सरोकार : मास्क लगाना जरूरी तो बुर्के से आपत्ति क्यों?

Last Updated 26 Jul 2020 01:26:05 AM IST

यूके में जल्द ही यह कानून लागू होने वाला है कि कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए दुकानों में मास्क लगाए जाएं।


सरोकार : मास्क लगाना जरूरी तो बुर्के से आपत्ति क्यों?

वहां जून में पब्लिक ट्रांसपोर्ट में फेस कवरिंग को अनिवार्य किया गया था। बेशक, सार्वजनिक स्थानों पर चेहरे को ढंकने के कई स्वास्थ्य लाभ हैं और इस बात के प्रमाण भी हैं। यह बात और है कि पश्चिमी देशों में दशकों से बुर्का या हिजाब की आलोचना होती रही है। 9/11 के बाद से पश्चिमी देशों में इस्लाम धर्म और मुसलमानों की जीवन शैली को निशाना बनाया जाता रहा है। बुर्का, हिजाब और नकाब वगैरह को सार्वजनिक स्थलों पर पहनने पर कई देशों में पाबंदी भी लगाई गई है।
यूके के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने खुद भी ऐसे परिधानों पर विरोध जताया है। यह भी कहा है कि ये सब पितृसत्ता की निशानियां हैं। 2018 में जब वह विदेश मंत्री थे, तब उन्होंने समाचार पत्र टेलीग्राफ के एक स्तंभ में लिखा था, बुर्का पहनने वाली औरतें लेटरबॉक्स और बैंक डकैतों जैसी लगती हैं। बाकी बहुत से लोग जॉनसन जैसा ही सोचते हैं। 2016 के ब्रेजिट जनमत संग्रह में आधे से ज्यादा ब्रिटिश लोगों ने बुर्का बैन का समर्थन किया था। 2011 में फ्रांस में फेस कवरिंग पर पाबंदी लगाई गई और ऐसा करने वाला वह पहला देश बना। यह कितना बड़ा पाखंड है कि कोरोना वायरस के चलते इसी महीने फ्रांस में फेस कवरिंग को अनिवार्य किया गया है। वहां अगस्त से सभी इनडोर सार्वजनिक स्थलों में फेस मास्क्स तो अनिवार्य हो जाएंगे पर बुर्के पर अब भी पाबंदी रहेगी।

हां, यूके में धार्मिंक परिधानों को फेस कवरिंग के तौर पर इस्तेमाल करने पर पाबंदी नहीं होगी। क्या बुर्का आपकी आजादी छीनता है-इसका जवाब देने का हक सिर्फ  उन औरतों को है, जो बुर्का पहनती हैं। यूं सार्वजनिक स्थानों पर कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए फेस मास्क फायदेमंद होता है, इसके सबूत हैं। और शोध यह भी बताते हैं कि नकाब सहित दूसरे फेस कवरिंग से आपसी संवाद में कोई बाधा नहीं आती, लेकिन बहुत से लोग बुर्का और हिजाब को औरतों की आजादी से जोड़कर देखते हैं और कहते हैं कि चेहरा ढंकना हमें कमजोर बनाता है। इसीलिए लोग फेस मास्क का भी विरोध कर रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया की एक स्टडी में यह प्रदर्शित हुआ है कि पुरु षों के फेस मास्क लगाने की संभावना कम है। इसका कारण यह है कि बहुत से पुरु ष यह मानते हैं कि यह ‘कमजोरी की निशानी है’।
इसी बीच फेमिनिस्ट यह आंदोलन कर रही हैं कि मुसलमान औरतों को कोरोना के दौर में फेस कवरिंग के अधिकार की मांग करनी चाहिए। इसमें कोई शक नहीं कि औरतों को वे जो चाहें, पहनने का हक होना चाहिए। हमारा देश भी इन विरोधों से अछूता नहीं। पिछले साल फिरोजाबाद के एक कॉलेज में लड़कियों को बुर्का पहनकर आने से रोका गया था। फिर रांची के एक कॉलेज में टॉपर को ग्रैजुएशन सेरेमनी में सिर्फ  इसलिए डिग्री नहीं दी गई क्योंकि वह बुर्का पहनकर आई थी। इस तरह हम कपड़े के एक टुकड़े को रिग्रेसिव मान लेते हैं। जिस तरह सलवार कमीज पहनने वालों को जबरन शॉर्ट स्कर्ट नहीं पहनाया जा सकता, उसी तरह बुर्का पहनने वालों को जबरन उसे उतारने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए। जिस तरह किसी को जबरन बुर्का या घूंघट नहीं पहनाया जा सकता, उसी तरह जबरन उन्हें उतारने के लिए बाध्य भी नहीं किया जा सकता। यह बात और है कि कोरोना के दौर में बुर्के का विरोध करने वाले फेस मास्क की अहमियत समझा रहे हैं।

माशा


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