सामयिक : ’ब्लैकमेलर‘ की नई परिभाषा

Last Updated 15 Jun 2020 03:24:26 AM IST

आजकल देश में बड़े घोटालेबाजों द्वारा ‘ब्लैकमेलर’ की एक नई परिभाषा गढ़ी जा रही है।


सामयिक : ’ब्लैकमेलर‘ की नई परिभाषा

आजतक तो पत्रकारिता जगत में उन्हें ही ‘ब्लैकमेलर’ कहा जाता था, जो किसी महत्त्वपूर्ण अधिकारी, मंत्री या बड़े पैसे वाले के विरुद्ध खोज करके ऐसे प्रमाण, फोटो या दस्तावेज जुटा लेते थे, जिनसे वह महत्त्वपूर्ण व्यक्ति या तो घोटाले के केस में फंस सकता था और उसकी नौकरी जा सकती थी या वह बदनाम हो सकता था, या उसके ‘बिजनेस सीक्रेट’ जगजाहिर हो सकते थे, जिससे उसे भारी व्यापारिक हानि हो सकती थी। ऐसे प्रमाण जुटा लेने के बाद जो पत्रकार उन्हें सार्वजनिक नहीं करते या प्रकाशित नहीं करते, बल्कि संबंधित व्यक्ति को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उनकी झलक दिखा कर डराते हैं। फिर अपना मुंह बंद रखने की मोटी कीमत वसूलते हैं। ऐसे पत्रकारों को ‘ब्लैकमेलर’ कहा जाता है और वे आज भी समाज में सक्रिय हैं।
ऐसा बहुत कम होता है कि जिस व्यक्ति को ब्लैकमेल किया जाता है वो इसकी लिखित शिकायत पुलिस को दे और ब्लैकमेलर को पकड़वाए। जब कभी किसी ने ऐसी शिकायत की तो ऐसा ब्लैकमेलर पत्रकार जेल भी गया है। चाहे वो टीवी या अखबार का कितना ही मशहूर पत्रकार क्यों न हो। पर आमतौर पर यही देखा जाता है कि जिसको ब्लैकमेल किया जा रहा है वह इसकी शिकायत पुलिस से नहीं करता। कारण स्पष्ट है कि उसे अपनी चोरी या अनैतिक आचरण के जगजाहिर होने का डर होता है। ऐसे में वह व्यक्ति चाहे कितने भी बड़े पद पर क्यों न हो, ले-देकर मामले को सुलटा लेता है।

