सामयिक : बाबा ये हिम्मत दिखा पाएंगे!
बीस बरस पहले बाबा रामदेव को देश में कोई नहीं जानता था। न तो योग के क्षेत्र में और न आयुव्रेद के क्षेत्र में। पर पिछले 15 सालों में बाबा ने भारत ही नहीं पूरी दुनिया में अपनी सफलता के झंडे गाड़ दिए।
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जहां एक तरफ उनके योग शिविर हर प्रांत में हजारों लोगों को आकषिर्त करने लगे, दुनिया भर में रहने वाले हिंदुस्तानियों ने टेलीविजन पर बाबा के बताए प्राणायाम और अन्य नुस्खे तेजी से अपनाना शुरू कर दिया। बाबा के अनुयाइयों की संख्या करोड़ों में पहुंच गई और उन सब के दान से बाबा रामदेव ने 2006 में हरिद्वार में पातंजलि योगपीठ का एक विशाल साम्राज्य खड़ा कर लिया।
अपनी इस अभूतपूर्व कामयाबी को बाबा ने दो क्षेत्रों में भुनाया। एक तो आयुव्रेद के साथ-साथ उन्होंने अनेक उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन शुरू किया और दूसरा अपनी राजनैतिक महत्त्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए देश भर में राजनैतिक जन-जागरण का एक बड़ा अभियान छेड़ दिया। उन्होंने कालेधन और भ्रष्टाचार के मुद्दे को इस कुशलता से उठाया कि तत्कालीन यूपीए सरकार लगातार रक्षात्मक होती चली गई। बाबा के इस अभियान की सफलता के पीछे भाजपा और आरएसएस की भी बहुत सक्रिय भागीदारी रही। ‘बिल्ली के भाग से छींका’ तब फूटा, जब लोकपाल के मुद्दे को लेकर अरविंद केजरीवाल ने ‘इंडिया अगेन्स्ट करप्शन’ का आंदोलन शुरू किया, जिसमें मशहूर वकील प्रशांत भूषण, शांति भूषण, सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे, सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी किरण बेदी, हिंदी कवि डॉ. कुमार विश्वास, पूर्व न्यायधीश संतोष हेगड़े और तमाम अन्य सेलिब्रिटी भी जुड़ गए।
इन सबका हमला यूपीए सरकार पर था, इसलिए बाबा रामदेव के अभियान को और ऊर्जा मिल गई। इन सबने मिल कर साझा हमला बोल दिया और अंतत: यूपीए सरकार का पतन हो गया। केंद्र में भाजपा की मोदी सरकार बनी तो दिल्ली में केजरीवाल की, जिसके बाद से इन सभी ने न तो भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया है, न काले धन का और न ही प्रभावी लोकपाल का। जिस आंदोलन ने दुनिया की नजर में एक बड़ी राजनैतिक क्रांति का आगाज किया था, वो रातों रात हवा हो गई। उधर बाबा ने मोदी सरकार में अपनी राजनैतिक दखलंदाजी सफल होते न देख पूरा ध्यान पातंजलि के कारोबार पर केंद्रित कर दिया, जिसके पीछे आचार्य बालकृष्ण पहले से खड़े थे। उनके इस साम्राज्य का इतना तेजी से प्रसार हुआ कि प्रसाधनों के क्षेत्र में हिंदुस्तान लिवर जैसी बहुराष्ट्रीय कम्पनी और आयुव्रेद के क्षेत्र में डाबर जैसी कम्पनियां भी कहीं पीछे छूट गईं। आज बाबा रामदेव का कारोबार हजारों करोड़ का है। आर्थिक वृद्धि की इस तेज रफ्तार के बीच बाबा के कुछ उत्पादनों की गुणवत्ता को लेकर कभी-कभी विवाद भी होते रहे और बाबा से ईष्र्या रखने वाले कुछ लोग उन्हें ‘लाला रामदेव’ भी कहने लगे। पर इस सबसे बेपरवाह बाबा अपनी गति से आगे बढ़ते रहे हैं। दूसरा इतने व्यापक स्तर पर योगाभ्यास करने से निचित रूप से करोड़ों लोगों को स्वास्थ्य लाभ भी हुआ है। तीसरा, पातंजलि के व्यावसायिक साम्राज्य ने लाखों लोगों को रोजगार भी प्रदान किया है, जिसके लिए बाबा रामदेव की लोकप्रियता देश में आज भी कम नहीं हुई है।
