बतंगड़ बेतुक : चिंग ची से झल्लन की मेजवार्ता
झल्लन का दिमाग उबल रहा था, बस फट नहीं रहा था। वह दम लगा रहा था मगर उसका गुस्सा घट नहीं रहा था। इस चू चिंग ची को कैसे निपटाया जाये, आखिर इसे कैसे सबक सिखाया जाये।
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वह जान रहा था कि वह लट्ठ घुमाएगा तो चिंग ची का तो कुछ नहीं बिगड़ेगा बल्कि अपने हाथ-पैर तुड़वाएगा। काश उसके पास ऐसे बम होते जो उसके इशारे पे उड़ते और चिंग ची के घर पर जा गिरते। ससुरा कैसा पड़ोसी है, न किसी को मान दे न सम्मान दे, बस जब चाहे तब जंग ठान दे। झल्लन ने अपने दिमाग के खटाखट बदन दबाए कि कोई फटाफट हल निकलकर आये, पर न उसे कुछ ठोस सूझा न कोई कारगर विचार सामने आये। फिर अचानक दिमाग के किसी कोने में घंटी बजी और झल्लन ने सोचा कि क्यों न चुंग ची से सीधे मेजवार्ता की जाये, उसे पहले तो प्यार से समझाया जाये और न माने तो कड़ी चेतावनी देकर धमकाया जाये।
झल्लन जब चुंग ची के कमरे में घुसा तो देखा कि वह खर्राटे मारकर सो रहा था, लगा जैसे उसके आस-पास कुछ भी नहीं हो रहा था। चुंग ची की इस बेफ्रिकी ने झल्लन के दिमाग को बौखला डाला और उसने मोटी चादर हटाकर चुंग ची को झकझोर डाला, बोला, ‘उधर हम तेरी वजह से हलकान हो रहे हैं, न ढंग से खा-पी रहे हैं, न चैन से सो रहे हैं और इधर तू खर्राटे भर रहा है, तुझे शर्म नहीं आती कि तू क्या कर रहा है।’ चुंग ची ने आंखें मलीं, खोलीं फिर झल्लन की ओर देखकर न-मुस्कुराया-सा मुस्कुराया, अपना हाथ भी उसने न-बढ़ाया-सा बढ़ाया और बोला, ‘काहे झल्लन भइया, काहे सुबह-सुबह यहां घुस आये हो, कुछ नाता-पानी किया है या खाली पेट चले आये हो?’ झल्लन बोला, ‘देख चुंग ची, तूने भले ही हमारी प्रोपर्टी हड़प ली हो पर हम तुझसे डरते नहीं हैं और तू ये भी मत समझना कि हम चुपचाप बैठ जाते हैं और बदले में कुछ करते नहीं हैं। जब हम अपनी पर आएंगे तो हम तुझे इधर से चबाएंगे, उधर से खा जाएंगे। देख, हमारा मीडिया चीख-चीखकर तुझे तेरी औकात बता रहा है, तुझे बार-बार चेता रहा है मगर तू है कि मान नहीं रहा है, आगे हमारा मीडिया तेरा क्या हाल करेगा ये तू अभी जान नहीं रहा है। इससे पहले कि हमारे एंकर अपनी बातों के बम-गोले दाग-दागकर तुझे नेस्तनाबूत कर दें, तुझे समझ जाना चाहिए और हमारे साथ वार्ता की मेज पर बैठ जाना चाहिए।’
चुंग ची ने अपने पास पड़ी मेज पर नजर टिकाई, फिर बाएं हाथ से मेज अपनी तरफ खिसकाई, फिर अर्दली के लिए घंटी दबाई और अपने लिए एक जग गरमा-गरम चाय मंगवाई। चाय आ गयी तो न उसने झल्लन की तरफ देखा, न उसे चाय पूछने की कर्टसी दिखाई, अपना कप चाय से भरा और एक लंबी चुस्की लगाई, फिर बोला, ‘मेज हमारे बीच में है तो बताओ झल्लन भइया, क्या बात करनी हैं, क्यों करनी है, कैसी करनी है और कितनी करनी है?’ झल्लन बोला, ‘यार, तू कैसा आदमी है कि जरा सा शिष्टाचार तक नहीं निभाता है, पड़ोसी होने का धर्म नहीं निभाता है, बात-बात पर धौंसपट्टी पर उतर आता है, हमें चाय के लिए पूछे न पूछे पर हमारे चौके में घुस आता है।’ चुंग ची बोला, ‘हमारे-तुम्हारे नजरिए में यही तो फर्क है। तुम कहते हो हमारे चौके में घुस आता है पर हमें तो अड़ोस-पड़ोस का हर चौका अपना नजर आता है। हम तुम्हारी तरह अपने-पराये का भ्रम नहीं पालते हैं, हमें जो जगह अपने मतलब की लगती है वहीं डेरा जा डालते हैं।’ झल्लन बोला, ‘तेरी आंखों में कुछ तो शील-संकोच होना चाहिए, तेरे मन में नीति-मर्यादाओं का कुछ तो बोध होना चाहिए। हम दिवाली पर पटाखे तेरे चलाते हैं, होली पे पिचकारी तेरे यहां से मंगवाते हैं, तेरे इजारेदारों को न्यौता दे-देकर बुलाते हैं, अपने यहां के बड़े-बड़े ठेके तुझे दिलवाते हैं। हम इतना कुछ करते हैं फिर भी तू हमें आंखें दिखाता है, तेरे मन में जरा भी मलाल नहीं आता है।’
चुंग ची बोला, ‘कामरेड झल्लन, पहली बात तो ये कि तुम ये सब करते हो तो हम पर अहसान नहीं करते हो, तुम अपने आप कुछ बना नहीं सकते इसलिए हमारा माल मंगवाकर अपनी जरूरतें पूरी करते हो।’ झल्लन बोला, ‘चलो यही सही, तेरे काम तो आते हैं इसलिए तुझसे उम्मीद लगाते हैं। और कुछ नहीं तो कम-से-कम पड़ोस धर्म का तो तुझे निर्वाह करना चाहिए, थोड़ी-बहुत नीति-मर्यादा, शांति-सद्भाव का भी ध्यान रखना चाहिए।’ चुंग ची ने चाय का जग खाली कर एक तरफ सरकाया, फिर झल्लन की आंख में आंख डालकर मुस्कुराया, ‘क्या कामरेड झल्लन, तुम जहां हो वहीं रहोगे, जरा भी आगे नहीं बढ़ोगे। ये पड़ोस धर्म शांति-सद्भाव जैसी चीजें केवल तुम जैसों के यहां ही दिखती हैं, हमारे यहां इनका बाजार बंद हो गया है, ये हमारे यहां नहीं मिलती हैं।’
झल्लन का मन हुआ, कि उसे तमीज का पाठ पढ़ा दे और मेज से उठने से पहले उसके गाल पर दो-चार थप्पड़ उड़ा दे। उसकी भुजाएं जैसे कुछ करने पर तुल गयीं पर उसी वक्त कमबख्त आंखें खुल गयीं।
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