इससे यह स्पष्ट है कि ब्लैकमेल होने वाला और ब्लैकमेल करने वाला दोनों ही अनैतिक कृत्य में शामिल हैं और कानून की दृष्टि में अपराधी हैं। पर उनका यह राज बहुत दिनों तक छिपा नहीं रहता। ब्लैकमेल करने वाले पत्रकार की ‘दिन-दोगुनी और रात चौगुनी’ बढ़ती आर्थिक स्थिति से पूरे मीडिया जगत को पता चल जाता है कि वह पत्रकारिता के नाम पर ब्लैकमेलिंग का धंधा कर रहा है। इसी तरह जिस व्यक्ति को ब्लैकमेल किया जाता है उसके अधीन काम करने वाले, या उसके सम्पर्क के लोगों को भी, कानाफूसी से ये पता चल जाता है कि इस व्यक्ति ने अपने खिलाफ उठने वाले ऐसे बड़े मामले को ले-देकर दबवा दिया है, जबकि दूसरी ओर जो पत्रकार भ्रष्टाचार के किसी मुद्दे को उठा कर उससे संबंधित उपलब्ध दस्तावेजों को साथ ही प्रकाशित कर देता है। फिर लगातार उस विषय पर लिखता या बोलता रहता है। इस दौरान किसी भी तरह के पल्रोभन, धमकी या दबाव से बेखौफ हो कर वो अपने पत्रकारिता धर्म को निभाता है तो ही सच्चा और ईमानदार पत्रकार कहलाता है।
कभी-कभी ऐसा पत्रकार मुद्दे की गम्भीरता को देखते हुए राष्ट्रहित में एक कदम और आगे बढ़ जाता है और आरोपी व्यक्ति या व्यक्तियों के खिलाफ निष्पक्ष जांच की मांग को लेकर अदालत का दरवाजा भी खटखटाता है। तो इसे ‘जर्नलिस्टिक ऐक्टिविजम’ कहते हैं। यहां भी दो तरह की स्थितियां पैदा होती हैं।
एक वो जबकि जनहित याचिका करने वाला लगातार मुकदमा लड़ता है और किसी भी स्थिति में आरोपी से डील करके केस को ठंडा नहीं होने देता। जबकि कुछ लोगों ने, चाहे वो पत्रकार हों, वकील हों या राजनेता हों, ये धंधा बना रखा है कि वे ताकतवर या पैसे वाले लोगों के खिलाफ, जनहित याचिका दायर करते हैं, मीडिया व सार्वजनिक मंचों में खूब शोर मचाते हैं। और फिर प्रतिपक्ष से 100-50 करोड़ रुपये की डील करके अपनी ही जनहित याचिका को इतना कमजोर कर लेते हैं कि आरोपी को बचकर भाग निकलने का रास्ता मिल जाए। अक्सर ऐसी डील में भ्रष्ट न्यायाधीशों का भी हिस्सा रहता है तभी बड़े-बड़े आर्थिक अपराध करने वाले मिनटों में जमानत ले लेते हैं, जबकि समाज के हित में जीवन खपा देने वाले सामाजिक कार्यकर्ता बरसों जेलों में सड़ते रहते हैं। इस सारी प्रक्रिया में यह स्पष्ट है कि जो पत्रकार किसी ऐसे मामले को उजागर करता है, उसके प्रमाण सार्वजनिक करता है और आरोपी व्यक्ति के खिलाफ मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री, सीवीसी, सीबीआई या अदालत में जाकर अपनी ओर से लिखित शिकायत दर्ज कराता है तो वह ब्लैकमेलर कतई नहीं होता। क्योंकि जब उसने सारे सुबूत ही जगजाहिर कर दिए तो अब उसके पास ब्लैकमेल करने का क्या आधार बचेगा?
खासकर तब जबकि ऐसा पत्रकार या शिकायतकर्ता संबंधित जांच एजेंसी को निष्पक्ष जांच की मांग करने के लिए लिखित रिमाइंडर लगातार भेज कर जांच के लिए दबाव बनाए रखता है। जब कभी उसे लगता है कि जिससे शिकायत की जा रही है, वे जानबूझकर उसकी शिकायत को दबा कर बैठे हैं या आरोपी को बचाने का काम कर रहे हैं, तो वह संबंधित मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री या न्यायाधीश तक के विरुद्ध आवाज उठाने से संकोच नहीं करता। ऐसा करने वाला पत्रकार न सिर्फ ईमानदार होता है बल्कि निडर और देशभक्त भी। ऐसे पत्रकार से सभी भ्रष्ट लोग डरते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि ऐसे पत्रकार को किसी भी कीमत पर खरीदा या डराया नहीं जा सकता।
ऐसे निष्पक्ष और निष्पाप पत्रकार का सभी हृदय से सम्मान करते हैं। चाहे वे बड़े राजनेता हों, अफसर हों, उद्योगपति हों या न्यायाधीश हों। क्योंकि वे जानते हैं कि ये पत्रकार बिना किसी रागद्वेष के, केवल अपने जुनून में, मुद्दे उठता है और अंत तक लड़ता है। वे ये भी जानते हैं कि ऐसा व्यक्ति ना तो अपना कोई बड़ा अखबार खड़ा कर पाता है और ना ही टीवी चैनल। क्योंकि मीडिया साम्राज्य खड़ा करने के लिए जैसे समझौते करने पड़ते हैं वो ऐसे जुझारू पत्रकार को मंजूर नहीं होते। रोचक बात ये है कि इधर कुछ समय से देखने में आ रहा है कि वे नेता या अफसर जो बड़े-बड़े घोटालों में लिप्त होते हैं, जब उनके घोटालों को ऐसे निष्ठावान पत्रकार उजागर करते हैं तो वे अपने मुख्यमंत्री को दिग्भ्रमित करने के लिए उस पत्रकार को ‘ब्लैकमेलर’ बताकर अपनी खाल बचाने की कोशिश करते हैं। किंतु वैदिक शास्त्र कहते हैं, ‘सत्यमेव जयते’। सूरज को बादल कुछ समय के लिए ही ढक सकते हैं हमेशा के लिए नहीं।

विनीत नारायण


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