादित व्यक्तित्व में है। राम धरती पर त्रेता में आए जब धर्म का रूप इतना अधिक नष्ट नहीं हुआ था। राम का जीवन बिना हड़पे हुए फलने की एक कहानी है। उनका निर्वासन देश को एक शक्ति केंद्र के अंदर बांधने का मौका था। इसके पहले प्रभुत्व के दो प्रतिस्पर्धी केंद्र थे, अयोध्या और लंका  रावण वध के बाद वे साम्राज्यवादी दृष्टि न अपना कर वहां के राज्य का संचालन भाई विभीषण को सौंप कर अपनी मर्यादा की श्रेष्ठता कायम रखते हैं।  राम हिंदुस्तान की उत्तर-दक्षिण एकता के देवता थे। राम आनंद सागर हैं, हिलोरों वाला नहीं, विश्राम जिस तरह उत्तराखंड के निर्मल निर्झर से शरीर शांत होता है और फलस्वरूप थोड़ा-थोड़ा मन भी उसी तरह राम के निर्मल निर्झर से मन धुलता है। पूरी रामायण में शांत रस है जितना और कही नहीं। तुलसी और रामायण इस शांत रस की सीमा हैं। तुलसी की रामायण, लोहिया के मर्यादित राम और ओली की राम के अस्तित्व की स्वीकारोक्ति, तीनों अद्भुत हैं।      
        (लेखक ज.द.(यू) के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं)

केसी त्यागी


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