बतंगड़ बेतुक : हवन कराइए चीन को भगाइए

Last Updated 21 Jun 2020 12:35:58 AM IST

झल्लन आया, न हंसा न मुस्कुराया। हमारे अभिभावन में उसने एक हाथ उठाकर तुरंत नीचे गिरा लिया, सर झुका लिया और मुंह लटका लिया।


बतंगड़ बेतुक : हवन कराइए चीन को भगाइए

हमने कहा, ‘काहे झल्लन, अब क्या नया हो गया, अब तो हम कोरोना के साथ रहना-जीना सीख रहे हैं, कोरोना पर रोना-धोना तो पूरा हो गया।’ झल्लन बोला, ‘ददाजू, अब हम कोरोना पर नहीं उसे पैदा करने वाले उसके बाप पर रो रहे हैं, कोरोना से ज्यादा कोरोना के बाप पर दुखी हो रहे हैं। सच कहें ददाजू, बहुत शर्मिदगी हो रही है, अपमान से हमारी गर्दन झुकी जा रही है, लगता है जैसे सारी हिम्मत चुकी जा रही है।’ हमने कहा, ‘तू कोरोना के किस बाप की बात कर रहा है और उसने ऐसा क्या कर दिया है जो तुझे इतना निराशा से भर दिया है?’ झल्लन बोला, ‘हम किसकी बात कर रहे हैं यह आप भी अच्छी तरह समझ रहे हैं पर हमसे सवाल करने के लिए सवाल कर रहे हैं। पहले उसने कोरोना अपने यहां पैदा किया और फिर हमारे यहां पहुंचा दिया, हजारों को बेमौत मरवा दिया। और अब देखिए, उसने अपने सैनिक हमारी सीमा में घुसवा दिये और कितने सैनिकों का कत्ल करवा दिया। और देखिए, हम न तो उसके भिजवाए कोरोना का कुछ कर पा रहे हैं और न हमारी सीमा में घुस आये उसके सैनिकों का कुछ कर पा रहे हैं। हमारी इस कायरता पर दुनियाभर में किरकिरी हो रही है, बस इसी बात को लेकर हमें शर्मिदगी हो रही है।’

हमने कहा, ‘झल्लन, अगर तू ऐसी छोटी-छोटी बातों पर शर्मिदा होगा तो ताउम्र शर्मिदा ही होता रहेगा, न अपने किसी काम का रहेगा न किसी और के काम का रहेगा। हमारी मान जब भी ऐसी कोई शर्मिदगी परेशान करे तो थोड़ा बेशर्म हो जाया कर और दिमाग के दरवाजे बंद करके लंबी तानकर सो जाया कर।’ झल्लन बोला, ‘ददाजू, कैसी बातें कर रहे हैं और हमें ये क्या बता रहे हैं? आप में तो देशभक्ति बची ही नहीं और हमारी देशभक्ति को भी डिगा रहे हैं।’ हमने कहा, ‘न हम तेरी देशभक्ति पर शंका उठा रहे हैं न तेरी देशभक्ति को डिगा रहे हैं। हम तो इस दौर में तुझे जीने का तरीका बता रहे हैं। भाई, जिन्हें शर्मिदगी होनी चाहिए उन्हें शर्म नहीं आ रही है, इधर तुझे लगता है तेरी इज्जत जा रही है। जब हम जानते हैं कि हम किसी भी ताकतवर का कुछ नहीं बिगाड़ पाएंगे, न उससे बदला ले पाएंगे न उसका कुछ उखाड़ पाएंगे तो बेहतर यह है कि न दुखी हुआ जाये न शर्मिदा हुआ जाये, जैसे भी हो सके अपने आपको दुख-शर्म से बचाया जाये।’ वह बोला, ‘क्या ददाजू, हम कुछ नहीं कर पा रहे हैं इस मजबूरी पर सारे देश की गर्दन झुकी जा रही है मगर आपको रत्तीभर भी शर्म नहीं आ रही है। आपकी इस बेशर्मी पर तो हमें और भी शर्म आ रही है।’ हमने कहा, ‘अगर हमारे शर्मिदा होने से देश की गर्दन ऊंची हो जाये तो चल हम भी शर्मिदा हो लेते हैं और अपनी गर्दन शर्मिदगी में डुबो लेते हैं। सच बात यह है झल्लन कि मेरे-तेरे शर्मिदा होने से कहीं कुछ नहीं बदलेगा और किसी भी शर्मनाक समस्या का कोई हल नहीं निकलेगा। अगर हम शर्मनाक बातों पर शर्मिदा होना शुरू में ही सीख लेते तो हमें आज ये दिन नहीं देखने पड़ते और हमारे ऊपर शर्मिदगी के ये दौरे नहीं पड़ते।’
झल्लन बोला, ‘ददाजू, इधर-उधर मत घुमाओ, आप जो कहना चाह रहे हो वो सीधे बताओ।’ हमने कहा, ‘अगर हम जातिवाद पर शर्मिदगी होना सीख लेते, अपनी धार्मिक जड़ताओं पर शर्मिदा होना सीख लेते, अपनी पोंगापंथी संस्कृति पर शर्मिदा होना सीख लेते, सभ्य समाज की जड़ों को खोखला करने वाले कण-कण व्याप्त भ्रष्टाचार पर शर्मिदा होना सीख लेते, अपनी श्रमविरोधी सवर्ण मानसिकता पर शर्मिदा होना सीख लेते, अपनी बेईमानियों और कायरताओं पर शर्मिदा होना सीख लेते तो आज हम भी मजबूत होते। हमारे पड़ोसी ने जब क्रांति का आगाज किया था तो पहला काम ऐसी शर्मनाक चीजों के सफाए का किया था। अगर हम अपने पड़ोसी से कुछ सीख लिये होते तो उसी की तरह मजबूत होते और उसकी हरकत पर माकूल जवाब दिये होते, शर्मिदा नहीं हो रहे होते।’ झल्लन बोला, ‘आप ठीक कह रहे हो ददाजू, पर ये तो बताइए अब क्या किया जाये, इस शर्मिदगी से कैसे बचा जाये?’ हमने कहा, ‘अब तो एक ही रास्ता है कि मध्य प्रदेश में दतिया की पीताम्बरा पीठ में तंत्र हवन कराया जाये और चीन को वापस भगाया जाये। हवन पूरा होते ही चीन डर जाएगा और हमारी सारी जमीन छोड़ पीछे हट जाएगा। 62 में भी जब चीन चढ़ आया था तो नेहरू ने पीताम्बरा पीठ में हवन करवाकर ही उसे रुकवाया था।’
झल्लन बोला, ‘ददाजू, लगता है आप सचमुच बौराये हो, ये बेहूदी खबर कहां से उठा लाये हो?’ हमने कहा, ‘तू अखबार पढ़ा कर तेरे दिमाग का ढक्कन खुल जाएगा और जो कभी मालूम नहीं था वो भी मालूम हो जाएगा।’
झल्लन ने हमें गुस्से से घूरा पर कोई जवाब नहीं दिया, हमारी ओर गहरी हिकारत से देखा और उठ लिया।’

विभांशु दिव्याल


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