बाबा रामदेव का व्यवहार बड़ा आत्मीय और सरल होने के कारण, हर क्षेत्र में उनके मित्रों की संख्या भी बहुत है। पिछले दस वर्षो से मेरे संबंध भी बाबा से बहुत आत्मीय रहे हैं। अपने टेलीविजन चैनल के माध्यम से उन्होंने ब्रज सजाने के हमारे विनम्र अभियान में मीडिया सहयोग भी किया है। पर खोजी पत्रकार की अपनी साफगोई छवि के कारण जहां देश के बहुत से महत्त्वपूर्ण लोग मेरी बेबाकी से विचलित हो जाते हैं वहीं बाबा जैसे लोग, मेरी आलोचना को भी एक खिलाड़ी की भावना की तरह सहजता से हंसते हुए स्वीकार करते हैं। अपनी इसी साफगोई को माध्यम बना कर आज जो मैं बाबा से कहने जा रहा हूं, वह देश की वर्तमान आर्थिक दुर्दशा को व सामाजिक विषमता को दूर करने की दिशा में एक मील का पत्थर हो सकता है। अगर बाबा मेरे इस सुझाव को गम्भीरता से लें। निस्संदेह व्यक्तिगत तौर पर बाबा रामदेव और उनके मेधावी व कर्मठ सहयोगी आचार्य बालष्ण ने कल्पनातीत भौतिक सफलता प्राप्त कर ली है। पर भौतिक सफलता या चाहत की कभी कोई सीमा नहीं होती।
अपनी पत्नी को 600 करोड़ रुपये का हवाई जहाज भेंट करने वाला उद्योगपति भी कभी भी अपनी आर्थिक उपलब्धियों से संतुष्ट नहीं होता। पर केसरियावेश धारी सन्यासी तो वही होता है, जो अपनी भौतिक इच्छाओं को अग्नि में भस्म करके समाज के उत्थान के लिए स्वयं को होम कर देता है। इसलिए बाबा रामदेव को अब एक नया इतिहास रचना चाहिए। अपनी आर्थिक शक्ति व प्रबंधकीय योग्यता का उपयोग हर गांव को आत्मनिर्भर बनाने के लिए करना चाहिए। यह तो बाबा और आचार्य जी भी जानते हैं कि आयुव्रेदिक या खाद्यान के उत्पादनों की गुणवत्ता बड़े स्तर के कारखानों में नहीं बल्कि कुटीर उद्योग के मानव श्रम आधारित उत्पादन के तरीकों से बेहतर होती है। बैलों की मंथर गति से, सामान्य ताप पर, कोल्हू में पेरी गई सरसों का तेल, कारखानों में निकाले गए तेल से कहीं ज्यादा श्रेष्ठ होता है। इसी तरह दुग्ध उत्पादन हो, खाद्यान हो, मसाले हों, प्रसाधन हों या अन्य वस्तुएं हों, अगर इनका उत्पादन विकेंद्रीकृत प्रणाली से व गांव की आवश्यकता के अनुरूप हर गांव में होना शुरू हो जाए तो करोड़ों गरीबों को रोजगार भी मिलेगा और गांव में आत्मनिर्भरता भी आएगी, जिसे अंग्रेजी हुकूमत ने 190 सालों में अपने व्यावसायिक लाभ के लिए बुरी तरह से ध्वस्त कर दिया था।
विकेंद्रित व्यवस्था से गांव की लक्ष्मी फिर गांव को लौटेगी। स्पष्ट है कि तब लक्ष्मी जी की प्रवृष्टि पातंजलि के साम्राज्य पर नहीं होगी, बल्कि उन गरीबों के घर पर होगी, जो भारी यातनाएं सहते हुए, महानगरों से लुट-पिट कर और सैकड़ों किलोमीटर पैदल चल कर रोते-कलपते फिर से रोजगार की तलाश में अपने गांव लौट गए हैं। क्या सन्यास वेशधारी बाबा रामदेव लक्ष्मी देवी को अपने द्वार से लौटा कर इन गांवों की ओर भेजने का पारमार्थिक कदम उठाने का साहस दिखा पाएंगे?
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