वैश्विकी : रूस की कूटनीतिक परीक्षा

Last Updated 28 Jun 2020 12:15:02 AM IST

भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में गत दिनों हुए सैनिक संघर्ष और लगातार जारी तनाव को लेकर दुनिया की महाशक्तियां सक्रिय हो गई हैं।


वैश्विकी : रूस की कूटनीतिक परीक्षा

रूस जहां परदे के पीछे रहकर अपने दोनों रणनीतिक साझेदार देशों के बीच तनाव कम करने की कोशिश कर रहा है, वहीं अमेरिका ने चीन के विरुद्ध आक्रामक भाषा का प्रयोग किया है। अमेरिका और रूस के इस रवैये के पीछे उनकी अपनी रणनीतिक सोच है। रूस अमेरिका के नेतृत्व वाली वर्तमान विश्व व्यवस्था को चीन और भारत के सहयोग से बदलना चाहता है। दूसरी ओर अमेरिका  एशिया-प्रशांत (इंडो पैसेफिक) नीति के जरिये चीन की घेराबंदी करने की कोशिश में है। इस परिदृश्य में भारत इन दो परस्पर विरोधी रणनीतियों के साथ पूरी तरह जुड़ने के लिए तैयार नहीं है। एक ओर भारत रूस की तरह ही बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था का पक्षधर है, वहीं वह विधि के शासन और लोकतांत्रिक प्रणाली में विश्वास करने वाले देशों अमेरिका, जापान और आस्ट्रेलिया से जुड़ाव महसूस करता है।
अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने हाल में यूरोपीय संघ के नेताओं से संवाद के दौरान चीन से भारत और दक्षिण पूर्वी एशिया के अन्य देशों के लिए उत्पन्न खतरों का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि अमेरिका सुरक्षा स्थिति का मूल्यांकन करने के आधार पर जर्मनी से अपने सैनिकों की संख्या करेगा। इन सैनिकों को उन क्षेत्रों में तैनात किया जाएगा जहां चीन की ओर से खतरा महसूस किया जा रहा है। अमेरिकी विदेश मंत्री पहले विदेशी नेता हैं, जिन्होंने पूर्वी लद्दाख के हालात के संबंध में भारत को चीन से खतरे का उल्लेख किया है। उन्होंने जापान, वियतनाम, मलयेशिया और दक्षिणी चीन सागर में चीन की ओर से खतरे की चर्चा की। आने वाले दिनों में अमेरिका भारत प्रशांत नीति के तहत इस पूरे क्षेत्र में नौसेना सहित सैन्य शक्ति में इजाफा करेगा। जाहिर है कि वह अपने इस अभियान में भारत को सक्रिय रूप से शामिल करने की कोशिश करेगा। अमेरिका के विदेश नीति और सुरक्षा मामलों के जानकार पहले से ही अनुमान लगा रहे हैं कि लद्दाख में चीन से उत्पन्न खतरे के मद्देनजर भारत अमेरिका के साथ नजदीकी रूप से जुड़ना चाहेगा।

इस विवाद में रूस की भूमिका अमेरिका से एकदम अलग है। वह भारत-प्रशांत क्षेत्र से अधिक महत्त्व अपनी यूरोप-एशिया (यूरेशिया) को देता है। यूरोशिया क्षेत्र में अपनी राजनीतिक, आर्थिक और सैनिक शक्ति के जरिये वह विश्व महाशक्ति का अपना पुराना दरजा हासिल करने की कोशिश में है। भारत और चीन दोनों ब्लादीमीर पुतिन के यूरेशिया नीति के अनिवार्य अंग हैं। भारत और चीन के बीच संघर्ष की स्थिति यूरेशिया में रूस की रणनीति के लिए बड़ा झटका होगी। वैकल्पिक विश्व व्यवस्था के लिए बनाए गए तंत्र जैसे रूस-भारत-चीन गुट (रिक, ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठन) के भी कमजोर होने की आशंका है।
यह रूस की पहल ही थी कि भारत संघर्ष और तनाव के बीच की स्थिति में भी रिक देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक में शामिल हुआ। वीडिया कांफ्रेंसिंग के जरिये हुई इस बैठक में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने चीन को नियम आधारित विश्व व्यवस्था की याद दिलाई। उन्होंने सीमा पर चीन के आक्रामक रवैये का उल्लेख करने के बजाय चीन को डॉ. द्वारका नाथ कोटनीस की याद दिलाई। डॉ. कोटनीस ने 1938 में चीन-जापान युद्ध के दौरान चीन में महत्त्वपूर्ण चिकित्सा एवं सेवा कार्य किया था। भारत-चीन संघर्ष में रूस की भूमिका इसलिए भी निर्णायक है कि वह इन दोनों देशों को आधुनिक सैनिक साजो-सामान की आपूर्ति करता है।
गौर करने की बात यह है कि रूस ने चीन को मिसाइल रक्षा प्रणाली एस-400 की आपूर्ति की है। साथ ही इससे अधिक क्षमता वाली यह प्रणाली वह भारत को भी सौंपने वाला है। बदलते हुए इस वैश्विक परिदृश्य में चीन अमेरिका के निशाने पर है। अब तक अमेरिका का दबाव झेल रहा रूस अपेक्षाकृत सहज स्थिति में आ गया है। रूस के सामने अब ऐसी कोई रणनीतिक बाध्यता नहीं है कि वह एक जूनियर पार्टनर के रूप में चीन के साथ गठजोड़ कायम रखे। वास्तव में दूरगामी दृष्टि से चीन यूरेशिया क्षेत्र में रुस का प्रतिद्वंद्वी बन सकता है। इसलिए भी रूस के लिए यह जरूरी है कि वह भारत से अपनी परंपरागत दोस्ती कायम ही न रखे बल्कि विशेष रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत बनाए।

डॉ. दिलीप चौबे


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment