सर्वदलीय बैठक : दिया एकजुटता का संदेश
किसी भी लोकतांत्रिक देश में फैसला तो सरकार ही करती है, लेकिन ऐसे समय में पूरे देश को विश्वास में लेना और एकजुट करना आवश्यक होता है।
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अगर देश एकजुट है तो हमारे मित्र और हमसे सहानुभूति रखने वाले देश भी मुखर होकर आगे आते हैं। इस मायने में चीन के मामले पर संपन्न सर्वदलीय बैठक निस्संदेह, महत्त्वपूर्ण मानी जाएगी। हालांकि भारत ऐसा देश है जहां किसी मुद्दे पर सर्वसम्मति कायम करना अब कठिन हो गया है। सरकार से प्रश्न करने तथा जानकारी मांगने में कोई समस्या नहीं है। यह होना ही चाहिए, लेकिन कुछ पार्टियां अपने बयानों से चीन की बजाय अपनी ही सरकार और सेना को कठघरे में खड़ा करने की जो नादानी कर रहीं हैं वो निराश करता है। बावजूद दूसरी ओर यह तथ्य निश्चित रूप से हमें राहत देता है कि सर्वदलीय बैठक में ज्यादातर दलों ने न केवल अपने बयानों में संयम बरता, बल्कि सर्वदलीय बैठक में अनावश्यक प्रश्न उठाने वाले नेताओं को भी सीख दी।
सच कहा जाए तो सर्वदलीय बैठक इस मायने में एक मील का पत्थर माना जाएगा क्योंकि राजनीतिक दलों के नेताओं ने आपसी मतभेद भुलाकर खुलकर एकजुट होने का संदेश दिया। बैठक में शामिल 20 दलों में तीन दलों कांग्रेस, माकपा एवं भाकपा को छोड़ दें तो किसी ने एक शब्द नकारात्मक नहीं बोला। माकपा एवं भाकपा ने चीन की निंदा की जगह सरकार को ही आगाह किया कि अमेरिका की कोशिश हमें अपने पाले में लाना है, जिसमें फंसना नहीं है।
विडम्बना देखिए कि जिस चीन ने स्वयं पंचशील को 1962 में सैन्य आक्रमण के बूट से रौंद दिया उसकी भी चर्चा की, लेकिन इससे कोई फर्क इसलिए नहीं पड़ा क्योंकि प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री, गृहमंत्री एवं विदेश मंत्री ने अवश्य शांति से इन्हें सुना, दूसरे नेताओं ने ही सीख दी कि इस तरह की बात नहीं की जानी चाहिए। ऐसी बैठकों में मूल चार स्तरों की बातें होतीं हैं। सबसे पहले सरकार तथ्यों के साथ पूरी घटना की सच्चाई से नेताओं को अवगत कराती है। दूसरे, सरकार ने क्या-क्या किया और क्या करने की सोच रही है यह बताती है। तीसरे, राजनीतिक दलों को प्रश्न पूछने और राय देने का पूरा मौका दिया जाता है। और चौथे, सबकी सुनने के बाद प्रधानमंत्री या जो भी मंत्री बैठक की अध्यक्षता करते हैं वे अपनी बातों में सारे सुझावों और प्रश्नों को समाहित करते या उनमें से अवांछितों की अनदेखी करते हुए सबको आश्वस्त करते हैं। मामला देश की सीमा तथा जवानों की आहूति का था इसलिए स्वाभाविक ही सबसे पहले बैठक में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने गलवान घाटी में जो कुछ हुआ उसका पूरा विवरण दिया। वहां भारत और चीन किन स्थितियों में हैं, हमारा रक्षा प्रबंधन क्या है, कैसा है आदि से अवगत कराया। विदेश मंत्री ने चीन सहित भारत की सारी कूटनीतिक गतिविधियों से अवगत कराया। साथ ही पूरी स्थिति पर एक विस्तृत प्रेजेंटेशन भी दिया गया।
अंत में प्रधानमंत्री ने जो कुछ कहा उसे पूरे देश ने सुना। एकाध पार्टियां भले अब भी अवांछित बयानबाजी करें, सर्वदलीय बैठक का वातावरण बिल्कुल अलग था। इतनी जिम्मेवारी से नेतागण बर्ताव करेंगे, इसकी उम्मीद कम ही लोगों को रही होगी। जो ममता बनर्जी सरकार पर हमला करने का कोई अवसर नहीं छोड़ती उनके वक्तव्य पर नजर डालिए-‘सर्वदलीय बैठक देश के लिए अच्छा संदेश है। इससे यह जाहिर होता है कि हम अपने जवानों के साथ हैं और एक हैं। तृणमूल मजबूती से सरकार के साथ खड़ी है। दूरसंचार रेलवे और एविएशन में चीन को दखल नहीं देने देंगे। हमें कुछ समस्याएं आएंगी, पर हम चीनियों को नहीं घुसने देंगे। चीन में कोई लोकतंत्र नहीं है। वे वह कर सकते हैं, जैसा महसूस करते हैं। दूसरी तरफ हम सबको साथ मिलकर काम करना है। भारत जीतेगा, चीन हारेगा। एकता से बात करें, एकता की बात करें, एकता से ही काम करें।’ क्या हम कल्पना कर सकते थे कि ममता का ऐसा तेवर हो सकता था? यह एक उदाहरण हमें बताता है कि हम चाहे राजनीतिक दलों की जितनी आलोचना करें, राष्ट्रीय संकट या चुनौतियों के अवसर पर वे पूरी जिम्मेवारी का परिचय देंगे। शिवेसना भाजपा के खिलाफ पिछले कुछ समय से कैसा तेवर अपनाती है यह छिपा नहीं है।
शिवसेना अध्यक्ष और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने एक प्रश्न सरकार पर नहीं उठाए। उन्होंने कहा कि भारत शांति चाहता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम कमजोर हैं। भारत मजबूत है, मजबूर नहीं। राकांपा के शरद पवार विपक्ष के सबसे अनुभवी नेताओं में है। उन्होंने अनावश्यक बयानबाजी करने वाले नेताओं को सीख देते हुए कहा कि हमें इस संवेदनशील मुद्दे का सम्मान करना चाहिए। सैनिक हथियार ले गए थे या फिर नहीं, यह फैसला अंतरराष्ट्रीय समझौतों के तहत किया गया है। वे रक्षा मंत्री रहे हैं। उन्हें चीन के साथ संबंधों का सच मालूम है। यहां सारे नेताओं के बयानों को उद्धृत करना संभव नहीं है। ये उदाहरण पर्याप्त हैं कि सर्वदलीय बैठक का पूरा माहौल कैसा रहा। केवल राजग के साथी नीतीश कुमार, अन्नाद्रमुक, अकाली दल और पूर्वोत्तर के नेता ही नहीं, तेलांगना के मुख्यमंत्री चन्द्रशेखर राव, आंध्र प्रदेश के जगनमोहन रेड्डी, समाजवादी पार्टी के रामगोपाल यादव, डीएमके स्टालिन..सभी ने चीन के विरु द्ध सरकार पर पूरा विश्वास होने की बात कहते हुए साफ कहा कि हम बिल्कुल एकजुट हैं और रहेंगे। इस तरह सर्वदलीय बैठक से निकली एकजुटता और चीन से हर स्तर पर निपटने के संकल्प ने देश का माहौल ज्यादा सकारात्मक बनाया है।
प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में यह कहकर कि सेना को सीमा पर चीन से निपटने की पूरी छूट है, हमारे जवान चीनी सैनिकों को टोकते हैं, रोकते हैं और यह होता रहेगा, जिस तरह की आधारभूत संरचना हमने उन क्षेत्रों में निर्मिंत किया है और जो बची हुई है उसे हर हाल में पूरा करेंगे..चीन को सीधा संदेश दिया है कि भारत उनका हर स्तर पर सामना करने के लिए तैयार है। दुनिया को भी संदेश चला गया है कि भारत अब एकजुट होकर चीन के साथ सैन्य, कूटनीतिक और आर्थिक मोच्रे पर निपटने के लिए खड़ा हो चुका है। साथ ही देश को भी आश्वासन मिला है कि एक इंच भूमि और एक भी पोस्ट न चीन के हाथ में गया है न जाएगा।
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