सरोकार : कोरोना काल में महिलाएं नहीं चाहतीं बच्चे
कोरोना काल में महिलाएं नहीं चाहतीं बच्चे, पर रास्ता क्या है। कोरोना काल की शुरुआत में लोग ऐसा अनुमान लगा रहे थे कि अब बेबी बूम आने वाला है।
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मतलब, एक साल में बड़ी संख्या में बच्चों का जन्म होगा, लेकिन अमेरिका में इसके एकदम विपरीत प्रवृत्ति देखने को मिल रही है। वहां बहुत सी महिलाएं कोविड-19 महामारी के चलते गर्भधारण नहीं करना चाहतीं और कम बच्चे चाहती हैं।
रीप्रोडक्टिव राइट्स के लिए काम करने वाले पॉलिसी इंस्टीट्यूट, गटमाकर इंस्टीट्यट के एक नये अध्यय में यह कहा गया है। अब उन्हें प्रजनन स्वास्थ्य से संबंधित सेवाएं मिलेंगी या नहीं-यह दूसरा सवाल है। इंस्टीट्यूट ने अपने इस अध्ययन में यह भी कहा है कि महिलाओं को इन दिनों गर्भनिरोधक भी बहुत मुश्किल से मिल रहे हैं। दरअसल, कुछ ही महीनों में सब कुछ बदल गया है। कोविड-19 के संकट ने लोगों को अप्रत्याशित रूप से आर्थिक और सामाजिक स्तर पर प्रभावित किया है। इसका असर औरतों के फैसलों पर भी पड़ा है-जैसे क्या वे गर्भवती होना चाहती हैं। उन्हें कितने बच्चे चाहिए और उन्हें किन गर्भनिरोधकों का इस्तेमाल करना है। चूंकि महिलाएं बेरोजगार हो रही हैं, इसलिए उनके फैसले भी कमजोर पड़ रहे हैं।
गटमाकर इंस्टीट्यूट ने मई के पहले महीने में लगभग 2,000 महिलाओं और सिसजेंडर लोगों के बीच इंटरनेट सर्वे किया था। इस अध्ययन में हर तीसरी महिला ने कहा था कि वह महामारी के कारण प्रेग्नेंसी को डिले करना चाहती है और कम बच्चे चाहती है। अध्ययन में खास तौर से विमेन ऑफ कलर (अमेरिकी ेत औरतों के अतिरिक्त दूसरी औरतों), एजीबीटीक्यू प्लस महिलाओं और निम्न आय वर्ग वाली महिलाओं को लेकर चिंता जताई गई है। अध्ययन में पता चला है कि 44 फीसद अेत महिलाएं, 48 फीसद लैटिन अमेरिकी महिलाएं तथा 46 फीसद क्वीर महिलाएं फिलहाल बच्चे के बारे में नहीं सोचना चाहतीं। अध्ययन में शामिल आधी से अधिक महिलाओं को गर्भनिरोध के साधन आसानी से उपलब्ध नहीं हो रहे। एक तिहाई से अधिक महिलाओं की आर्थिक स्थिति इतनी खस्ता है कि वे गर्भनिरोधकों की कीमत नहीं चुका सकतीं। तिस पर टेक्सास, वेस्ट वर्जिनिया, अलबामा जैसे आठ राज्यों ने महामारी के दौरान गर्भपात कराने पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश की। टेक्सास में महिलाओं के लिए गर्भपात कराना मुश्किल था।
इसको लेकर अदालती लड़ाई भी लड़ी गई। क्या अमेरिका जैसी स्थिति भारत में नहीं आई होगी? बेशक, इस पर कोई सर्वेक्षण नहीं किया गया लेकिन अपने यहां भी महिलाओं की स्थिति खराब हुई है। भारत में भी ग्रामीण क्षेत्रों में आने वाले महीनों में बड़ी संख्या में बच्चों के जन्म लेने की उम्मीद है, खास तौर से अधिक जनसंख्या वाले और उच्च प्रजनन दर वाले राज्यों में। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में कुल प्रजनन दर 2005-06 में 2.7 से गिरकर 2015-16 में 2.2 हो गई है। लेकिन जिन महिलाओं को गर्भनिरोध के आधुनिक साधन नहीं मिल पाते, ऐसी महिलाओं की दर अब भी 20.4 फीसद है, जोकि 5 करोड़ से अधिक हैं। ऐसी महिलाओं में गलत समय पर गर्भधारण या अवांछित गर्भधारण आम बात है। कोरोना काल में इसे रोकने के लिए अलग तरह के प्रयास करने पड़ेंगे। पर इसके लिए यह भी जरूरी है कि महिलाओं की जरूरतों को समझा और उनकी समस्याओं के समाधान निकाले जाएं।
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